इंडिया न्यूज, नई दिल्ली, (EC Appointments): सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता लाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिका में मांग की गई है कि चुनाव आयुक्त का चयन प्रधानमंत्री, सीजेआई और नेता विपक्ष की कमेटी को करना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल को पेश करने का केंद्र सरकार को आदेश दिया था। केंद्र ने गुरुवार को फाइल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखी, जिसके बाद मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने फैसला सुरक्षा रख लिया।
अचानक 24 घंटे से भी कम समय में मंजूरी पर भी सवाल
मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल देखकर पीठ ने पूछा कि 15 मई से पद खाली था और इसके बाद अचानक 24 घंटे से भी कम समय में नाम भेजने से लेकर मंजूरी देने की प्रक्रिया पूरी कर दी गई। उन्होंने सवाल किया कि 15 मई से 18 नवंबर के बीच क्या हुआ? पीठ ने पूछा, कानून मंत्री ने जो चार नाम भेजे, उन नामों में क्या विशेष बात है। उसमें से सबसे जूनियर अधिकारी को ही क्यों और कैसे चुना गया।
अरुण गोयल पद पर आने से पहले वीआरएस भी लिया
रिटायर होने जा रहे अधिकारी ने इस पद पर आने से पहले वीआरएस भी लिया। मामले की सुनवाई करने वाली जजों की बेंच का कहना था कि हाल में हुई नियुक्ति से अभी जारी चयन प्रक्रिया को बेहतर समझा जा सकेगा। बता दें कि इसी सप्ताह पंजाब कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण गोयल को देश के नए चुनाव आयुक्त के तौर नियुक्त किया गया था। उन्होंने शुक्रवार को उद्योग सचिव के पद से स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले ली थी।
चयन प्रक्रिया में कुछ गलत नहीं : केंद्र सरकार
केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट में मौजूद अटॉर्नी जनरल ने मामले की सुनवाई कर रही पीठ के सवालों के जवाब में कहा कि चयन प्रक्रिया में कुछ गलत नहीं हुआ है। पहले भी 12 से 24 घंटे में नियुक्ति हुई है। ये चार नाम डीओपीटी के डेटाबेस से लिए गए। वह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। उन्होंने आगे बताया, नाम लिए जाते समय वरिष्ठता, रिटायरमेंट, उम्र आदि को देखा जाता है। इसकी पूरी व्यवस्था है। आयु की जगह बैच के आधार पर वरिष्ठता मानते हैं।
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