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PM Modi Degree: पीएम मोदी के बीए की डिग्री मामले में कोर्ट ने तुरंत सुनवाई से इनकार किया, अक्टूबर की तारीख दी

Roshan Kumar • LAST UPDATED : July 10, 2023, 4:12 pm IST

India News (इंडिया न्यूज़), PM Modi Degree, Delhi: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी की स्नातक डिग्री पर आरटीआई जानकारी से संबंधित एक मामले की सुनवाई स्थगित करने से इनकार कर दिया। अदालत ने मामले को 13 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। दिल्ली विश्वविद्यालय की तरफ से रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति देने के केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के 2016 के निर्देश को चुनौती दी गई थी और इस पर जल्द सुनवाई की मांग की गई थी।

  • 1978 में बीए की परीक्षा पास की
  • सीआईसी ने आदेश दिया था
  • विश्वविद्यालय ने चुनौती दी

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने दिल्ली विश्वविद्यालय की इस याचिका पर तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया। सीआईसी ने विश्वविद्यालय को वर्ष 1978 के बीए पाठ्यक्रम के छात्रों से संबंधित रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति देने का निर्देश दिया था। यह भी कहा जाता है कि पीएम मोदी ने 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय की बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। जनवरी 2017 में उच्च न्यायालय ने सीआईसी द्वारा पारित आदेश पर रोक लगा दी गई थी।

मामले लंबे समय से लंबित

उच्च न्यायालय ने आरटीआई कार्यकर्ता नीरज कुमार द्वारा दायर आवेदन पर शीघ्र सुनवाई की। वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े आवेदक की ओर से पेश हुए और कहा कि मामले पर शीघ्र सुनवाई की आवश्यकता है क्योंकि यह लंबे समय से लंबित है। न्यायमूर्ति प्रसाद ने शीघ्र सुनवाई की अनुमति देने से इनकार कर दिया और कहा कि मामले को अक्टूबर में सूचीबद्ध किया जाएं।

1978 में परीक्षा पास की

पीठ ने इस मामले में पहले से तय तारीख पर अर्जी पर नोटिस जारी किया। आवेदक ने एक आरटीआई आवेदन दायर कर 1978 में बीए परीक्षा में उपस्थित हुए डीयू के छात्रों के परिणामों का रिकॉर्ड मांगा था। उन्होंने उनके रोल नंबर, नाम, अंक और परीक्षा के परिणाम जैसे अन्य विवरण भी मांगे थे। यूनिवर्सिटी ने यह जानकारी इस आधार पर देने से इनकार कर दिया कि यह किसी तीसरे पक्ष से संबंधित है।

विश्वविद्यालय ने आदेश को चुनौती दी

नीरज कुमार ने विश्वविद्यालय के आदेश को चुनौती दी थी। सीआईसी ने एक आदेश पारित कर विश्वविद्यालय को रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति देने का निर्देश दिया था। इसमें कहा गया कि मांगी गई जानकारी विश्वविद्यालय के निजी रजिस्टर, एक सार्वजनिक दस्तावेज में उपलब्ध है। विश्वविद्यालय ने इस आदेश को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

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