India News (इंडिया न्यूज), Taxpayers Money Wasted In Parliament Winter Session: महिमा कटारिया की रिपोर्ट: संसद के शीतकालीन सत्र के चार दिन बीत चुके हैं। दोनों सदनों की कार्रवाई 24 घंटे चलनी चाहिए थी लेकिन अभी तक एक घंटा 10 मिनट की कार्रवाई हो पाई है। कामकाज जीरो हुआ है। प्रोडक्टिविटी 10 से लेकर 15% भी नहीं है। महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की भारी पराजय और अमेरिका में अदानी ग्रुप पर लगे रिश्वत के आरोपों के बाद से ही यह साफ हो गया था शीतकालीन सत्र पर घना कुहासा छाएगा। विपक्ष अपनी पराजय को अदानी मुद्दे शोर में डुबाने का भरपूर प्रयास करेगा।
संविधान दिवस के मौके पर आयोजन के बाद 3 दिन की कार्रवाई नहीं चल पाई है। दोनों सदन बिना कामकाज के आज भी उठ गए। विपक्ष का तर्क ये है कि वह जनता से जुड़े मुद्दे उठाना चाहता है। सरकार ने कई महत्वपूर्ण बिल लाइनअप किए हैं। दोनों सदनों के सभापति कह रहे हैं कि सदन के समय की बर्बादी रोकी जाए। मणिपुर की जातीय हिंसा और संभल में सांप्रदायिक दंगों ने भी आग में घी का काम किया है।
देखते हैं कि संसद के समय की बर्बादी का आर्थिक पहलू क्या है। संसद की कार्रवाई के संचालन में प्रति मिनट ढाई लाख रुपए लगते हैं। यानी मौजूदा सत्र के पहले चार दिन में ही करीब 35 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद संसद में कोई कामकाज नहीं हो पाया है। 17वीं लोकसभा का आखिरी वर्ष भी कड़वी यादों से भरा है। 2023 में संसद की कार्यवाही में समय की बर्बादी 133 करोड रुपए की हुई थी।
विपक्ष का कहना है कि संसद की कार्रवाई में बाधा डालना भी विरोध प्रकट करने का एक औजार है। सरकार अगर जनता के मुद्दों को नहीं सुनती तो कार्रवाई में बाधा डालना ही एकमात्र विकल्प है। विकास भैया भी कहना है कि संसद को चलाने की जिम्मेदारी सरकार पर है। सरकार अपने अ हम विधायक पास करना चाहती है। जनता के मुद्दे नोट बाय या फिर बिल पास ना हो पाए दोनों में ही तो जनता का ही नुकसान है।
शीतकालीन सत्र का अभी एक सप्ताह होता है और तीन सप्ताह अभी बाकी है। सत्ता पक्ष या विपक्ष की ओर से संसद को पटरी पर लाने की प्रयास दिखाई नहीं दे रही है। 17वीं लोकसभा कुल मिलाकर 330 दिन बैठ पाई थी। आजाद भारत के इतिहास में इतने कम समय तक संसद नहीं चली। 18वीं लोकसभा क्या इस रिकॉर्ड की बराबरी करने पर तुली है। आने वाला समय बताया कि संसद के समय का और जनता के पैसे का सदुपयोग किस तरह से हो पता है।
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