India News (इंडिया न्यूज), Dr. APJ Abdul Kalam Birth Anniversary: आज भारत के 11वें राष्ट्रपति और मिसाइल मैन के नाम से मशहूर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जयंती है। पूरे विश्व में इस खास दिन को विश्व छात्र दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का निधन 27 जुलाई 2015 को 83 साल की उम्र में हो गया था। डॉ. कलाम का मानना था कि इंसान के अंदर का छात्र कभी नहीं मरना चाहिए। इसलिए हर साल 15 अक्टूबर को उनके जन्मदिन के मौके पर छात्र दिवस भी मनाया जाता है। आज डॉ. कलाम की जयंती के मौके पर जानते हैं डॉ. कलाम से जुड़ी कुछ रोचक बातें…
एक बार वैज्ञानिक परीक्षण के दौरान कलाम की जान खतरे में थी। तब उनके साथी सुधाकर ने अपनी जान जोखिम में डालकर उन्हें बचाया। उनके माथे पर पसीने की कुछ बूंदें इस बड़े हादसे का कारण बनीं जिसमें पूरी प्रयोगशाला जलकर राख हो गई। 1960 के दशक में थुंबा में ध्वनि रॉकेट के लिए पेलोड तैयार किया जा रहा था। पेलोड को रॉकेट की संरचना के साथ एकीकृत करना था। इस तैयारी में सुधाकर कलाम के साथ जुड़े थे।
अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा है, “मैं एसएलवी-3 उपग्रह प्रक्षेपण यान और पहली स्वदेशी मिसाइल ‘अग्नि’ की परियोजना टीम का प्रमुख था। सरकार और जनता को हमसे बहुत उम्मीदें थीं। मीडिया की भी काम पर पैनी नजर थी। एसएलवी पहले चरण में ही विफल हो गया। ‘अग्नि’ का परीक्षण भी मुश्किल दौर से गुजर रहा था। हम बहुत दबाव में थे। मैं और पूरी टीम चिंतित थी। नकारात्मक माहौल में हमारी सफलताएं भी धूमिल होती दिख रही थीं।” उस कठिन समय में वे और उनके साथी कमियों की समीक्षा करते रहे और आत्मचिंतन करते रहे। कलाम ऐसे समय में अपने साथियों के समर्पण और सफलता प्राप्त करने से पहले उनके द्वारा झेली गई कठिनाइयों को हमेशा याद रखते थे। उन्होंने लिखा, ‘मैंने अपने जीवनकाल में हर समय ऐसा महसूस किया और मैं उन भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकता।’
कलाम 11 जनवरी 1999 के वैज्ञानिक मिशन की विफलता को कभी नहीं भूल सकते, जिसमें जान गंवाने वाले आठ लोगों के रोते-बिलखते परिवार और विधवाओं ने उनसे पूछा था, “आपने हमारे साथ ऐसा क्यों किया?” 11 जनवरी 1999 को, हवाई निगरानी मंच के लिए बैंगलोर से दो विमान अराकोनम-चेन्नई तट पर भेजे गए थे। इसमें एक एवरो था जिसके ऊपर मोटोडोम के रूप में विमान निगरानी प्रणाली लगी हुई थी। विमान के शरीर पर एक डिश जैसी संरचना थी। यह दस हजार फीट तक उड़ सकता था और रडार प्रयोगों के लिए उतारा गया था।
एव्रो के उड़ान भरने से पंद्रह मिनट पहले, रडार परीक्षण AN.32 ने बैंगलोर से उड़ान भरी। प्रयोग प्रक्रिया लगभग डेढ़ घंटे तक सुचारू रूप से चली। AN.32 चार बजे अराकोनम तट पर पहुँच गया। एवरो ए.एस.पी. ने उसी समय अराकोनम के लिए उड़ान भरी। 10,000 से 5,000 फीट की ऊंचाई तक सब कुछ सामान्य था, लेकिन एयरफील्ड से 5 नॉटिकल मील की दूरी पर और 3,000 से 5,000 फीट की ऊंचाई पर मोटोडोम नीचे गिर गया और विमान का संतुलन बिगड़ गया और वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस दुर्घटना में विमान में सवार सभी आठ लोगों की जान चली गई। उनके शवों का कोई पता नहीं चला। शोकाकुल परिवारों को सांत्वना देने के लिए मृतकों के नाम वाले ताबूत रखे गए।
कलाम को इस हादसे की जानकारी साउथ ब्लॉक में डिफेंस रिसर्च की मीटिंग के दौरान मिली। वे तुरंत एयर चीफ मार्शल ए.वाई. टिपनिस के साथ बेंगलुरु के लिए रवाना हो गए। यह हादसा बहुत ही भयानक था। शोक में डूबे कलाम खुद को दोषी मान रहे थे। उन्होंने लिखा है, ‘इस हादसे के सालों बाद मैं साउथ ब्लॉक ऑफिस से राष्ट्रपति भवन गया, लेकिन मेरे साथ उन विधवाओं की चीखें थीं। बेबस मां-बाप थे। बच्चों की चीखें थीं। यह सब सोचकर ही मेरा दिल टूट जाता है। जब विज्ञान और रक्षा प्रौद्योगिकी में नए आविष्कारों की चर्चा होगी, तो क्या सत्ताधारी लोग प्रयोगशालाओं से लेकर खेतों तक उनके लिए किए गए बलिदानों को याद रखेंगे? हमें पता होना चाहिए कि किसके परिश्रम और बलिदान ने हमारे किले बनाए हैं? कलाम कहते थे, “खुद को मोमबत्ती मत समझो, बल्कि पतंगा समझो। सेवा की शक्ति को समझो। हम राजनीति को ही राष्ट्र निर्माण मानते हैं। लेकिन राष्ट्र का निर्माण कड़ी मेहनत, निडरता और बलिदान से होता है।”
राष्ट्रपति बनने के बाद कलाम एक अलग भूमिका में थे। अब उनके पास नए विषयों पर सोचने और समझने और जनता से जुड़ने का अवसर था। 2002 में अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही उन्होंने तय कर लिया था कि वे अपने महान देश को समझने के लिए देश के हर हिस्से में पहुंचेंगे। उनकी कोशिश हर क्षेत्र की आबादी की जीवनशैली, जरूरतों और समस्याओं को करीब से समझना और उनके समाधान में योगदान देना था। वे देश के अब तक के एकमात्र राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान सड़क, रेल और हवाई मार्ग से लक्षद्वीप को छोड़कर पूरे भारत की यात्रा की। उन्हें हमेशा इस बात का अफसोस रहा कि वे लक्षद्वीप नहीं जा पाए। इन यात्राओं के दौरान वे लाखों लोगों से मिले।
उन्होंने युवाओं पर खास ध्यान दिया, क्योंकि उनका उज्ज्वल भविष्य देश के विकास में सीधे तौर पर सहायक था। उनके भाषण, लेखन और सादगी ने लोगों को प्रेरित किया। राष्ट्रपति का पद संवैधानिक प्रमुख के रूप में पहचाना जाता है। लेकिन लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता ने उन्हें “जनता के राष्ट्रपति” का नाम और पहचान दी। दिलचस्प बात यह है कि इस जनता के राष्ट्रपति की सक्रियता कभी भी चुनी हुई सरकार के साथ कटुता या टकराव का कारण नहीं बनी।
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