इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
पिछले 3 महीने से पेट्रोल डीजल समेत रसोई गैस की कीमतें हर थोड़े दिन बाद बढ़ रही हैं। इसके कई कारण हैं। दरअसल, रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग को लगभग 3 महीने हो चुके हैं लेकिन अभी तक दोनों देशों के पास इस युद्ध से निकलने का एग्जिट प्लान नहीं बन पा रहा है। अमेरिका समेत यूरोप के कई देश महंगाई की मार झेल रहे हैं।

उधर, जियोपॉलिटिकल टेंशन के चलते इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड आयल का भाव 110 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर बना हुआ है। इसके चलते दुनियाभर में पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें बढ़ रही हैं। वहीं सप्लाई चेन भी बाधित हुई है। सप्लाई चेन बाधित होने से न केवल पेट्रोल और गैस बल्कि खाने पीने की वस्तुएं, खासतौर पर एडिबल आॅयल की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है।

ऐसे तय होती है एलपीजी की कीमतें

LPG Gas

एलपीजी की कीमतें रुपये और अमेरिकी डॉलर की एक्सचेंज रेट्स और अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क दर से निर्धारित होती हैं। वहीं यदि आपके मन में भी सवाल है कि क्या सरकार गैस की कीमत को नियंत्रित करती है? तो इसका सीधा जवाब यह है कि उनका इस पर बहुत कम नियंत्रण होता है। हां, नीतियां और कानून निश्चित रूप से एक भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन गैस की कीमतें काफी हद तक तेल की कीमतों से तय होती हैं और तेल की कीमतें आपूर्ति और मांग पर निर्भर होती हैं।

गैस की कीमतों को ये कारक करते हैं प्रभावित

गैसोलीन के खुदरा मूल्य में चार मुख्य घटक इसकी कीमत पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालते हैं इसमें सबसे पहला घटक है कच्चे तेल की कीमत। कच्चे तेल की कीमत यदि काम होगी तो उसका सीधा असर गैसोलीन के खुदरा मूल्य पर पड़ेगा। इसके अलावा Refinement लागत और जो लाभ होता है वे भी गैस की कीमतों पर प्रभाव डालता है। Distribution और Marketing लागत भी एक कारक है। इसमें कर सबसे ऊपर है। कर जितना अधिक होगा कीमतें उतनी प्रभावित होगी।

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