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Gyanvapi Case: ज्ञानवापी मामले में क्या है 'व्यासजी का तहखाना', जिसमें पूजा की मिली अनुमति

Shanu kumari • LAST UPDATED : January 31, 2024, 6:28 pm IST

India News (इंडिया न्यूज), Gyanvapi Case: वाराणसी की एक अदालत ने आज (बुधवार) ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में ‘व्यासजी का तहखाना’ में पूजा करने की अनुमति दे दी है। इसके साथ ही अदालत ने प्रशासन को अगले सात दिनों के अंदर पूजा के लिए सभी व्यवस्था करने का आदेश दिया है। यह आदेश जिला अदालत के न्यायाधीश ए के विश्वेश द्वारा दी गई है।

हिंदू पक्ष के वकील ने क्या कहा

हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि “हिंदू पक्ष को ‘व्यास का तेखाना’ में प्रार्थना करने की अनुमति दी गई है।” अदालत का फैसला मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी (एआईएमसी) के खिलाफ शैलेन्द्र कुमार पाठक व्यास द्वारा दायर एक मुकदमे के जवाब में दी गई है है।

क्या है व्यासजी का तहखाना मामला?

मस्जिद के परिसर में चार ‘तहखाने’ (तहखाने) हैं। जिनमें से एक अभी भी व्यास परिवार के कब्जे में है। यह परिवार यहीं रहते थें। शैलेन्द्र कुमार पाठक व्यास ने मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। अदालत से जिला मजिस्ट्रेट को तहखाने का रिसीवर नियुक्त करने का आग्रह किया था। याचिका के अनुसार, पुजारी सोमनाथ व्यास 1993 तक वहां पूजा-अर्चना करते थे।

जब अधिकारियों ने तहखाने को बंद कर दिया था। व्यास ने याचिका दायर की थी कि तहखाना में प्रवेश करने और पूजा फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि मस्जिद समिति के लोग तहखाने में आते रहते हैं। वे इस हिस्से पर कब्ज़ा कर सकते हैं। हालांकि इस आरोप को एआईएमसी के वकील अखलाक अहमद ने निराधार बताते हुए खारिज कर दिया।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रिपोर्ट 

हिंदू याचिकाकर्ताओं ने प्रार्थना के अधिकार की मांग करते हुए ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित कई अन्य मामले भी दायर किए हैं। संबंधित याचिका में अदालत द्वारा आदेशित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण से पहले एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था। एएसआई की व्यापक रिपोर्ट में मौजूदा संरचनाओं के गहन अध्ययन का हवाला दिया गया है। साथ ही साइट से बरामद विशेषताओं और कलाकृतियों का हवाला देते हुए यह निष्कर्ष निकाला गया है। जिसमें कहा गया कि 17 वीं शताब्दी में “मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था”।

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