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Kanhaiya and Congress: एक-दूसरे की पूरक बनेंगे कन्हैया कुमार और कांग्रेस, जाने कैसे

India News Editor • LAST UPDATED : September 29, 2021, 10:53 am IST

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
कांग्रेस के सितारे आजकल गर्दिश में चल रहे हैं। कन्हैया कुमार (Kanhaiya and Congress) को भी किसी मजबूत ठौर की तलाश थी। कन्हैया को कांग्रेस (Kanhaiya and Congress) के रूप में वह ठौर मिल गया है। वहीं कांग्रेस को भी एक युवा आइकन के रूप में कन्हैया हासिल हो गए हैं। जानकार बताते हैं कि कन्हैया और कांग्रेस (Kanhaiya and Congress) के मिलन में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर का दिमाग है। समझा जा रहा है कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के लिए अंदरखाने काम करना शुरू कर दिया है। शायद यही वजह है कि समय-समय पर प्रशांत किशोर के भी कांग्रेस में (Kanhaiya and Congress) शामिल होने की चचार्एं होने लगती हैं।

Kanhaiya and Congress can Prove to be Complementary to each other

खैर, हम चर्चा कन्हैया कुमार की कर रहे हैं। लेफ्ट के नेता रहे कन्हैया कुमार कांग्रेस (Kanhaiya and Congress) में शामिल हो गए हैं। उन्होंने राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस की सदस्यता ले ली। कन्हैया ने कहा कि अगर कांग्रेस नहीं बची तो देश नहीं बचेगा, इसलिए वो इस पार्टी में शामिल हो रहे हैं। हालांकि, ये वही कन्हैया हैं जिनके ऊपर देशद्रोह का केस चला था, जिसमें वे बरी हो गए थे। फिर बी बीजेपी उनके कांग्रेस में आने पर हमला कर रही है।

बीजेपी के तमाम बड़े नेता कह रहे हैं कि कांग्रेस ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के साथ आ गई है। भाजपा के बड़े नेताओं की बेसब्री यह बताती है कि कन्हैया को कांग्रेस (Kanhaiya and Congress) में लाकर पार्टी नेताओं ने सही निशाने पर तीर मारा है। यूं कहें कि यदि सब कुछ सामान्य रहा तो कांग्रेस और कन्हैया (Kanhaiya and Congress) एक-दूसरे के पूरक साबित हो सकते हैं। आखिर कैसे कन्हैया छात्र राजनीति से राष्ट्र राजनीति में आ गए और क्यों कन्हैया सीपीआई छोड़कर कांग्रेस में आए? अब इसकी चर्चा करते हैं।

बिहार के बेगूसराय में जन्मे हैं कन्हैया

कन्हैया कुमार का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। ये गांव तेघरा विधानसभा में आता है, जहां सीपीआई को काफी समर्थन दिया जाता है। कन्हैया के पिता जयशंकर सिंह को पैरालिसिस है और काफी वक्त से बिस्तर पर ही हैं। उनकी मां मीना देवी एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं। उनके बड़े भाई प्राइवेट सेक्टर में काम करते हैं।

अपने स्कूल के दिनों में कन्हैया अभिनय में रूचि रखते थे और इंडियन पीपल्स थियेटर एसोसिएशन (इप्टा) के सक्रिय सदस्य थे। 2002 में कन्हैया ने पटना के कॉलेज ऑफ कॉमर्स में दाखिला लिया, जहां से उनकी छात्र राजनीति की शुरूआत हुई। पटना में पोस्ट ग्रेजुएशन खत्म करने के बाद कन्हैया ने जेएनयू में अफ्रीकन स्टडीज में पीएचडी के लिए एडमिशन ले लिया। कन्हैया कुमार 2015 में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे।

ऐसे सुर्खियों में आए कन्हैया कुमार

9 फरवरी, 2016 को जेएनयू में आतंकी अफजल गुरु की बरसी मनाई गई। इस दौरान यहां कथित तौर पर देशविरोधी नारे लगाए गए। कुछ वीडियो भी आए जिसमें कथित तौर पर कन्हैया देश विरोधी नारे लगाते दिखे। इन वीडियो में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’, ‘अफजल हम शमिंर्दा हैं’ और ‘आजादी, आजादी’ के नारे लगाए गए। जेएनयू परिसर में हुई कथित नारेबाजी ने कन्हैया कुमार को पूरे देश में जाना-पहचाना नाम और चर्चित चेहरा बना दिया। कन्हैया को जेल भेजा गया। देशद्रोह का केस भी लगा।

3 मार्च, 2016 को हाईकोर्ट से उन्हें जमानत मिली। जमानत पर छूटने के बाद उसी रात कन्हैया सीधे जेएनयू कैंपस पहुंचे, जहां सैकड़ों की तादाद में स्टूडेंट्स उनका इंतजार कर रहे थे। रात करीब 10:30 बजे कन्हैया का भाषण शुरू हुआ। करीब 50 मिनट के भाषण में कन्हैया ने बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ जमकर हमला बोला। सीधे पीएम मोदी को निशाने पर लिया। कन्हैया के भाषण से साफ था कि वो स्टूडेंट पॉलिटिक्स से राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री के लिए तैयार हैं।

नहीं जीत पाए लोकसभा चुनाव

कन्हैया को लेफ्ट के बड़े चेहरे के तौर पर देखा जाने लगा। माना गया कि कन्हैया बदहाल लेफ्ट के लिए तारणहार होंगे। कन्हैया तब मोदी-विरोधी राजनीति के केंद्र बनकर उभरे थे। सीपीआई ने उन्हें देशभर में पार्टी काडरों में जोश भरने के अभियान पर लगा दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में सीपीआई ने उन्हें उनके गृह जिले बेगूसराय से मैदान में उतारा। मुकाबला केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से था जो पिछली बार नवादा सीट से जीते थे।

उम्मीद थी कि कन्हैया की बदौलत लेफ्ट बेगूसराय में इस बार लाल परचम लहरा देगी। लेकिन जब नतीजे आए तो कन्हैया 1-2 लाख नहीं बल्कि 4 लाख से भी ज्यादा अंतर से चुनाव हार गए। गिरिराज सिंह यहां से जीत गए। कन्हैया दूसरे नंबर पर रहे।

क्यों थामा कांग्रेस का हाथ

लोकसभा चुनाव के नतीजों से कन्हैया की चमक धुंधली जरूर पड़ी। सीपीआई में न तो उनका चुनाव से पहले वाला रुतबा रहा और न राष्ट्रीय स्तर पर पहले जैसी चर्चा। कभी आंबेडकर और लेफ्ट मूवमेंट की एकता की पैरवी करने वाले कन्हैया कुमार आज ‘लाल कटोरे’ को ही फेंक चुके हैं। वो भले ही अपने घर में पहले चुनावी इम्तिहान में बुरी तरह फेल हो गए लेकिन कांग्रेस (Kanhaiya and Congress) को उनमें उम्मीद की किरण दिख रही है। बिहार में अस्तित्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस को कन्हैया में वहां अपना भविष्य दिख रहा है।

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