India News(इंडिया न्यूज),Indonesia: यह कुछ साल पहले की बात है। इंडोनेशिया के शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री अनीस बसवेदान भारत आए थे। इस दौरे के दौरान उनका एक बयान खास तौर पर सुर्खियों में रहा। अनीस ने कहा, ‘हमारी रामायण पूरी दुनिया में मशहूर है। हम चाहते हैं कि हमारे कलाकार साल में कम से कम दो बार भारत के विभिन्न शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन करें। हम भारत में नियमित रूप से रामायण महोत्सव का आयोजन भी करना चाहेंगे।
इस सिलसिले में अनीस ने तत्कालीन केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा से भी मुलाकात की थी। दोनों ने इस प्रस्ताव पर गंभीरता से चर्चा की। इसके बाद अपने एक बयान में अनीस ने कहा, ‘हम भी चाहते हैं कि भारतीय कलाकार इंडोनेशिया आएं और वहां रामायण का मंचन करें। कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि दोनों देशों के कलाकार एक मंच पर एक साथ आएं और रामायण प्रस्तुत करें। यह दो संस्कृतियों के मिलन का खूबसूरत रूप होगा। दोनों देशों का मानना है कि रामायण के इस आदान-प्रदान से उनके रिश्ते और मजबूत होंगे। इससे दोनों के पर्यटन को भी फायदा होगा।
लेकिन यह सिर्फ पर्यटन के बारे में नहीं है। मुस्लिम आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश अगर भारत में अपनी रामायण का मंचन करना चाहता है तो बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता के इस दौर में इसका अर्थ सांस्कृतिक आदान-प्रदान से भी आगे निकल जाता है।
90 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेशिया पर रामायण का गहरा प्रभाव है। प्रसिद्ध हिंदी विद्वान फादर कामिल बुल्के ने 1982 में अपने एक लेख में कहा था, ’35 साल पहले मेरे एक मित्र ने जावा के एक गांव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर उनसे पूछा, आप रामायण क्यों पढ़ते हैं? जवाब था, ‘मैंने एक बेहतर इंसान बनने के लिए रामायण पढ़ी।’
वस्तुतः रामकथा इंडोनेशिया की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग है। कई लोग हैं जो यह देखकर हैरान हैं, लेकिन सच तो यह है कि दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला यह देश रामायण से जुड़ी अपनी सांस्कृतिक पहचान को लेकर बहुत सहज है। मानो वह समझता हो कि धर्म मनुष्य की अनेक पहचानों में से एक है। रामायण को वहां रामायण काकावीन (काव्य) कहा जाता है। भारत दौरे पर आए अनीस बासवेदन ने भी कहा, ‘हम अपने स्कूलों में शिक्षा देने के लिए रामायण के पात्रों का भी इस्तेमाल करते हैं।’
इसके बारे में एक दिलचस्प कहानी भी सुनने को मिलती है। कहा जाता है कि इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो के समय पाकिस्तान का एक प्रतिनिधिमंडल इंडोनेशिया के दौरे पर था। इसी दौरान उन्हें वहां रामलीला देखने का मौका मिला। प्रतिनिधिमंडल में शामिल लोग इस बात से हैरान थे कि इस्लामिक गणराज्य में रामलीला का मंचन क्यों किया जाता है। उन्होंने ये सवाल सुकर्णो से भी पूछा। उन्हें तुरंत उत्तर मिला कि ‘इस्लाम हमारा धर्म है और रामायण हमारी संस्कृति है।’
इतिहास हमें बताता है कि रामायण का इंडोनेशियाई संस्करण सातवीं शताब्दी के दौरान मध्य जावा में लिखा गया था। तब यहां मेदांग राजवंश का शासन था। लेकिन रामायण के इंडोनेशिया में आने से बहुत पहले ही रामायण इंडोनेशिया में आ चुकी थी। ईसा से कई शताब्दी पहले लिखी गई वाल्मिकी रामायण के किष्किंधा कांड में वर्णित है कि कपिराज सुग्रीव ने सीता की खोज में पूर्व की ओर निकले दूतों को यवद्वीप और सुवर्ण द्वीप जाने का आदेश दिया था। कई इतिहासकारों के अनुसार यही आज का जावा और सुमात्रा है।
भारत में इंडोनेशियाई रामायण के मंचन पर महेश शर्मा ने कहा कि यह एक अच्छा प्रस्ताव है। उन्होंने इस पर आगे बढ़ने की बात भी कही। एक अखबार से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘रामायण और रामलीला हमारी विरासत और पहचान के अभिन्न तत्व हैं। यदि हम इसकी समृद्धि को अन्य देशों के लोगों के साथ साझा करते हैं, तो यह हमारे देश के बारे में हमारी समझ को समृद्ध करेगा।’ हालाँकि, लगभग एक साल बीत चुका है और अभी तक इस पर कुछ नहीं किया गया है।
यह भी पढ़ेंः-
ICSE-ICE Board Exam: सीबीएसई के बाद अब आईसीएसई और आईसीई के स्टूडेंट्स का भी इंतजार…
Maharashtra New CM: सीएम पद को लेकर महायुति में सबकुछ ठीक नहीं है। बता दें…
India News (इंडिया न्यूज़)Skin Care Tips: बढ़ती उम्र के साथ चेहरे पर झुर्रियां आना एक…
IPL 2025 Mega Auction KKR: आईपीएल 2025 के मेगा ऑक्शन में कई खिलाड़ी अनसोल्ड रहे।…
Air Pollution News: वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने सोमवार को दिल्ली सरकार को निर्देश…
India News UP(इंडिया न्यूज़)Up News: यूपी के ज्योतिबा फुले नगर में एक अजीबोगरीब मामला सामने…