India News (इंडिया न्यूज़), Gita Press History, नई दिल्ली: गीता प्रेस गोरखपुर के बारे में हर कोई जानता है। गीता प्रेस हिंदू धर्म की करोड़ों किताबों को प्रकाशित कर चुका है। गीताप्रेस को स्थापित हुए 100 साल पूरे हो गए हैं। जिस वजह से वह अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। केंद्र सरकार ने भी इसी बीच एक घोषणा की है कि 2021 के लिए गीता प्रेस को शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इस बाबत गीता प्रेस को बधाई देते हुए पीएम मोदी ने उनके योगदानों की सराहना की है। इस बीच गीतप्रेस पर राजनीतिक दलों में भी विवाद छिड़ चुका है। आज हम आपको गीताप्रेस गोरखपुर के इतिहास से जुड़ी कुछ जानकारी देंगे।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में साल 1923 में गीता प्रेस की स्थापना की हुई थी। मगर इससे पहले की भी इसकी कहानी बेहद रोचक है। दरअसल, साल 1921 में ही गीताप्रेस की नींव कोलकाता में स्थित गोविंद भवन ट्रस्ट ने रख दी थी। भगवद्गीता का प्रकाशन इस ट्रस्ट के जरिए होता था। लेकिन गीता में इसके प्रकाशन के दौरान कुछ गलतियां रह जाती थीं। ऐसे में जयदयाल गोयनका ने जब प्रेस के मालिक से इसे लेकर बात की तो प्रेस के मालिक ने साफ बोल दिया कि अगर गीता का प्रकाशन बिना किसी गलती के चाहिए तो अपनी अलग प्रेस स्थापित कर लें।
इसके बाद गोरखपुर में गीताप्रेस को स्थापित किया गया। हनुमान प्रसाद पोद्दार, जयदयाल गोयनका और घनश्याम दास जलान ने मिलकर 29 अप्रैल 1923 को गोरखपुर में गीताप्रेस की स्थापना की थी। जिसके बाद से ही लोग इसे गीता प्रेस गोरखपुर के नाम से जानने लगे। जिस किराए के मकान से इस प्रेस की शुरुआत शुरू हुई थी। साल 1926 में गीताप्रेस ने 10 हजार रुपये में उसी मकान को खरीद लिया था। जानकारी दे दें कि हिंदू धर्म की सर्वाधिक धार्मिक किताबों को प्रकाशित करने का श्रेय गीता प्रेस गोरखपुर को ही जाता है। गीता प्रेस की वजह से सरल व आसान भाषा में सभी धार्मिक किताबें समाज में मौजूद हैं। जिन्हें सभी पढ़ते और सीखते हैं।
गीताप्रेस गोरखपुर दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। ये अपनी पुस्तकों को 14-15 भाषाओं में प्रकाशित करता है। गीताप्रेस ने अब तक करीब 41.7 करोड़ पुस्तकों का प्रकाशन किया है। जिसमें 16.21 करोड़ पुस्तक सिर्फ श्रीमद्भगवद्गीता की हैं। इसके अलावा गीताप्रेस ने सूरदारस, रामचरितमानस, तुलसीदास और रामायण को भी प्रकाशित किया है। गीता प्रेस द्वारा गरुण पुराण, शिव पुराण आदि कई पुराणों की करोड़ों पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं।
गवर्निंग काउंसिल यानी ट्रस्ट बोर्ड इसका पूरा कार्यभार संभालती है। गीताप्रेस न तो विज्ञापन करके और न ही चंदा मांग के कमाई करता है। गीताप्रेस के खर्चों का वहन समाज के लोग ही करते हैं।
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