India News (इंडिया न्यूज), India Pak War Declaration: भारत और पाकिस्तान के बीच कई बार सैन्य संघर्ष हुए हैं, लेकिन इनमें से केवल एक बार औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा की गई है। आज के समय में भी दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति बनी रहती है, लेकिन युद्ध की औपचारिक घोषणा एक दुर्लभ प्रक्रिया है। आइए, इसे समझते हैं।
युद्ध की घोषणा एक औपचारिक प्रक्रिया है, जिसे देश का शीर्ष नेतृत्व, जैसे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या संसद, करता है। इसमें दूसरे देश के खिलाफ युद्ध के कारणों, लक्ष्यों और संभावित परिणामों का उल्लेख किया जाता है। कई देशों में यह प्रक्रिया विधायिका की मंजूरी के बिना पूरी नहीं होती। उदाहरण के लिए, भारत में संसद की मंजूरी आवश्यक है, लेकिन इसके बिना भी सैन्य कार्रवाई की गई है।
India Pak War Declaration: एक देश कैसे करता है दूसरे मुल्क से युद्ध की घोषणा
युद्ध की घोषणा आमतौर पर लिखित रूप में होती है, जिसे विरोधी देश तक राजनयिक माध्यमों से पहुंचाया जाता है। यह घोषणा अक्सर दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों को खत्म करने की दिशा में पहला कदम होती है।
भारतीय संविधान के तहत युद्ध की घोषणा की कोई स्पष्ट प्रक्रिया नहीं है। अनुच्छेद 53 राष्ट्रपति को सशस्त्र बलों का सर्वोच्च कमांडर बनाता है। आपातकाल लागू करने के लिए अनुच्छेद 352 में संसद की मंजूरी अनिवार्य है, लेकिन युद्ध शुरू करने के लिए ऐसा कोई अनिवार्य प्रावधान नहीं है।
भारत में युद्ध से संबंधित फैसले आमतौर पर रक्षा मंत्रालय और कैबिनेट की सुरक्षा समिति (CCS) द्वारा लिए जाते हैं। हालांकि, संसद को बाद में इस पर सूचित किया जाता है।
इस युद्ध की कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई थी। पाकिस्तान समर्थित कबायलियों द्वारा कश्मीर पर आक्रमण के बाद भारत ने सैन्य कार्रवाई शुरू की। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सीधे सेना को आदेश दिया था।
चीन ने अचानक हमला किया, और भारत को प्रतिक्रिया देने का मौका भी नहीं मिला। इस युद्ध के दौरान संसद में चर्चा हुई और बाद में इसकी मंजूरी दी गई।
यह युद्ध पाकिस्तान के “ऑपरेशन जिब्राल्टर” के बाद शुरू हुआ। भारत ने इसका जवाब दिया, लेकिन औपचारिक घोषणा नहीं की। संसद ने केवल सरकार को समर्थन देने वाला प्रस्ताव पारित किया।
यह एकमात्र ऐसा युद्ध था जिसे भारत ने औपचारिक रूप से घोषित किया। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारतीय हवाई अड्डों पर हमला किया, जिसके जवाब में भारत ने युद्ध की स्थिति घोषित की। 4 दिसंबर को संसद ने सर्वसम्मति से युद्ध लड़ने का प्रस्ताव पारित किया। इस युद्ध ने बांग्लादेश के उदय का मार्ग प्रशस्त किया।
कारगिल युद्ध को “ऑपरेशन विजय” का नाम दिया गया और इसे औपचारिक युद्ध की बजाय सैन्य अभियान माना गया। संसद ने इस दौरान पाकिस्तान की निंदा की, लेकिन युद्ध की औपचारिक घोषणा नहीं की गई।
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युद्ध की औपचारिक घोषणा कई गंभीर परिणाम लाती है:
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आज के समय में औपचारिक युद्ध घोषणा की प्रथा कम हो गई है। रूस-यूक्रेन संघर्ष को “स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन” कहा गया, लेकिन दुनिया इसे युद्ध मानती है। इसी तरह, भारत और पाकिस्तान के बीच कई संघर्ष हुए, लेकिन उन्हें युद्ध नहीं कहा गया।
युद्ध के दौरान जिनेवा संधि जैसे नियमों का पालन किया जाना चाहिए। ये नियम युद्धबंदियों, नागरिकों और मानवीय सहायता से संबंधित हैं। इसके अलावा, युद्ध अपराधों के मामलों में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICC) की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। युद्ध की घोषणा एक औपचारिक लेकिन दुर्लभ प्रक्रिया बनती जा रही है। आधुनिक सैन्य संघर्ष ज्यादातर बिना औपचारिक घोषणा के होते हैं। भारत में भी अधिकांश सैन्य कार्रवाइयों के लिए औपचारिक युद्ध की घोषणा नहीं की गई।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि युद्ध की घोषणा केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि गंभीर और दूरगामी प्रभावों वाला कदम है।