India News (इंडिया न्यूज़), Himachal Pradesh: राज्यसभा में हाटी समुदाय जनजातीय बिल पास हुआ. हाटी समुदाय का संघर्ष 50 साल पुराना बताया जा रहा है. ये बिल लोकसभा में बीते 16 दिसंबर 2022 को पारित हुआ था. अब द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद 2 लाख लोगों को जनजातीय संविधानिक अधिकार मिल जाएगा. आपको बता दें पूर्व सीएम जयराम ठाकुर, सांसद सुरेश कश्यप, बलदेव तोमर के प्रयासों से हाटी समुदाय पर रिपोर्ट बनकर तैयार कर केंद्र को सौंपी थी.
कौन है हाटी समुदाय!
दरअसल हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की बॉर्डर बनाती हुई यहां से एक नदी बह रही है जिसे टोंस नदी के नाम से जाना जाता है. इसके बगल में एक नदी है जिसे गिरी नदी कहते हैं. गिरी और टोंस दोनों नदियां यमुना की सहायक नदी है जो आगे चलकर यमुना में ही मिल जाती हैं. गिरी और टोंस के बीच का ये जो इलाका है इसे ही ‘ट्रांस गिरी’ या ‘गिरी पार’ क्षेत्र कहते हैं. और इसी ट्रांस गिरी क्षेत्र में हाटी समुदाय रहता है, इसी समाज को विशेष समुदाय का अधिकार दिया गया है. हाटी समुदाय के लोग हाट यानी बाजारों में सब्जियां, फसल, मांस और ऊन आदि बेचने का काम करते थे. हाट बाजारों में दुकानें लगाने के कारण, लोग इन्हें बुलाने के लिए हाटी कहने लगे. टोंस नदी के दाहिने तरफ उत्तराखंड का देहरादून जिला है जहां पर जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र पड़ता है. गिरी पार में रहने वाले लोगों और जौनसार बावर क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बीच काफी सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक समानता होती थी. अब हुआ यूं कि साल 1967-68 में जौनसार बावर क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दे दिया, गया. और इसी के चलते ये इलाका हाटी समुदाय की अपेक्षा समृद्ध हो गया और खुद को उपेक्षित भी महसूस करने लगा और तभी से हाटी समुदाय भी अपने लिए जनजातीय क्षेत्र के दर्जे की मांग करने लगा.
हाटी समुदाय में खुशी की लहर
इस बिल के पास होने के बाद सियासत भी तेज हो गई है. महेंद्र धर्माणी का कहना है कि ये दर्जा हाटी समुदाय को बीजेपी ने दिलाया है. वहीं कांग्रेस का कहना है कि कांग्रेस सरकारें हमेशा हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा दिलाने के पक्ष में रही है. कांग्रेस का कहना है कि कांग्रेस ने इस संबंध में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एक रिसर्च पेपर भी पब्लिश करवाया था.
क्या है हाटी समुदाए की जोड़ीदारी प्रथा
इस समुदाय के लोग एक प्रथा को मानते हैं जिसे द्रौपदी या जोड़ीदारी प्रथा कहा जाता है. दरअसल इसी प्रथा में एक लड़की की शादी एक परिवार में दो या अधिक भाइयों से होती है. 21 वीं सदी में आपको ये सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन आज भी भारत में ये प्रथा प्रचलित है. इस प्रथा को लेकर कई बातें सामने आती है. पहली ये कि ये इलाके काफी दुर्गम स्थानों पर हैं घर का पुरुष शिकार के लिए बाहर जाता है. और कोई भी अप्रिय घटना हो जाए इसलिए महिलाएं 2 पतियों से शादी करती हैं इस प्रथा से औरतें विधवा होने से बचती हैं और इसलिए ही ये प्रथा प्रचलन में भी है. दूसरी तरफ ये भी बाते सामने आई है कि घरों में गरीबी का महौल था. ज्यादा जमीने नहीं होती थी एक परिवार में 2 बेटों की 2 बहुएं आएंगी फिर बंटवारा होगा इसलिए एक ही महिला के होने से दोनों बेटे एक ही छत के नीचे रहेंगे. ये प्रथा केवल हिमाचल और उत्तराखंड में प्रचलन में नहीं है बल्कि तमिलनाडु के टोडा समुदाय में भी ये प्रथा प्रचलन में है.
परिवार का बंटवारा ना हो जाए इसी के चलते ये प्रथा प्रचलन में आई. अब देखना ये होगा कि संसद के दोनों सदनों में बिल पास होने के बाद आखिर कब इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिलती है. गिरी पार में आज भी घराट का इस्तेमाल होता है. शायद आज की पीढ़ी घराट शब्द ना समझ पाए पर इस क्षेत्र को भी मुख्यधारा में आने का पूरा अधिकार है. सवाल ये भी है कि क्या जो संघर्ष हाटी समुदाए के लोगों ने 50 साल से केवल एक बिल पास होने के लिए लगाया. क्या उस गिरी पार क्षेत्र की स्थिती में कोई बदलाव हो पाएगा. महिलाएं और पुरुष जो संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं क्या उनके दैनिक जीवन में रत्ती भर भी बदलाव हो पाएगा.
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