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Journey of BJP नाम बदले विचारधारा वही, 3 से 303 तक कैसे पहुंची भाजपा, नेहरू-लियाकत समझौता बना जनसंघ का जनक

Journey of BJP
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:

देश की आजादी के समय जब देश 2 हिस्सों में बंट गया तो नागरिकों का विस्थापन होने लगा। तब देश के नागरिकों का पलायन इच्छानुसार जारी था और बंटवारे के समय ही कत्लेआम का सिलसिला शुरू हो गया। जिसके बाद जवाहर लाल नेहरू और लियाकत के बीच समझौता हुआ जिसमें कहा लिखा गया कि दोनों ही देश एक अल्पसंख्यक आयोग का गठन करेंगे। देश की आजादी के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद श्यामा प्रसाद RSS के दूसरे सरसंघ संचालक माधवराव गोलवलकर से मिले और यहीं पर जनसंघ की नींव रखी। संघ का गठन दिल्ली में एक कॉलेज के छोटे से कमरे में हुआ, जिसकी प्रक्रिया वर्ष मई 1951 में चली और अक्टूबर 1951 में पूरी हो गई और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जनसंघ के पहले अध्यक्ष बने।

जनसंघ की 3 से भाजपा की 303 तक का सफर

70 साल पहले जिस जनसंघ पार्टी का गठन श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया था। वह आज दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। पार्टी ने सबसे पहला चुनाव 1952 में लड़ा था। उस समय पार्टी का झंडा केसरिया रंग का था और इसमें एक जलता हुए दीपक की आकृति बनी हुई थी। उस समय पार्टी को पश्चिम बंगाल में 2 सीटों पर विजय हासिल की थी जिनमें से एक कलकत्ता की साउथ-ईस्ट सीट थी जिसपर श्यामा प्रसाद मुखर्जी तो दूसरी सीट मिदनापुर-झारग्राम की थी यहां से दुर्गा चरण बनर्जी विजयी रहे थे।

वहीं राजस्थान में उमाशंकर त्रिवेदी ने चित्तोड़ की सीट पर कब्जा कर सांसद बने थे। अगले आम चुनाव पांच साल बाद हुए इस बार जनसंघ को चार सीटें, यह आंकड़ा 1962 में 14 तक पहुंच गया। इसी प्रकार 1967 में पार्टी ने 35 सीटों पर जीत दर्ज की। इसके साथी ही यूपी, एमपी और हरियाणा में दूसरा सबसे बड़ा दल बन कर उभरा। 1971 में हुए चुनाव में जनसंघ को 22 सीटें मिली।

1975 की इमरजेंसी के बाद जनसंघ बनी भाजपा

1975 मेंं इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया, जिसका विरोध जनसंघ ने पूरजोर तरीके से किया। और विरोध करने वालों को जेल में डाल दिया गया। यही वो दौर था जो जनसंघ का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। 1977 में जनसंघ समेत अन्य विरोधी पार्टियां एक जुट हो गई और जनता पार्टी बन गई और चुनाव जीत कर सत्ता में आ गई।

1980 में इंदिरा फिर सत्तासीन हुई और जनता दल में शामिल हुए समाजावादी धड़ों ने लोकदल का गठन कर अलग संगठन बना लिया और जनसंघ के शीर्ष नेतृत्व ने पार्टी का नाम बदल कर अब भारतीय जनता पार्टी कर दिया। जिसको चुनाव चिह्न कमल का फूल दिया गया।

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