होम / 40 गज ऊंचाई पर दीया…बादशाहों को आतिशबाजी से खास लगाव, जानें मुगल बादशाह कैसे मनाते थे दीपों का त्योहार

40 गज ऊंचाई पर दीया…बादशाहों को आतिशबाजी से खास लगाव, जानें मुगल बादशाह कैसे मनाते थे दीपों का त्योहार

Divyanshi Singh • LAST UPDATED : October 28, 2024, 10:02 pm IST

India News (इंडिया न्यूज),Diwali Celebration in Mughal Era: दुनिया भर में लाखों लोग दीवाली की रौनक मुगल काल में भी फैली हुई थी। लाल किले का रंग महल दीयों की रोशनी से जगमगाता था। मुगलों को दीवाली कितनी प्रिय थी, इसका उदाहरण मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला की तस्वीरों से भी मिलता है। जिसमें वह कई महिलाओं के साथ दीवाली मनाते नजर आते हैं। मुगल काल में दीवाली को जश्न-ए-चिराग के नाम से जाना जाता था। जिसका मतलब था दीपों का त्योहार। इतिहासकार बताते हैं कि मुगल बादशाहों को भी आतिशबाजी से खास लगाव था ।दीवाली में आतिशबाजी की जिम्मेदारी मीर आतिश को दी गई थी, उनकी देखरेख में आतिशबाजी का प्रदर्शन किया जाता था। आतिशबाजी के लिए मीर आतिश लाल किले के पास की जगह चुनते थे।

अकबर काल से शुरू हुई दीवाली मनाने की परंपरा 

उस काल में सही मायने में दीवाली मनाने की परंपरा अकबर के काल से शुरू हुई। इसकी शुरुआत आगरा किला और फतेहपुर सीकरी से हुई। मुगल बादशाह शाहजहां और अकबर के शासनकाल में इस त्योहार की भव्यता देखने लायक थी, लेकिन औरंगजेब के शासनकाल में रोशनी का यह त्योहार सिर्फ उपहार भेजने तक ही सीमित रह गया। मुगल दरबार में राजपूत परिवारों की ओर से उपहार भेजे जाते थे। जोधपुर के राजा जसवंत सिंह और जयपुर के राजा जय सिंह की ओर से मुगलों को उपहार भेजने की परंपरा थी। हालांकि, मोहम्मद शाह रंगीला के शासनकाल में दिवाली का जश्न और भी जीवंत हो गया।

40 गज की ऊंचाई पर जलता था दीया

दिवाली त्योहार का खास आकर्षण 40 गज ऊंचे खंभे पर जलने वाला दीया होता था। इसे रूई के तेल से जलाया जाता था। दीये को रातभर जलाए रखने के लिए एक व्यक्ति को तैनात किया जाता था, जो दीये पर सीढ़ी की मदद से तेल डालता था ताकि दीया रातभर जलता रहे।

रोशनी से खास जुड़ाव

कई इतिहासकारों का मानना ​​है कि मुगल काल की दिवाली उस समय के हिसाब से भव्य होती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि मुगलों का रोशनी से खास जुड़ाव था। बादशाह अकबर के इतिहासकार अबुल फजल के अनुसार प्रकाश प्रकृति के वरदान की तरह है। इसीलिए मुगलों के लिए दिवाली खास रही है।

आउटलुक की एक रिपोर्ट में इतिहासकार एवी स्मिथ लिखते हैं कि दिल्ली का लाल किला वसंत उत्सव और दिवाली जैसे हिंदू त्योहारों के जश्न का गवाह रहा है। मुहम्मद शाह के दौर में महल के सामने के मैदान में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे और महलों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए दीये जलाए जाते थे। उलेमाओं की नजर में दिवाली इस्लाम विरोधी थी दिवाली का जश्न मुगल बादशाह, बेगम और जनता के लिए खुशियां लेकर आता था। हर तरफ चकाचौंध थी, लेकिन रूढ़िवादी उलेमा इस त्योहार से खुश नहीं थे। उनकी नजर में मुगलों द्वारा दिवाली मनाना इस्लाम विरोधी था। वे इसे गैर-इस्लामी प्रथा मानते थे। वे मुगलों द्वारा दिवाली मनाने का मजाक उड़ाते थे। हालांकि, इसके बाद भी हर साल यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता था।

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