इंडिया न्यूज,ट्रेंड्रिंग, (If I apologize to God he will consider me a coward) : अगर मैं अब भगवान से अपने प्राणों की भीख मांगूगा तो वह मुझे डरपोक समझेंगे । फांसी के लिए तैयार तख्ते पर खड़े शहीद भगत सिंह को जब जेलद चरत सिंह ने कहा कि अपने वाहे गुरु को याद कर लो। भगत ने जवाब दिय की मैने ईश्वर को अपनी पूरी जिंदगी गरीबों के हक के लिए कोसा हैं । उनके आगे कभी गिडगिडाया नहीं । लेकिन अगर मैं अब उनसे माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नजदीक आ रहा है, इसलिए ये माफी मांगने आया है। ऐसा मैं करना नहीं चाहता हूं ।
लाहौर के शाहदरा से बुलाया था फांसी के लिए जल्लाद
शहीद भगत सिंह को फांसी देने के लिए कोई जल्लाद नहीं मिल रहा था । उसके बाद अंत में फांसी देने के लिए मसीह जल्लाद को लाहौर के पास शाहदरा से बुलाया गया था। जैसे ही भगत सिंह,राजगुरु,सुखदेव तीनों फांसी के तख्ते पर पहुंचे तो जेल “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…, ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘हिंदुस्तान आजाद हो’ के नारों से गूंजने लगा और अन्य कैदी भी जोर-जोर से नारे लगाने लगे। सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी थी। वहां मौजूद डॉक्टरों लेफ्टिनेंट कर्नल जेजे नेल्सन और लेफ्टिनेंट कर्नल एनएस सोधी ने तीनों के मृत होने की बात कही ।
अंग्रेज जेल की पिछली दीवार तोड़कर ले गए थे शव
भगत सिंह की फांसी को लेकर जेल के बाहर भीड़ इकट्ठी हो गई थी । अंग्रेज इतना डर गए थे कि उन्होंने जेल के पिछली दीवार तोड़कर एक ट्रक के माध्यम से तीनों के शवों को अपमानजनक तरीके से एक सामान की तरह डाल दिया गया। अंतिम संस्कार रावी के तट पर किया जाना था, लेकिन रावी में पानी बहुत ही कम था, इसलिए सतलुज के किनारे शवों को जलाने का फैसला लिया गया। लोगों को इस बात का पता चल गया ,वह वहां पहुंच गए । जिसे देखकर अंगेज अधजली लाश को वहीं छोड़कर भाग गए । इनके बाद तीनों के सम्मान में तीन मील लंबा शोक जुलूस नीला गुंबद से शुरू हुआ। पुरुषों ने विरोध में अपनी बाहों पर काली पट्टियां बांध रखी थीं और महिलाओं ने काली साड़ियां पहन रखी थीं।
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