इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:

INS Kalvari Submarine भारतीय नौसेना को करीब 54 साल पहले आज ही के दिन पहली INS Kalvari Submarine (पनडुब्बी) मिली थी। सोवियत संघ (USSR) से इस पनडुब्बी को लिया गया था और USSR ने आज के दिन वर्ष 1967 में लातविया की रीगा बंदरगाह पर नौसेना को कलवरी सौंपी थी।

रीगा अब लात्विया की राजधानी है। नौसेना को मिलने के बाद कलवरी 30 हजार 500 किलोमीटर से ज्यादा का सफर कर जुलाई 1968 में विशाखापट्टनम पहुंची। जब यह पनडुब्बी रीगा से विशाखापट्टनम के रास्ते पर थी, उसी दौरान तीन ताकतवर देशों अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत संघ की तीन पनडुब्बियां समुद्र में डूब गई थीं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस दौर में सबमरीन का संचालन कितना कठिन था।

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1971 की जंग में दिखाए थे जौहर (INS Kalvari Submarine)

कलवरी ने भारत-पाकिस्तान के 1971 में हुई जंग में अपने जौहर दिखाए। आठ से नौ दिसंबर की रात को भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह तबाह कर दिया था। इसे आपरेशन को ट्राइडेंट नाम दिया गया था और इसमें कलवरी ने अहम भूमिका निभाई थी।

30 साल के बाद 1996 में रिटायर हुई (INS Kalvari Submarine)

करीब 30 साल के अपने गौरवशाली इतिहास के बाद 31 मार्च 1996 को कलवरी रिटायर हो गई। कलवरी का नाम हिंद महासागर में पाई जाने वाली खतरनाक टाइगर शार्क के नाम पर रखा गया था।

नए तेवर और कलेवर के साथ 2019 में फिर लौटी (INS Kalvari Submarine)

देश के इतिहास की पहली पनडुब्बी को फिर से लाने का भारत  सरकार ने फैसला किया। इसके बाद 2019 में कलवरी को नए कलेवर और तेवर के साथ पुन: नौ सेना में शामिल किया गया। फ्रांस के सहयोग से देश में ही निर्मित स्कार्पीन श्रेणी की आधुनिकतम पनडुब्बी को नौसेना में शामिल किया गया तो इसका नाम भी कलवरी ही रखा गया हैं ।

दुनिया की सबसे घातक पनडुब्बियों में से एक (INS Kalvari Submarine)

कलवरी को दुनिया की सबसे घातक पनडुब्बियों में से एक माना जाता है। भारत में ऐसी 5 और पनडुब्बी तैयार हो रही है। दरअसल, आधुनिकतम तकनीक से निर्मित पनडुब्बी एक बेहतरीन मशीन है और समुद्र के नीचे एक खामोश प्रहरी की तरह रहती है। जरूरत पड़ने पर यह दुश्मन की नजर बचाकर सटीक निशाना लगाने और भारी तबाही मचाने में सक्षम होती है।

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