India News (इंडिया न्यूज), Congress vs RSS: संसंद में राहुल के धक्का कांड से खबर सामने निकल कर आया रही है कि संसंद के गेट पर कई RSS के कार्यकर्ता लठियों के साथ खड़े थे, जो राहुल गांधी को संसद के अंदर जाने नहीं दे रहे थे। इसी मौके पर धक्का-मुक्की हुई और एक भाजपा सांसद को चोट लग गई। यह पहला मौका नहीं है जब स्वयं सेवल संघ की लाठी से कोई कांग्रेसी नेता बिदक गया हो। संघ की लठियों और कांग्रेस का नाता बेहद पुराना है जो इंदिरा गांधी के दौर से चला या रहा है। इंदिरा गांधी ने Emergency के दौर में आरएसएस की लठियों को देख के लिए खतरा बात दिया था।
आपातकाल के दौरान ऑक्सफोर्ड के प्रोफेसर डेविड सेलबोर्न इंदिरा गांधी से मिले थे। इस मुलाकात के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री से एक सवाल पूछा। उन्होंने पूछा कि आरएसएस को फासीवादी कहने और उस पर प्रतिबंध लगाने का उनका क्या मतलब था? प्रधानमंत्री ने जवाब दिया कि आरएसएस फासीवादी है क्योंकि वे मेरे बारे में झूठी अफवाहें फैला रहे हैं। डेविड सेलबोर्न यह जवाब सुनकर हैरान रह गए और कहा कि यह फासीवाद की बिल्कुल नई परिभाषा है।
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आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने आरएसएस की लठियों को तलवार बता दिया था। संघ पर तलवार के साथ साथ बंदूक रखने के भी आरोप लगाए गए थे। इस आधार पर इंदिरा सरकार ने आरएसएस को बैन कर दिया था, लेकिन लंबे समय तक यह सच छुप नहीं सका। रिपोर्टस् के मुताबिक 25 जून 1975 की आधी रात को देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था। इसके करीब एक महीने बाद लोकसभा में आपातकाल की घोषणा की स्वीकृति विधेयक पेश किया गया। यह विधेयक इंदिरा गांधी की सरकार ने ही सदन में पेश किया था। विधेयक पर चर्चा के दौरान 22 जुलाई को इंदिरा गांधी भी लोकसभा में मौजूद थीं। इस विधेयक पर चर्चा करने की बजाय उन्होंने पूरा भाषण आरएसएस के खिलाफ दिया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने दर्जनों बार आरएसएस और गुरु गोलवरकर का जिक्र भी किया। उन्होंने यह भी कहा कि जो तलवारें पकड़ी गईं, वे खिलौने थीं।
खबरों के मुताबिक जब इंदिरा गांधी को लगा कि लकड़ी की तलवारों का प्रचार विफल हो गया है, तो उन्होंने संघ से जुड़े लोगों की सूची बनाने और उन्हें प्रताड़ित करने का फैसला किया। अंत में उन्होंने पूरे देश में लाखों स्वयंसेवकों को बिना किसी कारण के नजरबंद कर दिया और महीनों तक उन पर अनगिनत अत्याचार किए गए। ऐसी तानाशाही और लोगों पर अत्याचार के कारण इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया आपातकाल हमेशा भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले धब्बे के रूप में जाना जाएगा।
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