India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: एक हफ्ते बाद मंगलवार को ही लोकसभा चुनाव के परिणाम आ जायेंगे। पता चल जायेगा किस राज्य में किसे कितनी सीट मिली। किसकी सरकार बनी। लेकिन इससे पूर्व राज्यों में सीटों को लेकर जो अनुमान लगाए जा रहे हैं वह बड़े ही दिलचस्प हैं। उदाहरण के लिए राजस्थान ही लें। कांग्रेस तो 10 से 12 सीट का दावा कर रही है। वहीं बीजेपी फिर से सभी 25 सीटों पर जीत का दावा ठोक रही है। पहला बड़ा अंतर यही है कि कांग्रेस तीसरी बार भी सभी 25 सीट जीतने का दावा नहीं कर पाई। राजस्थान में पहले और दूसरे दो चरणों में वोटिंग हुई। कांग्रेस ने खुद 22 सीट पर चुनाव लड़ा जबकि तीन सीट गठबन्धन में दी। बीजेपी ने इस बार सभी 25 सीटों पर चुनाव लड़ा। चुनाव पर करीबी नजर रखने वाले और सरकारी एजेंसियों के सूत्रों की माने तो कांग्रेस के 10 से 12 सीट जीतने पर संशय है। दो से तीन सीट जीतने का अनुमान।

पहले चरण की वोटिंग के बाद कांग्रेस उत्साह में दिखी और बीजेपी तोड़ा चिंतित दिखी। लेकिन दूसरे चरण के बाद बीजेपी का आत्मविश्वास वापस लौटा। जानकार और मिडिया में कांग्रेस को 5 से 7 सीट पर मजबूत बताया गया। बाकी में बीजेपी। लेकिन इस पर किसी ने गौर नहीं किया कि पिछली बार कांग्रेस दौसा को छोड़ अधिकांश सीटों पर दो से तीन लाख वोटों से हारी थी। मतलब जीत का एक बड़ा अंतर था। इस बार के चुनाव में 2014 और 2019 वाली जैसी कोई लहर नहीं थी। पिछले दोनों चुनाव में मोदी लहर खुल कर दिखी,लेकिन इस बार खुल कर कुछ नहीं था। लेकिन चुनाव की घोषणा से पूर्व तक अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और प्रधानमंत्री मोदी की लहर थी। यूं कह सकते हैं आंधी थी।

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कांग्रेसी खुद चुनाव को औपचारिक मान रहे थे। इसके चलते बड़े नेता चुनाव लड़ने से बचे। जब चुनाव वाला दिन आया तो लगा लहर खत्म हो गई। ओपन कोई लहर नहीं थी,लेकिन अंडर करंट का अनुमान किसी ने नहीं लगाया। जो वोटर घर से वोट देने निकला वह अपनी मर्जी से निकला। बीजेपी के बूथ मैनेजमेंट ने इसका फायदा उठाया। चुनाव पर करीब से नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में वोटर पहले ही तय कर लेता है कि उसे वोट किसे देना। उसके मन को तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक की चुनाव प्रचार के दौरान ऐसी कोई बात न हो जाए जिससे वह प्रभावित हो।

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यही गौर करने वाली बात है जिस पर किसी का ध्यान ही नहीं गया। वोटर राम मंदिर से प्रभावित था लेकिन उसने खुल कर अहसास नहीं कराया। कांग्रेस जाति की राजनीति के भरोसे कुछ सीट पर जीत की उम्मीद तो करने लगी,लेकिन सामूहिक रूप से नेताओं ने जीत के लिए ताकत नहीं लगाई। कांग्रेसी मान बैठे बिना मेहनत के ही काम हो रहा है। जबकि कांग्रेस के पक्ष में लहर ही नहीं थी और ना ही कांग्रेस का बूथ मैनेजमेंट था। इसके बाद भी कांग्रेस को लगा कि पिछली बार की दो से तीन लाख की हार का अंतर अपने आप ही खत्म हो जायेगा।

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कांग्रेस का चुनाव लड़ने का अपना तरीका है। संगठन और बूथ मैनेजमेंट पर वह ध्यान ही नहीं देती। एक जुट हो कर कभी चुनाव नहीं लड़ती। विधानसभा चुनाव में हुई हार इसका उदाहरण है। सबसे अहम बात कांग्रेस इस बार भी यह नहीं बता पाई कि उनका पीएम चेहरा कौन होगा। कांग्रेस ने इस भरोसे चुनाव लड़ा कि शायद कोई चमत्कार हो जायेगा। कोई आक्रमक प्रचार कांग्रेस का नहीं था। न पैसे थे और ना ही कोई चुनावी प्रबंधन था।

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कोटा के प्रत्याशी प्रहलाद गुंजल ने दिल्ली के हर बड़े नेता का दरवाजा खटखटाया कि उनके यहां प्रचार में बड़े नेताओं को भेजा जाए,लेकिन कोई नहीं आया। अंतिम दिन सचिन पायलट ही पहुंचे। प्रत्याशी अपने बलबूते पर चुनाव लड़े। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता धर्मेंद्र राठौर का कहना है कि इस बार कांग्रेस का चुनाव जनता लड़ी इसलिए परिणाम चौंकाने वाले आएंगे। कांग्रेस का यह तर्क उनके हिसाब से सही हो सकता है,लेकिन इतना तो साफ दिखा कि चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में भी कोई माहौल नहीं था। अब 4 जून को ही पता चलेगा कि कांग्रेस का दावा सही साबित होता है या चुनाव पर करीबी नजर रखने वालों का।

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