अजीत मैंदोला, Maharashtra Political Crisis : महाराष्ट्र में सियासी संकट को लेकर जो भी कयास बाजी लगाई जा रही हो, लेकिन उद्धव ठाकरे को बीजेपी छोड़ेगी इसको लेकर आशंका है। एकनाथ शिंदे अभी विधायकों की संख्या के चलते ताकतवर दिखाई दे रहे हों। पर उद्धव को कमजोर आंकना बीजेपी के लिये बड़ी भूल साबित हो सकती। कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना भी है बीजेपी महाराष्ट्र मे भी बिहार जैसी सरकार बनाना चाहेगी। मतलब उद्धव ठाकरे को साथ लेकर सरकार बनाने की। इसके लिये मुख्यमंत्री का पद ठाकरे को ही देना पड़े तो चलेगा। लेकिन अब यह सब कुछ निर्भर करेगा उद्धव ठाकरे पर।
पिछले दो तीन दिन के घटनाक्रम से लग भी रहा है कि महाराष्ट्र की राजनीति के मुख्य केंद्र बिंदु में उद्धव ही हैं। बीजेपी के रणनीतिकार भी समझ रहे हैं कि अगर उद्धव को छोड़ दिया तो उन्हें सहानुभूति मिलेगी। असल शिवसैनिक उनके साथ ही रहेंगे। जैसे कांग्रेस का मतलब गांधी परिवार है। ठीक उसी तरह शिवसेना का मतलब ठाकरे परिवार है। उद्धव की अगुवाई में महाविकास अघाड़ी बहुत मजबूत गठबंधन बन जायेगा। इसका सबसे बड़ा असर लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा। क्योंकि महाविकास अघाड़ी को बीजेपी एकनाथ शिंदे के दम पर चुनोती नही दे पाएगी।
यूपी के बाद महाराष्ट्र दूसरा ऐसा बड़ा राज्य है जहां पर लोकसभा की 48 सीट आती हैं। बीजेपी ने 2019 में 41 सीटे जीती थी। उद्धव की अगुवाई मे अगर महाविकास अघाड़ी गठबंधन बना रहा तो 2024 में सीटों का परिणाम उल्टा भी हो सकता है। बड़ी चुनोती के रूप में सामने भी आएगा। बिहार को देखें तो वहाँ पर भी लगभग यही स्थिति थी । अगर जेडीयू, राजग और कांग्रेस का महागठबंधन बरकरार रहता तो बिहार की राजनीति का दृश्य ही अलग होता।
राज्य में बीजेपी के पास सत्ता की हिस्सेदार भी शायद नही होती। दूसरा लोकसभा की सीटो पर भी असर पड़ता। लेकिन बीजेपी ने कोई खतरा मोल नही लिया। जेडीयू नेता नीतीश कुमार को साधा और अपने गठबंधन में शामिल कर लिया। अगली बार विधानसभा चुनाव मे ज्यादा सीटे आने के बाद भी नीतीश को ही सीएम बनाये रखा। जिससे लोकसभा की सीटों पर असर न पड़े।
जानकार मान रहे महाराष्ट्र भी उसी दौर से गुजर रहा है। बीजेपी के रणनीतिकार अभी खुलकर न बोलें लेकिन वह लोकसभा की एक एक सीट का महत्व जानते हैं। महाराष्ट्र में तो 48 सीट हैं। एनसीपी प्रमुख शरद पंवार भी ठाकरे की कीमत और आगे की राजनीति को समझ रहे हैं। कांग्रेस को भी समझ मे आ गया है कि बीजेपी को ठाकरे ही चुनोती दे सकते हैं।
इस लिए दोनों दल भी इसी कोशिश में लगे हैं कि उद्धव ठाकरे उनके साथ ही बने रहें। एनसीपी और कांग्रेस की एक ही चिंता है कि बीजेपी कहीं उद्धव ठाकरे को वापस साथ ले जाने में कामयाब न हो जाये। क्योंकि अभी तक जो घटनाक्रम चल रहा है उसमें न तो शिवसैनिक उग्र दिखाई दे रहे हैं और ना ही बीजेपी की तरफ से ज्यादा बयानबाजी हो रही है।
दूसरा सीएम पद के लिये सबसे ज्यादा लालायित रहने वाले पूर्व सीएम देवेंद्र फणनवीस भी कम ही बोल रहे हैं। जानकारों का मानना है कि बीजेपी का आलाकमान चुप रह बहुत दूर की राजनीति कर रहा है। वह जानता है कि उद्धव के बिना लोकसभा में बात नही बनेगी। ठाकरे भले ही अभी एनसीपी नेता शरद पंवार पर ज्यादा निर्भर दिख रहे हैं। जानकार मान रहे हैं हिंदुत्व और बेटे आदित्य की खातिर उनको भी बीजेपी ही सूट करती है।
बीजेपी जानती है अगर उद्धव साथ नही आये और शिंदे के साथ मिल सरकार बना भी ली तो महाराष्ट्र में शिवसैनिक चुप नही बैठेंगे। शिवसैनिकों ने हल्की फुल्की हिंसा शुरू कर भी दी है। कांग्रेस और एनसीपी ठाकरे की कीमत समझ रहे हैं। ठाकरे अगर साथ रहते हैं तो कांग्रेस एनसीपी महाराष्ट्र से बाहर भी उनकी बिचारे की छवि बना सामने ला सकते है। अब आने वाले दिनों में यही देखना होगा कि महाराष्ट्र बीजेपी के लिये संकट बनता है या सब ठीक रहता है।
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