India News (इंडिया न्यूज़), Maharashtra Election, (Abhishek Sharma) मुंबई: एक समय था जब महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में उत्तर भारतीयों को सिर्फ़ ये समझा जाता था की उनकी पहचान मुंबई में सिर्फ़ दूध वाले के तौर पर, सब्ज़ी बेचने वाले के तौर पर या फिर रिक्शा चलाने वाले या फिर किसी मज़दूर के नाम पर ही हुआ करती थी। मगर आज मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में जहां-जहां भी उत्तर भारतीय हैं। उनकी स्थिति और पहचान ख़ुद से इन लोगों ने इतनी मज़बूत कर ली है की आज सभी राजनीतिक पार्टियों को ये अहसास हो गया है कि इनके बिना हमारी राजनीति की नैया पार नहीं हो सकती।
जिस कारण आज महाराष्ट्र की सभी छोटी बड़ी राजनीतिक पार्टियां उत्तर भारतीयों को लुभाने में जुट गयी है। जिससे आने वाले महानगर पालिकाओं के चुनाव हो या लोकसभा या विधान सभा सभा में उनकी नैया पार हो सके। एक शब्द में कहें तो आज मुंबई में 45 लाख से अधिक और पूरे महाराष्ट्र में क़रीब 2 करोड़ है। ऐसे में उत्तर भारतीय जिस पार्टी की तरफ़ झुकेंगे उनकी नैया पार होनी तय है। मुंबई और महाराष्ट्र के विकास में उत्तर भारतीयों का योगदान शुरू से ही रहा है। क्योंकि ये सभी दूर-दूर से आकर इस राज्य और शहर में ऐसे ऐसे काम किए हैं। जिससे की इस राज्य और शहर की उन्नति ही हुई है। लेकिन जिस तरह से इन लोगों ने अपने खून-पसीने से इस मुंबई शहर और महाराष्ट्र के तमाम हिस्सों को और अच्छा बनाने में और इसकी इज्जत बढ़ाने में या यूं कहे इस शहर की रौनक़ बढ़ाने में जो योगदान दिया वैसी इज्जत समय पर इन्हें उतनी नहीं मिली जैसी मिलनी चाहिए थी।
बता दें कि आज वो वक़्त आ गया है जब 2 करोड़ पूरे महाराष्ट्र में और अकेले मुंबई में ये 45 लाख से ज्यादा उत्तर भारतीय अपना रुतबा इतना बढ़ा लिया है। अपनी काम की बदौलत की आज सभी राजनीतिक पार्टियां इन्हें अपने साथ जोड़ने के लिये व्याकुल हैं। ये सच भी है जिस दल जिस नेता का साथ उत्तर भारतीय या यूं कहें हिन्दी भाषी मतदाताओं ने साथ देने का मन बना लिया तो उसकी जीत पक्की है। उत्तरी भारतीय वोटरों पर पहले कांग्रेस की पकड़ अच्छी थी। मुंबई में इस पार्टी ने कई बड़े नेता दिये और उन्हें अच्छे स्थान पर बिठाया भी उसमें से अगर नाम की बात करें तो संजय निरुपम, कृपा शंकर सिंह, राजेश शर्मा जो मुंबई के उपमहापौर भी रह चुके हैं।
इसके अलावा नसीम ख़ान सहित ऐसे कई नेता हैं जिनका मुंबई और महाराष्ट्र की राजनीति में बोलबाला रहा है। मगर जैसे-जैसे समय बीता उत्तर भारतीय वोटर बीजेपी की तरफ़ चला गया। जो बड़े नेता कांग्रेस के पास थे उसमे से तो कई उत्तर भारतीय नेता बीजेपी में चले गए। फिर देश स्तर पर जिस तरह से मोदी की नीतियों और काम को लेकर तारीफ़ होती गयी उसी के चलते यहां के उत्तर भारतीय वोटर बीजेपी के साथ हो लिए।
अब हिन्दी भाषी की ताक़त इतनी बढ़ गयी है मुंबई और आस पास के इलाक़ों में की चाहे उद्धव ठाकरे की शिवसेना हो या एकनाथ शिंदे की शिवसेना या फिर कांग्रेस हर पार्टी इन पर डोरे डालने लगी है। इसीलिए उद्धव ठाकरे ने ठाणे में उत्तर भारतीयों के लिए एक सभा भी रखी थी और उन्हें अपने साथ जोड़ने की बात कही।तो वहीं मुंबई कांग्रेस की अध्यक्षा वर्षा गायकवाड़ ने अपने नेताओं से कहा है की हर एक उत्तर भारतीय वोटर के घर जाकर पार्टी की छवि और जनाधार मज़बूत करें और इस काम में तेज़ी से कांग्रेस नेता लग भी चुके हैं। आप सोच रहे होंगे की आख़िर क्यों उत्तर भारतीय की ताक़त अब मुंबई सहित अन्य जगहों पर इतनी बढ़ गयी है की जिसके कारण सभी पार्टियों को सोचना पड़ रहा है। आइये उसका डिटेल बताते हैं आंकड़ो के ज़रिए।
