India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में पहुंचने के बाद भी किसी भी दल के बहुमत को लेकर स्थिति पूरी तरह से साफ नहीं है। इतना भर जरूर माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में राजग सरकार बना लेगा। लेकिन इसमें उत्तर प्रदेश को अहम भूमिका निभानी होगी। जिस तरह की खबरें आ रही हैं उसमे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भूमिका अहम हो गई है। जानकार मान रहे हैं उत्तर प्रदेश में इस बार बीजेपी को सबसे ज्यादा उम्मीदें है। अयोध्या में राम मंदिर में भगवान राम की मूर्ती स्थापित होने के बाद माना जा रहा था कि बीजेपी अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने जा रही है। लेकिन दूसरे चरण के बाद जातीय राजनीति के चलते बीजेपी की चुनौती बढ़ गई दिखी। विपक्ष का तो यहां तक कहना है कि अब तक की सबसे ऊंचाई पर उड़ने वाला बीजेपी का जहाज डिप कर गया है, अब मुख्यमंत्री योगी और पूरी बीजेपी गिरते जहाज को कहां पर ला कर रोकती है 4 जून को पता चल जायेगा।

विपक्ष तो यहां तक दावा कर रहा है कि 2019 के मुकाबले बीजेपी को 7 से 8 सीट का नुकसान हो सकता हैं। हालांकि बीजेपी ने भी जातीय राजनीति को भांप चुनाव को ध्रुवीकरण की पिच पर खुल कर खेलना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम केंद्रीय मंत्री नेताओं ने उत्तर प्रदेश में पूरी ताकत लगा दी है। इससे स्थिति संभलती हुई दिख रही है। लेकिन कहां तक संभलेगी कह पाना मुश्किल है। बीजेपी को 2019 में 62 सीट मिली थी जबकि 2014 में 71 सीट मिली थी। बीजेपी का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे के चलते जाति की राजनीति उत्तर प्रदेश में हाशिए पर चली गई थी।

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इस साल 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में राम की मूर्ती की स्थापना के बाद तो माना जा रहा था कि इस बार के आम चुनाव में अयोध्या की आंधी चलेगी। जानकार भी मान रहे थे कि बीजेपी उत्तर प्रदेश में इस बार 2014 का रिकार्ड तोड़ देगी। तमाम तरह के अनुमान लगाए जा रहे थे। 75 से 77 तक की बात हो रही थी। लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद माहौल एक दम बदल गया। कुछ जानकारों का मानना है 400 पार के नारे का प्रचार गलत हो गया। आरक्षण लेने वाले अफसरों ने अंदर ही अंदर उसका नकारात्मक प्रचार कर दिया। नीचे स्तर तक मैसेज पहुंचा दिया कि 400 पार का मतलब आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा।

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बीजेपी और केंद्र की खुफिया एजेंसियों को आभास ही नहीं हुआ कि 400 पार का गलत प्रचार हो गया। पहले और दूसरे चरण के बाद बीजेपी के रणनीतिकारों को आभास हुआ कि कुछ गलत हो गया। फिर प्रधानमंत्री मोदी ने खुद साफ किया कि कोई आरक्षण खत्म नहीं होगा। लेकिन तब तक विपक्ष ने इसे अपना प्रमुख हथियार बना लिया। जानकारों का कहना है कि पहले और दूसरे चरण में उत्तर प्रदेश में जातीय राजनीति का विशेष जोर नहीं था, लेकिन बाकी चरणों में विपक्ष ने बड़ा मुद्दा बना दिया। हालांकि बीजेपी के नेताओं ने पीओके, मुस्लिम आरक्षण और कानून व्यवस्था को मुद्दा बना विपक्ष के आरक्षण के मुद्दे पर हमला बोला।

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प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री योगी और तमाम नेताओं ने चुनाव को ध्रुवीकरण की पिच पर खेलने की कोशिश की। लेकिन पार्टी और उसके प्रवक्ता ठीक ढंग से मोर्चा नहीं संभाल पाए। पूरी तरह से पीएम और सीएम को ही मोर्चा संभालना पड़ा। विपक्ष ने मुद्दा चलता देख संयुक्त अभियान के प्रचार पर ताकत लगा दी। अखिलेश यादव, डिंपल यादव, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी सब ने पूरी ताकत लगा दी। विपक्ष उम्मीद कर रहा है कि यूपी में बीजेपी को अगर कम सीटों पर रोक दिया तो उसे लाभ मिलेगा। अब 4 जून को पता चलेगा कि किसकी रणनीति कारगर रही।

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