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बैल और सांड में क्या होता है अंतर! दोनों की माँ एक, वजह जान सिर पकड़ लेंगे आप

India News (इंडिया न्यूज), Difference Between Oxen and Bull: भारतीय समाज में बैल की मिसाल अक्सर मेहनत के प्रतीक के तौर पर दी जाती है। वहीं जब ताकत की मिसाल देनी होती है तब सांड का जिक्र किया जाता है। बैल और सांड गाय के नर बच्चे यानी बछड़े के रूप हैं। लेकिन, समाज में दोनों की भूमिकाएं अलग-अलग हैं। वैसे तो ग्रामीण पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले ज्यादातर लोग बैल और सांड के बीच के अंतर से वाकिफ होंगे। लेकिन बहुत संभव है कि शहरी युवा पीढ़ी को इस बारे में पता न हो। आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे।

गाय के नर बच्चे कैसे दो नामों में बंट जाते हैं?

दरअसल, इंसान शुरू से ही अपने स्वार्थ के लिए जानवरों का इस्तेमाल करता रहा है। वह गाय को दूध के लिए और उसके बछड़े को बैल के तौर पर कृषि कार्य के लिए इस्तेमाल करता है। बैल और सांड गाय के नर बछड़े होते हैं। जो बाद में दो रूपों में अपनी भूमिका निभाते हैं। बैलों का इस्तेमाल आमतौर पर खेती के काम में किया जाता है। किसान खेतों की जुताई के लिए बैल पालते थे।

दरअसल, सृष्टि ने इस दुनिया में हर प्राणी के दो रूप बनाए हैं। वो नर और मादा हैं। ऐसे में जब गाय का नर बच्चा या बछड़ा बड़ा हो जाता है। तब वह पशुपालक के किसी काम का नहीं रह जाता। पहले के समय में किसान इन बछड़ों को हल में लगाकर खेतों की जुताई करते थे। लेकिन, दिक्कत यह थी कि मनुष्य को इन बछड़ों को नियंत्रित करने में दिक्कत होती थी। फिर उन्होंने एक तरकीब निकाली। इंसानों ने बछड़ों के यौवन को कुचलने का फैसला किया। इससे बछड़े की आक्रामकता खत्म हो जाती है। इसे बधियाकरण कहते हैं।

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बछड़े ऐसे बनते हैं बैल?

बता दें कि बधियाकरण प्रक्रिया के दौरान 2.5-3 साल के बछड़े के अंडकोष कुचलकर नष्ट कर दिए जाते हैं। आधुनिक युग में यह काम मशीनों से होता है, जबकि पहले के युग में इसे अच्छे से कुचला जाता था। इस प्रक्रिया में बछड़े को बहुत दर्द होता था। कई बार इस दौरान बछड़े की मौत भी हो जाती थी। अंडकोष कुचले जाने या नष्ट हो जाने के बाद बछड़ा किसी गाय के साथ संभोग नहीं कर पाता। आधुनिक युग में बधियाकरण की यह प्रक्रिया बर्डिज़ो कैस्ट्रेटर मशीन से की जाती है। इसमें अंडकोष की कोशिकाएं पूरी तरह नष्ट हो जाती हैं। इस तरह बछड़ा पूरी तरह नपुंसक हो जाता है।

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सांड बनने की है यह प्रक्रिया

दरअसल दूसरी ओर सांड होते हैं। ये ऐसे बछड़े होते हैं जिनका बधियाकरण नहीं किया जाता। बधियाकरण न किए जाने के कारण बछड़ा जब बड़ा होता है तो पूरी ताकत से भरा होता है। वह आक्रामक होता है। इसी कारण आक्रामकता और शक्ति के प्रतीक के रूप में सांड का उदाहरण दिया जाता है। बधियाकरण के समय बछड़े की नाक में छेद कर दिया जाता है और उस पर लगाम लगा दी जाती है। इस तरह वह किसान का गुलाम बन जाता है। जबकि सांड खुलेआम घूमता है। यह स्वतंत्रता का प्रतीक है।

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Raunak Pandey

रौनक पांडे बिहार की माटी से निकलकर दिल्ली में पत्रकारिता को सीख और समझ रहे हैं. पिछले 1.5 साल से डिजिटल मीडिया में बतौर कंटेंट राइटर सक्रिय हैं। अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय राजनीति पर लिखना पसंद है.

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