India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: कांग्रेस एक दशक बाद चुनावों में हुई हार के कारणों का पता लगाने के लिए एक कमेटी गठित कर सकती है। पार्टी सूत्रों की माने तो कमेटी लोकसभा चुनाव में हर राज्य के चुनाव परिणामों की समीक्षा तो करेगी ही साथ ही यह भी पता लगाएगी कि आखिर क्या कारण रहे कि पार्टी हिंदी बेल्ट वाले राज्यों में ठीक प्रदर्शन नहीं कर पाई। आंध्रप्रदेश,उड़ीसा और दूसरे विधानसभा वह क्यों नहीं जीत पाई। कांग्रेस इस बार लोकसभा चुनाव में केवल 99 ही सीट जीत पाई थी। हालांकि पार्टी इसे बड़ी उपलब्धि बता उत्सव मना रही है लेकिन वहीं इस बात से भी चिंतित है कि प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं रहा। कांग्रेस ने 2014 के लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार के कारणों का पता लगाने के लिए अपने वरिष्ठ नेता ए के एंटनी की अगुवाई में कमेटी बनाई थी। हालांकि उस कमेटी के सुझावों पर पार्टी ने कोई अमल नहीं किया। एंटनी कमेटी का सबसे अहम सुझाव मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति से बचने का था।
इसके बाद फिर कांग्रेस ने कभी कोई कमेटी गठित ही नहीं की। राहुल गांधी के अध्यक्ष रहते हुए पार्टी की लगातार कई राज्यों में हार हुई। पार्टी 2019 का लोकसभा का चुनाव भी बुरी तरह हारी, लेकिन पार्टी ने कभी भी हार की वजह जानने की कोशिश ही नहीं की। पार्टी के मुखिया राहुल गांधी ने नेताओं को जिम्मेदार ठहरा अध्यक्ष पद छोड़ महज खाना पूर्ति की। यही नहीं इस बार के लोकसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में हारी,लेकिन हार के कारणों पर आज तक चर्चा ही नहीं की गई। पूरी पार्टी कारणों का पता लगाने के बजाए केवल और केवल गांधी परिवार के बचाव में जुटी रही। गांधी परिवार ने भी कोशिश नहीं की कि आखिर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में क्यों हारे।
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अब जब लोकसभा चुनाव 2024 की बारी आई तो फिर एक ही कोशिश की गई पूरे विपक्ष को एक कर जैसे तैसे बीजेपी को हराओ। उसका नतीजा यह रहा कि कांग्रेस को कम विपक्ष ज्यादा फायदे में रहा। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी फिर ताकतवर हो गई। जानकारों का मानना है कि जाति का कार्ड खेला कांग्रेस ने लेकिन लाभ मिला सपा को। कांग्रेस अकेले भी लड़ती तो शायद इतनी सीट ले ही आती। अब सपा के शरण में रहना पड़ेगा। भविष्य में सपा कांग्रेस को कितना भाव देती है देखना पड़ेगा।
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कांग्रेस भविष्य में होने वाले राज्यों के चुनाव जीतती है तो फिर छोटे दल भाव देंगे। तभी उत्तर प्रदेश का गठबंधन बचेगा। बिहार में तो कमजोर कांग्रेस ने राजद के आगे पहले से ही आत्मसमर्पण किया हुआ है। कांग्रेस हिंदी बेल्ट वाले राजस्थान और हरियाणा में जीती जरूर। लेकिन छोटे दलों के साथ गठबंधन से। उसका ही नतीजा है कि परिणामों के बाद राजस्थान में सहयोगी आरएलपी के नेता हनुमान बेनीवाल कहने लगे हमारी वजह से कांग्रेस जीती और उपचुनाव में उन्होंने चार सीट पर दावा ठोक कांग्रेस की परेशानी बढ़ा दी है। हरियाणा में पार्टी गुटबाजी के चलते टूट गई।
हिंदी वाले राज्यों में हुई दुर्दशा, गुजरात, उड़ीसा, बंगाल, आंध्र प्रदेश में हुई करारी हार और सत्ता वाले तेलंगाना, कर्नाटक में खराब प्रदर्शन को लेकर पार्टी के अंदर समीक्षा कराने का दबाव बढ़ रहा है। मध्य प्रदेश, हिमाचल, उत्तराखंड में एक भी सीट नहीं जीत पाना बड़ा झटका माना जा रहा है। हालांकि पार्टी के नेता इस हार को 99 सीटों में मिली जीत को आगे कर दबाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन पार्टी में चिंता है। सूत्रों की माने तो पार्टी जल्द ही एक कमेटी गठित कर परिणामों का मंथन करेगी। बीते दस साल में पार्टी हिंदी बेल्ट में तो कमजोर हुई है दक्षिण में भी स्थिति बिगड़ी है।
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