India News (इंडिया न्यूज़), Hum Mahilayen, फरीदाबाद: इंडिया न्यूज की तरफ से आज, 26 अगस्त को हरियाणा के फरीदाबाद में हम महिलाएं (Hum Mahilayen) कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। इसमें देश की वो महिलाएं अपने बारे में जनता को बताएंगी, जिन्होंने घर से लेकर काम तक को एक हिम्मत और जोश के साथ संभाला है। इसी कड़ी में श्री विश्वकर्मा स्किल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर ज्योति राणा, स्कूल ऑफ मीडिया स्टडीज की प्रोफेसर मैथिली गंजू और जवाहरलाल नेहरू गवर्नमेंट कॉलेज फरीदाबाद की प्रिंसिपल रुचिका खुल्लर कार्यक्रम में शामिल हुए।
श्री विश्वकर्मा स्किल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर ज्योति राणा ने महिलाओं की शिक्षा पर बात करते हुए कहा कि ये बात सही है कि हम अपने समाज में अपने चारों तरफ ये चीजें देखते हैं कि जो लड़कियां हैं जो महिलाएं हैं, जो बेटियां हैं हमारी उनको शिक्षा आगे तक ज्यादा न दी जाए। उतनी ही शिक्षा दी जाए जिससे कि वो अपना काम चला सकें और उनकी शादी बहुत अच्छे ढंग से हो सके और आगे वो बाधा न आए।
मैं बेटी और मुझे बेटी होने पर फक्र है। मैं एक छोटे से आती हूं और आपकी बात को बहुत अच्छी तरह से समझ सकती हूं, लेकिन मेरा उन बेटियों से भी ये कहना है कि अगर उनके अंदर अपनी इच्छा है, अपनी इच्छाशक्ति है और लगातार उस इच्छाशक्ति पर वो काम करती रहें। साथ ही अपनी बात को बड़ी विनम्रता से लेकिन बड़ी ही दृढता के साथ अपने परिवारों में और अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर रखती रहें तो वो जरूर इस मुकाम पर पहुंच जाती हैं कि उनको इस तरह का एक मंच नसीब हो जाए।
दूसरी बात जो मैं उन परिवारों के सभी सदस्यों के साथ कहना चाहती हूं जिनके घर में बेटियां हैं। “न जानें कौन सी सांसे लेती हैं ये बेटियां एक हवा में खुशबू सी भर देती हैं ये बेटियां… कहां एक्स रे और अल्ट्रासाउंड की मशीनों में उलझे हो…ओलपिंक को भी तिरंगे से रंग देती हैं बेटियां।”
स्कूल ऑफ मीडिया स्टडीज की प्रोफेसर मैथिली ने कहा कि लोगों को मीडिया के प्रति एक धारणा है कि वो महिलाओं के लिए सही जगह नहीं है। ये बस एक धारणा है और काफी बार जो इस तरह की बातें जो होती हैं ये किसी सीरियनेस से नहीं बोली जाती हैं एक कन्वीनियंस के तौर पर बोली जाती है जब आपको किसी चीज के लिए मना करना होता है। सच्चाई तो ये है कि मीडिया में औरतों ने अपना नाम बनाया है। मीडिया में बहुत औरतें है जो काम कर रही हैं। मैं मीडिया स्टडीज से आई हूं। मैं मानव रचना इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से हूं। हमारे यहां पर मीडिया का स्कूल है उसमें ज्यादातर लड़कियां ही आती हैं। साथ ही हमारा इंटरेक्शन जब भी मीडिया में होता है तो एंकर लड़कियों के साथ-साथ पीछे जो बेकेंड पर काम होता है। उसमें भी महिलाओं का बड़ा योगदान होता है।
अभी दो दिन पहले ही देखा कि अब तो चांद पर हम पहुंच गए हैं। पचास परसेंट महिलाओं का वो दल था। उनकी सोच थी। उनकी समझ थी। जो एक स्ट्रेटेजी बनाई गई थी वो उन महिलाओं द्वारा ही बनाई गई थी। वो अलग बात है कि अभी भी टोकनिजम में मर्द ही आगे रहते हैं और औरतों को इस बात से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। पर जो काम है वो औरतें कर रही हैं। वो जानती हैं और वो हैं हर फील्ड में आगे। हमें उस पर ध्यान देगा होगी क्योंकि अब कोई नहीं नाकार सकता है कि औरतों में वो गुन हैं जो आज की सदी में जरूरी हैं। हम सहनशील रहते हैं तो वो कमजोरी नहीं है वो एक मानसिक सिचुएशन है। जिससे हम क्राइसेस को सॉल्व करते हैं।
रुचिका खुल्लर ने कहा, महात्मा गांधी जी कि एक बात याद आ रही है कि आप अगर एक नारी को शिक्षित करते हैं तो मतलब आप एक पूरे परिवार को शिक्षित कर रहे हैं, मगर आप एक पुरूष को शिक्षित करते हैं तो मतलब आप एक इंडिविजुअल को शिक्षित कर रहे हैं। क्योंकि मैं उच्चतर शिक्षा विभाग से हूं। हमने एजूकेशन फॉर ऑल में देखा है कि स्कूल तक तो एजूकेशन फॉर ऑल दी जाती है। मगर उच्चतर शिक्षा तक बहुत कम लड़कियां पहुंच पाती हैं।
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