India News (इंडिया न्यूज़),Live-in Relationship: इलाहबाद हाईकोर्ट के द्वारा लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे कपल में एक पार्टनर नाबालिग है तो रिश्ते को वैध नहीं माना जाएगा और न ही वह संरक्षण के दायरे में आते हैं। बता दें कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की और कहा कि यह रिश्ता कानून और समाज के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ बालिगों को ही लिव-इन में रहने की इजाजत है। बता दें कोर्ट में कोर्ट में एक कपल ने याचिका दायर कर एक एफआईआर खारिज करने की मांग की थी, एफआईआर में किडनैपिंग की शिकायत की गई है।
226 के तहत हस्तक्षेप करने के लिए यह केस फिट नहीं
कोर्ट के द्वारा कहा गया कि किसी नाबालिग लड़के या लड़की के साथ लिव-इन में रहना चाइल्ड प्रटेक्शन एक्ट के तहत अपराध है। ऐसे में इस आधार पर कपल को राहत नहीं दी जा सकती कि वे एक लिव-इन रिलेशनशिप में हैं। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि आर्टिकल 226 के तहत हस्तक्षेप करने के लिए यह केस फिट नहीं है।
रिश्ते रखना कानून के खिलाफ
कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं में से एक नाबालिग है और अगर कोर्ट इसकी अनुमति देता है तो यह गैरकानूनी क्रियाकलापों का बढ़ावा देने जैसा होगा। कोर्ट ने कहा कि कपल में से एक नाबालिग है, जिसकी उम्र 18 साल से कम है। ऐसी स्थिति में ऐसे रिश्ते रखना कानून के खिलाफ है और पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध है।
पीड़ित सेक्शन 125 के तहत लाभ का भी हकदार नहीं
याचिकर्ताओं में एक मुस्लिम भी है। बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि मुस्लिम कानून में लिव-इन रिलेशनशिप के लिए इजाजत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि कानून कहता है कि अगर आप धर्म परिवर्तन किए बिना किसी के साथ लिव-इन में रहे हैं तो इसे गैरकानूनी माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि कानून के सेक्शन 125 के तहत सिर्फ तलाकशुदा को ही गुजारे भत्ते की मांग का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि जब मुस्लिम लॉ में लिव-इन मैरिज का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं है तो पीड़ित सेक्शन 125 के तहत लाभ का भी हकदार नहीं है।