India News (इंडिया न्यूज), Inheritance Tax: इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के प्रमुख सैम पित्रोदा की अमेरिका के विरासत कर पर टिप्पणी ने भारत में चल रहे लोकसभा चुनावों के बीच एक राजनीतिक गरमाहट पैदा कर दिया है। पित्रोदा ने विरासत कर कानून के अमेरिकी उदाहरण का हवाला देते हुए पीएम मोदी के उन आरोपों पर पलटवार करते हुए एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया कि कांग्रेस देश की संपत्ति को पुनर्वितरित करने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि अगर किसी व्यक्ति के पास 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर की संपत्ति है, तो उसकी मृत्यु के बाद 45 प्रतिशत संपत्ति उसके बच्चों के पास जाती है। वहीं 55 फीसदी संपत्ति सरकार के पास जाती है। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए। हम उन नीतियों के बारे में बात कर रहे हैं जो सिर्फ अमीरों के लिए नहीं बल्कि लोगों के हित में हैं।

क्या है विरासत कर कानून?

बता दें कि अमेरिका में यह कर आम नहीं है और 50 में से केवल छह राज्यों में लागू है। यह कर उन लोगों पर लगाया जाता है जो किसी मृत व्यक्ति की संपत्ति विरासत में लेते हैं। कराधान उस राज्य पर निर्भर करता है जिसमें व्यक्ति रहता था या उसके पास संपत्ति थी। अमेरिका में संपत्ति कर और विरासत कर के बीच काफी अंतर है। पूर्व को संपत्ति के वितरण से पहले ही उस पर लगाया जाता है, जबकि बाद वाला केवल लाभार्थियों के विरुद्ध लगाया जाता है। अमेरिका में विरासत कर छह अमेरिकी राज्यों द्वारा एकत्र किए जाते हैं। जिनमें आयोवा, केंटकी, मैरीलैंड, नेब्रास्का, न्यू जर्सी और पेंसिल्वेनिया शामिल है।

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क्या भारत में कभी विरासत कर था?

बता दें कि भारत में विरासत कर कानून था, परंतु तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने साल 1985 में इसे खत्म नहीं कर दिया था। संपत्ति शुल्क कर का एक रूप था जिसकी गणना किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय की जाती थी, इसे संपत्ति शुल्क अधिनियम, 1953 के माध्यम से पेश किया गया था। केवल तभी देय होगा जब संपत्ति के विरासत वाले हिस्से का कुल मूल्य बहिष्करण सीमा से अधिक हो। भारत में संपत्तियों पर यह 85% तक निर्धारित किया गया था। कम से कम ₹ 1.5 लाख मूल्य की संपत्तियों पर 7.5% की दर से कर लगाया गया। इसका उद्देश्य आय असमानता को कम करना था लेकिन 1985 में इसे ख़त्म कर दिया गया।

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