Mahant Nritya Gopal Das कौन है महंत नृत्यगोपाल दास, जानिए 12 वर्ष में वैराग्य धारण करने से लेकर रामजन्म भूमि के लिए संघर्ष तक, सब कुछ

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
(Mahant Nritya Gopal Das) रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास की तबीयत बिगड़ गई है। उनका आक्सीजन लेवल 83 तक पहुंच गया। उनको सांस लेने में तकलीफ होने के कारण लखनऊ के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनका चेकअप करने मेदांता अस्पताल के निदेशक राकेश कपूर अयोध्या पहुंचे थे। आईए संघर्ष से भरे महंत नृत्यगोपाल दास के जीवन पर प्रकाश डालते हैं।

Mahant Nritya Gopal Das का राममंदिर आंदोलन के लिए संघर्ष

महंत नृत्यगोपाल दास ने राममंदिर आंदोलन के लिए बहुत संघर्ष किया था। रामजन्मभूमि को मुक्त कराने हेतु जन-जागरण के लिए सीतामढ़ी से अयोध्या पहुंची राम-जानकी रथ यात्रा मणिरामदास छावनी में ही रूकी थी। परमहंस कोर्ट में सक्रिय थे तो नृत्यगोपाल आंदोलन के संतों-महंतों व कारसवेकों के लिए साधन-सुविधाएं रात दिन एक उपलब्ध कराते। बताया जाता है कि राममंदिर आंदोलन में जिन प्रमुख संतों ने अयोध्या में कोर्ट से लेकर सड़क तक संघर्ष किया था, उनमें दिगंबर अखाड़ा के महंत परमहंस रामचंद्र दास के बाद मणिरामदास छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास हैं।

Mahant Nritya Gopal Das ने 12 वर्ष की उम्र में वैराग्य धारण किया

महंत नृत्यगोपाल दास ने मात्र 12 वर्ष की आयु में ही वैराग्य धारण कर लिया था और अयोध्या आ गए। इससे पहले उनका जन्म बरसाना मथुरा के कहौला ग्राम में 11 जून 1938 को हुआ था। उन्होंने काशी में संस्कृत में पढ़ाई की है। पढ़ाई में बहुत निपुण थे, प्रत्येक कक्षाओं में गोल्ड मेडल हासिल किया। इसके बाद 1953 में पुन: अयोध्या आकर मणिरामदास की छावनी में रूके। वे महंत राममनोहर दास से दीक्षित थे। नृत्यगोपाल दास दशकों तक राम मंदिर आंदोलन के संरक्षक की भूमिका में रहे हैं।

कृष्ण व रामभक्ति दोनों के अनूठे उदाहरण हैं Mahant Nritya Gopal Das

नृत्यगोपाल दास कान्हा की नगरी मथुरा से बाल्यकाल में रामनगरी आए कृष्ण व रामभक्ति के अनुपम उदाहरण हैं। वे दोनों नगरी भक्तित्व अनुराग के प्रमुख संत के साथ जहां श्रीरामजन्मभूमि के साथ श्रीकृष्ण जन्मभूमि न्यास के भी अध्यक्ष हैं। नृत्यगोपाल हर साल जन्माष्टमी समारोह के लिए मथुरा जाते हैं। पिछले साल इसी कार्यक्रम में शामिल होने के बाद उन्हें कोरोना संक्रमण हुआ था। अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद रामलला को टेंट में शिफ्ट किया गया था। उसके बाद से 28 साल तक महंत रामलला के दर्शन करने नहीं गए थे। जब रामलला को अस्थाई मंदिर में विराजमान कराया गया, उसके बाद ही वे पूजा-अर्चना के लिए पहुंचे थे।

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1989 में Mahant Nritya Gopal Das बने थे श्रीराम जन्मभूमि न्यास के उपाध्यक्ष

1985 के आखिरी में द्वितीय धर्म संसद परमहंस की अध्यक्षता में कर्नाटक में निर्णय हुआ था कि यदि 8 मार्च 1986 को महाशिवरात्रि तक रामजन्मभूमि पर लगा ताला नहीं खुला तो महाशिवरात्रि के बाद ताला खोलो आन्दोलन, ताला तोड़ो में बदल जाएगा। इसके बाद प्रतिदिन देश के प्रमुख धमार्चार्य इसका नेतृत्व करेंगे। इसी दौरान जब परमहंस रामचन्द्र दास ने 8 मार्च 1986 तक श्रीराम जन्मभूमि का ताला नहीं खुला तो मैं आत्मदाह करूंगा’ की घोषणा करके सनसनी फैला दी तो नृत्यगोपाल आंदोलन के प्रमुख कर्ता-धर्ता थे। इसके बाद 1 फरवरी 1986 को ही ताला खुल गया। जनवरी, 1989 में प्रयाग महाकुम्भ के दौरान आयोजित तृतीय धर्मसंसद में शिला पूजन एवं शिलान्यास में अहम भूमिका निभाई। श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष जगद्गुरु रामानन्दाचार्य पूज्य स्वामी शिवरामाचार्य जी महाराज का साकेतवास हो जाने के बाद अप्रैल, 1989 में परमहंस को श्रीराम जन्मभूमि न्यास का कार्याध्यक्ष घोषित किया गया। तब नृत्यगोपाल दास उपाध्यक्ष बने।

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