India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: प्रियंका गांधी जिस हिसाब से धीरे धीरे आगे बढ़ रही हैं उससे यह माना जाने लगा है कि वह किसी भी जिम्मेदारी से भागेंगी नहीं और जब मौका मिलेगा तो उसे छोड़ेंगी नहीं। जिस तरह से पार्टी ने उन्हें उनके भाई राहुल गांधी की सीट वायनाड से चुनाव लड़ाने का फैसला किया है इससे यह माना जा रहा है कि भविष्य में वे ही चेहरा बन फ्रंट पर खेलेंगी और उनके भाई राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी की जगह ले सकते हैं। इसके यह मायने निकाले जा सकते हैं कि भविष्य में पार्टी प्रियंका को अपना पीएम चेहरा भी घोषित कर सकती है। यूं कह सकते हैं कि सोनिया गांधी द्वारा शुरू की गई परंपरा को भाई बहन आगे बढ़ाएंगे। जैसे सोनिया मुख्य ड्राइविंग सीट पर रहती रही हैं उसी तरह राहुल रहेंगे,लेकिन इस बार फ्रंट पर गांधी परिवार का ही सदस्य प्रियंका हो सकती हैं। अधिकांश जानकारों और कांग्रेस के अंदर बड़े धड़े का भी यही मानना है कि प्रियंका ही राइट च्वाहिस है। इसमें यही देखना होगा कि क्या फिर कांग्रेस के बाकी पावर सेंटर खत्म होंगे। क्योंकि सोनिया गांधी के अध्यक्ष रहते हुए लंबे समय तक प्रमुख रूप से दो ही पावर सेंटर थे। एक वे खुद और दूसरे अहमद पटेल।
शुरुआती दौर मतलब 1998 में सोनिया के पार्टी की कमान संभालने के बाद कई पावर सेंटर थे। जैसे की आज कल हैं। उस समय अहमद पटेल, अंबिका सोनी, वी जार्ज, माधवराव सिंधिया आदि। लेकिन हवाई दुर्घटना में सिंधिया के निधन के बाद तीन लोगों में ही असल खींचतान थी। इनके साथ गुलाम नवी आजाद, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, अशोक गहलोत, जनार्दन द्विवेदी, अर्जुन सिंह, नारायण दत्त तिवारी, शीला दीक्षित और दक्षिण के कुछ नेता पावरफुल होते थे। लेकिन जार्ज, पटेल और सोनी के आगे इनकी कम ही चलती थी। कांग्रेस के 2004 में सत्ता वापसी के साथ ही अंबिका सोनी को सोनिया को कोटरी से धीरे से बाहर कर दिया गया। हालांकि आज वह सोनिया के करीबी नेताओं में हैं। कई नेताओं को संरक्षण देती और मौका मिल फैसला भी करवा देती हैं। राजस्थान और पंजाब के फैसलों में उनकी प्रमुख भूमिका रही है।
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सोनी के हटने के बाद तब वी जार्ज और अहमद पटेल रह गए थे। लेकिन 2004 में कांग्रेस के सत्ता में आते ही चीजें बदली। जार्ज कमजोर हुए और अहमद पटेल अकेले पावर सेंटर रह गए। लेकिन 2004 में राहुल गांधी के राजनीति में एंट्री के साथ पार्टी के अंदर खींचतान का दौर शुरू हुआ। शुरू के पांच साल तो सब ठीक था, लेकिन 2009 के बाद युवा बनाम अनुभव के टकराव से पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ। राहुल और उनकी टीम हावी होने लगी। अहमद पटेल कमजोर होने लगे, जनार्दन द्विवेदी, शीला दीक्षित, गुलाम नबी आजाद जैसे कई नेता साइड कर दिए गए। राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद प्रियंका मुख्य भूमिका में आ गई। के सी वेणुगोपाल पावरफुल हो गए। लेकिन पार्टी कमजोर होती चली गई। लगातार दो लोकसभा के चुनाव हारी। राज्यों में पार्टी सिमट गई। इस बीच अहमद पटेल का निधन हो गया। सोनिया, राहुल, प्रियंका के साथ वेणुगोपाल चार सबसे ताकतवर नेता हो गए।
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इस बीच ओपचारिकता चुनाव करवा गैर गांधी के रूप में मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष बने। लेकिन पावर सेंटर के रूप मे उनका नंबर पांचवा है। राहुल गांधी को अपना नेता मान खरगे जो उन्हें करना चाहिए करते है। इन सब के बीच 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीट जीत ली। पार्टी इन 99 सीट को राहुल गांधी के असफल राजनीतिक कैरियर की सबसे बड़ी उपलब्धि बता जश्न में डूबी है। कांग्रेस उम्मीद कर रही है नरेंद्र मोदी की अगुवाई में चल रही गठबंधन की सरकार साल भर में गिर जायेगी और उनकी सत्ता में वापसी हो जाएगी।
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कांग्रेस का व्यवहार भी उसी तरह का हो गया है। एक भी विरोध का मौका नहीं छोड़ रही है। लेकिन इन सब के बीच प्रियंका की रणनीति सफल होती दिख रही है। उन्होंने रायबरेली और अमेठी में 12 दिन रह पार्टी को जीत दिलवाई। इनाम में वायनाड मिल गया। जानकार मानते हैं प्रियंका जल्दी में नही है। वायनाड जीतेगी और लोकसभा पहुंचेगी। यह प्रियंका के पास साबित करने का बड़ा मौका होगा। मौका मिलने पर वह पार्टी में देर सवेर प्रधानमंत्री पद का चेहरा भी बन सकती हैं। अपने भाई राहुल गांधी की खाली हुई सीट वायनाड से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद पार्टी के अंदर बाहर यह चर्चा आम है कि प्रियंका ही कांग्रेस को पुरानी स्थिति में लौटा सकती है। इसलिए आने वाले समय में कांग्रेस बहुत कुछ बदलता हुआ दिख सकता है। इसमें यह देखना होगा कि दस जनपथ के वफादार किस और झुकते हैं।
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