विशेष दर्जे की बहाली का प्रस्ताव
नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला की सरकार ने जम्मू-कश्मीर को एक बार फिर से 5 अगस्त 2019 से पहले वाले विशेष अधिकार देने के लिए विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव में सरकार ने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू करे और राज्य को फिर से विशेष दर्जा बहाल किया जाए। उमर अब्दुल्ला की पार्टी ने इसे एक ऐतिहासिक कदम बताते हुए घाटी के लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए इस प्रस्ताव को पारित करने का निर्णय लिया।
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बीजेपी का विरोध और नारेबाजी
जैसे ही प्रस्ताव विधानसभा में प्रस्तुत हुआ, बीजेपी के विधायकों ने इसका कड़ा विरोध करना शुरू कर दिया। बीजेपी विधायक नारेबाजी करने लगे और “जय श्री राम” के नारे लगाने लगे, जिससे सदन का माहौल गर्मा गया। इस नारेबाजी के बाद स्थिति और बिगड़ गई, और दोनों पक्षों के बीच हाथापाई की नौबत आ गई। बीजेपी के विधायक वेल (विधानसभा का केंद्रीय स्थान) में आ गए और प्रस्ताव के कागजात को फाड़ने की कोशिश की।
मारपीट और झड़प
विधानसभा में यह हिंसा तब और बढ़ गई जब दोनों पक्षों के नेताओं के बीच शारीरिक झड़पें हुईं। नेशनल कांफ्रेंस और बीजेपी के विधायक एक-दूसरे से भिड़ गए और यह दृश्य टीवी चैनलों पर लाइव प्रसारित हुआ। यह दृश्य न केवल जम्मू-कश्मीर, बल्कि पूरे देश में छा गया, और राजनीति में असहमति की एक नई तस्वीर सामने आई।
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प्रस्ताव का पारित होना और एलजी की मंजूरी
उमर अब्दुल्ला की सरकार ने बहुमत के बल पर इस प्रस्ताव को पारित करा लिया। हालांकि, यह प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की मंजूरी के बिना कोई कानूनी प्रभाव नहीं डाल सकता, क्योंकि जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्र शासित प्रदेश है और यहां की सरकार के फैसले केंद्र सरकार के साथ समन्वय में होते हैं।
राज्य में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हुए हैं, और वर्तमान में जम्मू-कश्मीर की राजनीति एक नए मोड़ पर है। पहले के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस प्रस्ताव को पेश करके केंद्र सरकार से अपने राज्य के लिए विशेष अधिकारों की मांग की है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह प्रस्ताव केंद्रीय सरकार से किसी भी हालत में स्वीकृत नहीं होगा, क्योंकि 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया गया था।
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जम्मू-कश्मीर का नया राजनीतिक परिदृश्य
5 अगस्त 2019 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को जो विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था, उसे केंद्र सरकार ने समाप्त कर दिया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर को एक केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया। यह कदम सरकार के लिए एक ऐतिहासिक था, लेकिन राज्य के स्थानीय दलों, जैसे कि नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के लिए यह एक बहुत बड़ी राजनीतिक हार थी। इस कदम के विरोध में जम्मू-कश्मीर में कई राजनीतिक दलों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए थे।
अब, जब राज्य में विधानसभा चुनावों के बाद राजनीतिक दल अपने मुद्दे उठा रहे हैं, तो नेशनल कांफ्रेंस का यह प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर के पुराने विशेष दर्जे को बहाल करने के लिए है। हालांकि, बीजेपी इसका कड़ा विरोध करती है, और राज्य के वर्तमान राजनीतिक हालात में इस प्रस्ताव की स्वीकृति बेहद मुश्किल नजर आती है।
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जम्मू-कश्मीर विधानसभा में गुरुवार को हुई इस मारपीट और विवाद ने राज्य की राजनीति को एक बार फिर से चर्चा का विषय बना दिया है। यह घटनाक्रम यह साफ करता है कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा और अनुच्छेद 370 पर बहस केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि राज्य के नागरिकों की पहचान और उनके अधिकारों का भी सवाल है। हालांकि, भाजपा और नेशनल कांफ्रेंस के बीच यह विवाद असहमति की एक और परत खोलता है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि राज्य के भविष्य को लेकर विचारधाराओं के बीच गहरे मतभेद मौजूद हैं, और इस मुद्दे पर सुलह की कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती।