India News(इंडिया न्यूज),Jagdeep Dhankhar: विपक्ष ख़फ़ा है चलेगा, हंगामा करेंगे तो भी चलेगा, हो हल्ला भी बर्दाश्त हो सकता है, लेकिन लोकतंत्र के मंदिर में उपराष्ट्रपति की मिमिक्री मर्यादा का उल्लंघन है। जिस संसद में शिष्टाचार का इतिहास है, लोकतंत्र के उस मंदिर में उपराष्ट्रपति का माखौल उड़ाना तकलीफ़ देता है। देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद यानी उप राष्ट्रपति पद पर आसीन ओपी धनखड़ दर्द में हैं। इस दर्द की वजह समझिए।
दरअसल संसद के दोनों सदनों में हंगामा और विरोध करने के चलते 140 से ज़्यादा सांसदों को सस्पेंड कर दिया गया। देश के इतिहास में अबतक का ये रिकार्ड है। जो सांसद सस्पेंड हुए वो संसद की सीढ़ियों पर बैठकर विरोध कर रहे थे। लोकतंत्र में ऐसा होता है, मगर इस जमात में अचानक टीएमसी के सांसद कल्याण बनर्जी ने राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ की मिमिक्री करनी शुरु कर दी। सांसदों को इसमें मज़ा आ रहा था और आप अगर वीडियो देखें तो राहुल गांधी कल्याण बनर्जी की उस मिमिक्री का वीडियो शूट कर रहे थे। मज़े लिए जा रहे थे, ठहाके लग रहे थे और वीडियो शूट चल रहा था।
ये जगदीप धनखड़ का उपहास नहीं है, लोकतांत्रिक मर्यादाओं का है, संसदीय गरिमा का है, संवैधानिक पदों का है। जगदीप धनखड़ की जगह उप राष्ट्रपति कोई भी हो सकता था, सवाल ये है कि संसद की सीढ़ियों पर सार्वजनिक रूप से आप उसका मज़ाक उड़ाना सही समझते हैं, यही आपकी समझ की गवाही है। ये कोई पहला मौक़ा नहीं था जब उपराष्ट्रपति के पद के साथ अपमानजनक बर्ताव हुआ हो। अभी हाल ही में 6 दिसंबर को जिस रोज़ बाबा साहेब अंबेडकर की पुण्यतिथि थी, उस आयोजन में उपराष्ट्रपति धनखड़ और प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल हुए थे।
इस दौरान जब उपराष्ट्रपति अपनी गाड़ी से उतरते है तब पीएम मोदी उनका हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं, इसके बाद उपराष्ट्रपति भी उन्हें नमस्ते करते हैं। विपक्ष ने ये वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करते हुए ट्रोल कर दिया। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर वीडियो शेयर करते हुए लिखा। “भारत के उपराष्ट्रपति”- यानी विपक्ष लगातार उपराष्ट्रपति का उपहास उड़ा रहा है। खिलखिलाकर हंस रहा है। नक़ल उतार रहा है। लोकतांत्रिक मर्यादाओँ को तार तार कर रहा है। किसी ने सही कहा है। ”बा अदब … बा नसीब, बे अदब… बद नसीब”।
राहुल गांधी का किसी की मिमिक्री करते हुए वीडियो बनाना साबित करता है कि उन्हें परिपक्व होने की ज़रूरत है। संसद के अंदर और बाहर विरोध जायज़ है, कॉमेडी नाजायज़। राजनीति में ‘तमीज़’ और ‘शऊर’ आपको ‘मनमोहन’ और ‘अटल’ बनाते हैं। सियासत में हल्कापन आपको ‘कल्याण बनर्जी’ बना देता है। विरोध कीजिए ज़रूर कीजिए, सवाल भी उठाइए। आपको रोका किसने है। पर उपराष्ट्रपति की मिमिक्री करके आप जनहित के मुद्दों से भटक रहे हैं।
अनुशासित राजनेता नज़ीर बनते हैं, ग़ैर अनुशासित होना आपको हाशिए पर डाल देता है। 140 से ज़्यादा सांसदों का निलंबन सवालों के घेरे में है, पर घेरा तोड़ने के लिए विरोध का बेहतर तरीक़ा अख़्तियार किया जा सकता था। जगदीप धनखड़ की मिमिक्री लोकतंत्र का ‘काला अध्याय’ है। ऐसे ‘काले अध्याय’ से संसद का इतिहास भरा पड़ा है- अगस्त 2021 में रूल बुक फाड़ देना, फरवरी 2014 में चाकू निकालना और मिर्च स्प्रे छिड़क देना, जुलाई 2008 में संसद में नोटों की गड्डियां उछाल देना। काश कि इतिहास से सबक़ ले पाते कल्याण और राहुल।
कल्याण बनर्जी जी, आपकी मिमिक्री से देश शर्मिंदा है, वक़्त रहते माफ़ी मांग लीजिए, शायद डैमेज कंट्रोल हो जाए। सियासत में आदर्श ज़रूरी हैं, आचार-विचार-व्यवहार उससे ज़्यादा ज़रूरी। बशीर बद्र का वो शेर तो याद ही होगा कि-
“दुश्मनी जम कर करो, लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों”
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