- आजादी कम ही थी, केवल घर के काम तक सीमित थी ललिता की जिंदगी
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली, (India Engineers Day): अगर मन में किसी अच्छे मुकाम पर पहुंचने की इच्छाशक्ति हो तो वह व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में अपनी मंजिल पर पहुंच जाता है। चेन्नई की बेटी ए ललिता ने ऐसा ही करके दिखाया है। आजादी से पहले वह विपरीत परिस्थितियोंं में, जब महिलाओं के स्कूल-कॉलेज जाने पर पाबंदी थी तब 1943 में देश की पहली महिला इंजीनियर बनी थीं।
विश्वेश्वरैया की याद में आज के दिन मनाया जाता है इंजीनियर्स डे
15 सितंबर को जन्में भारत के महान इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की याद में देश में हर वर्ष 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे यानी अभियंता दिवस मनाया जाता है। अलग-अलग देशों में यह दिवस अलग-अलग तारीख को मनाया जाता हैं। विश्वेश्वरैया ने आधुनिक भारत की रचना की और देश को एक नया रूप दिया। कई बड़ी नदियों के लिए बांध और पुल बनाएं। उनके मार्ग पर चलकर ही देश को कई बड़े व होनहार इंजीनियर मिले जो अपने अपने क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहे हैं।
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थीं ललिता, 15 साल में शादी हुई, 18 में विधवा हो गई
ए. ललिता एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थीं। जब वह इंजीनियर बनीं, उस दौर में महिलाओं के कंधे पर कुप्रथाओं का बोझ होता था। महिलाओं को पढ़ने-लिखने की आजादी कम ही थी। उनका जीवन केवल घर के काम तक सीमित होता था। ऐसे समय में स्कूल जाना, पढ़ाई करना और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में करियर बनाना एक बड़ी और सराहनीय पहल थी। ललिता ने ऐसी ही स्थिति में इंजीनियर बनने का मुकाम हालिस किया है।
उनका पूरा नाम अय्योलासोमायाजुला ललिता था। 27 अगस्त 1919 को चेन्नई में जन्मीं ए ललिता अपने माता पिता की पांचवी संतान थी। उनके दो छोटे भाई-बहन और थे। सात बच्चों के परिवार में लड़कों को इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराई गई और बेटियों को बुनियादी शिक्षा तक ही सीमित रखा गया। ए ललिता के तीनों भाई इंजीनियर थे। जब ललिता महज 15 साल की थीं, तो उनकी शादी कर दी गई।
हालांकि शादी के समय वह मैट्रिक पास कर चुकी थीं। शादी के बाद उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन उनके पति की मौत ने ललिता को विधवा बना दिया। वह अपनी नन्ही से बेटी के साथ रहने लगीं और भविष्य के लिए चिंता करने लगीं। पिता ने बेटी ललिता के दर्द को समझा और उन्हें ससुराल से वापस मायके ले आए।
पति की मौत के बाद जीवन का नया दौर
पति की मौत के बाद ललिता के जीवन का नया दौर आया। खुद की और बेटी की जिंदगी को संवारने के लिए ललिता ने दोबारा शिक्षा शुरू करने के बारे में सोचा। वह अपने पिता और भाइयों की तरह नौ से पांच बजे वाली नौकरी करना चाहती थीं। ताकि काम के साथ अपनी बेटी को भी वक्त दे सकें।
बचपन से ही इंजीनियरिंग का प्रभाव
इंजीनियरिंग का प्रभाव उनपर बचपन से ही पड़ चुका था, ऐसे में इंजिनियरिंग को अपना लक्ष्य बनाते हुए उन्होंने पढ़ाई शुरू की। परिवार के समर्थन पर ललिता ने मद्रास कॉलेज आफ इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। उस दौरान लड़कियों के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज में हॉस्टल तक नहीं थे। दो और लड़कियों ने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया और ललिता समेत तीनों ने हॉस्टल में रहकर 1943 में अपनी डिग्री हासिल कर ली। इसी के साथ वह भारत की पहली महिला इंजीनियर बन गईं।
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