India News (इंडिया न्यूज), Manmohan Singh Demise: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान भारतीय राजनीति और प्रशासन में एक अलग छाप छोड़ी। 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए गए बयान, “इतिहास मेरे प्रति दयालु होगा,” ने उनकी कार्यशैली और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को उजागर किया। यह बयान उनकी राजनीतिक यात्रा और आलोचनाओं को लेकर उनके विश्वास को दर्शाता है।

कैबिनेट में नियंत्रण और गठबंधन की मजबूरियां

मनमोहन सिंह से जब यह पूछा गया कि वे अपनी कैबिनेट में मंत्रियों पर नियंत्रण क्यों नहीं रख सके और क्यों चुप रहे, तो उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि गठबंधन की मजबूरियां होती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे पार्टी फोरम में हमेशा अपनी बात रखते रहे हैं और आगे भी ऐसा करते रहेंगे। उनके इस बयान ने उनकी व्यावहारिक राजनीति की झलक दी। हालांकि, विपक्ष उन्हें “मौन मोहन” कहकर कटाक्ष करता रहा, लेकिन उनकी चुप्पी कई बार उनकी गंभीरता और सोच-समझ कर निर्णय लेने की शैली को दर्शाती थी।

भ्रष्टाचार और राजनीतिक विवाद

मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल भ्रष्टाचार के मुद्दों से घिरा रहा। इस दौरान कई घोटालों के आरोप लगे, जिनमें 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला और कोयला घोटाला प्रमुख थे। राहुल गांधी द्वारा सरकार के एक अध्यादेश को फाड़ने की घटना ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए। इसके अलावा, उनका बयान कि “देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है”, भी विवादों में रहा। उन्होंने राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में समाज के पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों को विकास में बराबर की हिस्सेदारी देने की बात कही थी।

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रामसेतु पर विवाद और बीजेपी का हमला

मनमोहन सरकार ने यूपीए-1 के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामा देकर भगवान राम के अस्तित्व को नकारते हुए रामसेतु को एक प्राकृतिक संरचना बताया। यह कदम भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के निशाने पर आ गया। हालांकि, 2022 में केंद्र की बीजेपी सरकार ने भी संसद में कहा कि रामसेतु के मानव निर्मित होने के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। यह मुद्दा धार्मिक और सांस्कृतिक बहस का केंद्र बना रहा।

धर्मनिरपेक्षता और न्यायपालिका

प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद भी मनमोहन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले “हिंदुत्व जीने का तरीका है” को दोषयुक्त बताया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना की रक्षा करनी चाहिए। उनका यह बयान उनके धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

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मोदी द्वारा प्रशंसा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में मनमोहन सिंह की लोकतंत्र के प्रति निष्ठा की प्रशंसा की। उन्होंने उनके व्हीलचेयर पर आकर मतदान करने के उदाहरण को प्रेरक बताया। मोदी ने यह स्वीकार किया कि मनमोहन सिंह का यह कदम लोकतंत्र को मजबूत करने का प्रतीक था।

इतिहास और मनमोहन सिंह

मनमोहन सिंह की नेतृत्व शैली भले ही विवादों और आलोचनाओं से घिरी रही हो, लेकिन उनकी आर्थिक और प्रशासनिक नीतियों का दीर्घकालिक प्रभाव निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है। उन्होंने गठबंधन सरकार के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की और देश की प्रगति के लिए अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया।

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आज, जब उनकी सरकार के फैसलों को पीछे मुड़कर देखा जाता है, तो यह स्पष्ट होता है कि मनमोहन सिंह का विश्वास, कि “इतिहास उनके प्रति दयालु होगा,” एक सच्चाई में तब्दील हो रहा है।