India News(इंडिया न्यूज), First General Election: सोशल मीडिया और टेक्नोलॉजी के उन दौर में चुनाव लड़ने का तरीका भी काफी अलग था। आजादी के बाद जब पहले आम चुनाव हुए तो संसाधनों की भारी कमी थी। आजादी के बाद देश आर्थिक संकट से भी जूझ रहा था। ऐसे में इतने बड़े देश में चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के लिए यह एक अग्निपरीक्षा की तरह ही था। उनकी सरकार में संकटमोचक बनकर खड़े रहने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का पहले ही निधन हो चुका था। जबकि पंडित नेहरू पहली बार जनता के सामने परीक्षा देने जा रहे थे।

साल 1952 में पूरे देश में कांग्रेस का दबदबा था। हालांकि, तब तक आचार्य कृपलानी भी कांग्रेस से अलग हो चुके थे और किसान मजदूर प्रजा पार्टी बना चुके थे। इसके अलावा श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर जनसंघ पार्टी का गठन कर लिया था।

कैसे हुआ चुनाव प्रचार?

बता दें कि, आज के सोशल मीडिया के युग में बहुत ही शांत तरीके से चुनाव प्रचार होने लगा है। हालांकि, पहले आम चुनाव में चुनाव प्रचार में बहुत शोर था। चारों ओर पोस्टर, बैज और लाउडस्पीकर ही नजर आ रहे थे। विपक्ष ने पंडित नेहरू पर निशाना साधना शुरू कर दिया था। हालांकि पंडित नेहरू उस समय काफी लोकप्रिय थे। ऐसा माना जा रहा था कि उनकी जीत पक्की है। फिर भी पंडित नेहरू चुनाव को लेकर ज्यादा ढील नहीं देना चाहते थे। उन्होंने दो महीने तक अभियान चलाया और कम से कम 25 हजार मील की दूरी भी तय की। यहां तक कि उन्होंने हवाई यात्रा भी की और देश के कोने-कोने में प्रचार-प्रसार किया। वहीं विपक्ष पंडित नेहरू पर शरणार्थियों का पुनर्वास कर उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा रहा था। जबकि पंडित नेहरू विपक्ष के आरोपों का जोरदार जवाब दे रहे थे। उन्होंने छुआछूत और पर्दा प्रथा का मुद्दा भी सामने रखा। पंडित नेहरू जहां भी जाते थे, उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ जमा हो जाती थी।

 

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28 मंत्रीयों को चुनाव में मिली हार

पहला आम चुनाव 21 फरवरी 1952 को समाप्त हुआ था। जब नतीजे आए तो कांग्रेस को 499 में से 364 सीटें मिलीं। इस लिहाज से जनता ने कांग्रेस पार्टी को बड़ा जनादेश दिया था। इसके साथ ही विधानसभा चुनाव भी कराए गए। कांग्रेस को 3280 सीटों में से 2247 सीटें मिलीं थी। कुल मिलाकर 4500 सीटों पर चुनाव हुए थे। पंडित नेहरू ने फूलपुर सीट से चुनाव लड़ा था। उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की। पूरे देश में पंडित नेहरू की लहर थी। इसके बावजूद उनकी कैबिनेट के 28 मंत्री चुनाव हार गए। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी शामिल थे। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को भी हार का सामना करना पड़ा था। आचार्य कृपलानी फैजाबाद से चुनाव हार गए थे। हालांकि, बाद में उपचुनाव जीतकर वह भागलपुर से लोकसभा पहुंचे।

किसान मजदूर प्रजा पार्टी ने 144 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें से केवल 9 ही लोकसभा में पहुंचे। भारतीय जनसंघ को 49 निर्वाचन क्षेत्रों में से केवल तीन पर जीत मिली थी। जय प्रकाश नारायण की सोशलिस्ट पार्टी ने 254 में से 12 सीटें जीती थीं। इस चुनाव की पहली वोटिंग 25 अक्टूबर 1951 को हुई थी। महुआ में फरवरी के आखिरी हफ्ते में वोटिंग खत्म हुई थी।

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