उत्तर भारतीय वोटर पहले कांग्रेस के साथ थे। तो मुंबई में कांग्रेस के विधायकों और नगरसेवक भारी संख्या में चुनकर आते थे। मगर जैसे ही ये कांग्रेस से दूर हुए इनके विधायकों और नगरसेवकों की संख्या दिन व दिन घटती चली गई। इनकी जगह बीजेपी लेती गयी। मुंबई की सवा करोड़ जनसंख्या है इसमें क़रीबन 45 लाख उत्तर भारतीय हैं। यानी कि क़रीबन 40 प्रतिशत से ऊपर यहाँ उत्तर भारतीय लोग हैं। वहीं पूरे महाराष्ट्र की जनसंख्या साढ़े बारह करोड़ हैं और पूरे महाराष्ट्र में कुल 2 करोड़ उत्तर भारतीय हैं। साथ ही ये सभी हर क्षेत्र में फैले हुए हैं। इंडिया न्यूज के संवाददाता अभिषेक शर्मा बताते हैं कि पहले इनकी पहचान दूध वाले या सब्ज़ी वाले या फिर रिक्शा वाले के रूप में थी लेकिन अब ये हर काम में माहिर हैं। उत्तर भारतीय कई अच्छे बिल्डर हैं। कई बड़े-बड़े कॉलेज और स्कूल है। अच्छी कंपनियों में काम करते हैं अच्छे पोस्ट पर, डॉक्टर इंजीनियर भी हैं। साथ ही बड़े वकील हैं आज मुंबई हिन्दी भाषी है।
पहले उतर भारतीय सिर्फ़ झोपड़पट्टी में ही मिला करते थे। ऐसा माना जाता था लेकिन आज उत्तर भारतीय बड़े-बड़े फ्लैट और बंगले में भी रहने लगा हैं। अब करोड़ों रुपयों के फ्लैट भी ख़रीदने लगे हैं। जब सब कुछ बदल रहा है तो ज़ाहिर सी बात है की राजनीति भी ज़रूर बदलेगी। इन्हें लेकर जो सोच पहले थी इन्हें लेकर अब वैसी सोच नहीं रही है नेताओं की।इसीलिए तो यह साफ़ हो गया है कि उत्तर भारतीय के बिना मुंबई और आस पास की राजनीति नहीं चल सकती किसी भी पार्टी की। मुंबई में अगर मुंबई महानगर पालिका की बात करें तो उत्तर भारतीय अगर एक साथ किसी भी पार्टी को समर्थन कर दें तो 227 में से 78 सीटों पर सिर्फ़ उत्तर भारतीय नगरसेवक चुनकर आ सकते हैं। या फिर यूं कहे तो इनके वोटर निर्णायक हो सकते हैं। ये बात रही मुंबई की जहाँ सवा करोड़ की जनसंख्या है।
आपको बता दें की मुंबई से सटे हुए वसई, नालासोपरा, विरार, बोईसर, नायगांव, ठाणे, भिवंडी, उल्लाहनगर, डोंबिवली सहित कई ऐसे इलाक़े हैं जहां पर उत्तर भारतीय भारी संख्या में हैं। वसई, नालासोपरा, विरार की बात करें तो यहां पर वोटर क़रीबन 14 लाख ही हैं। मगर यहां पर क़रीबन 50 लाख से अधिक उत्तर भारतीय रहते हैं। यानी अगर इन्हें खुश रखा तो ये जिस स्टेट के भी वोटर हैं। उनका वोट उस पार्टी को पड़ सकता है। इस पर नलासोपरा में रहने वाले उत्तर भारतीय नेता के.डी. शर्मा कहते हैं की यहाँ की तीन विधान सभा और महानगर पालिका चुनाव में उत्तर भारतीय वोटर बहुत बड़ा रोल अदा करता हैं। वो जिस भी पार्टी को मदद कर दे उसका जीतना तय हैं।
महाराष्ट्र कांग्रेस के महासचिव और मुंबई के पूर्व उपमहापौर साथ ही उत्तर भारतीय के बड़े नेता राजेश शर्मा ने इंडिया न्यूज़ से ख़ास बातचीत में बताया की आने वाला समय मुंबई में उत्तर भारतीयों के विकास का है। जो आज देश की स्थिति है केंद्र सरकार के चलते उससे उत्तर भारतीय नाराज़ हैं। उत्तर भारतीयों के लिए परमानेंट पर्याय कांग्रेस ही है। इसलिए हमें विश्वास है की हिन्दी भाषी फिर से हमारे साथ सभी जुड़ेंगे और उस मुहिम में हम लग चुके हैं। ग़ौरतलब है कि 40 लाख से अधिक उत्तर भारतीय जहां जाएगा वही पार्टी जीतेगी ये तय है। क्योंकि उत्तर भारतीय अब डॉक्टर, कील, बिल्डर, बड़े बड़े व्यापारी हो चुके हैं और ये विकास की रफ़्तार बढ़ती ही जाएगी।
वही उत्तर भारतीयों को लुभाने के मामले पर बीजेपी के उत्तर भारतीय मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पांडेय ने इंडिया न्यूज़ से एक ख़ास बातचीत में कहा कि आज राजनीति के कारण सभी उत्तर भारतीय को लुभाने में जुटे। लेकिन उत्तर भारतीय बीजेपी के ही साथ हैं। क्योंकि दुःख के समय में बीजेपी ने ही हमेशा से इनका साथ दिया है। वह कहते हैं की साल 2014 में देवेंद्र फाड़नवीस मुख्यमंत्री बने उसके बाद से आज तक उत्तर भारतीयों पर किसी की भी हिम्मत नहीं हुई की आंख उठाकर देख सके। सुख के सब साथी लेकिन दुःख में ना कोय ऐसा कहते हुए बताते हैं की बीजेपी ने हमेशा उत्तर भारतीय के दुःख सुख में खड़ी रही है इसलिए सभी उत्तर भारतीय बीजेपी के साथ हैं।
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