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Matrimonial Websites: बदलते भारत की बदलती तस्वीर, पंडित की भूमिका निभा रहा एक वेबसाइट

India News (इंडिया न्यूज), आकाश जायसवाल, Matrimonial Websites: भारत जहां “कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी”, इसके साथ ही भारत में कुछ किलोमीटर चलने पर संस्कृती भी बदल जाती है। लेकिन हमारे देश में एक बात जो सभी राज्यों और उनकी संस्कृति में पायी जाती है वह है अरैन्जड मैरिज। परिवारजन जहां अपनी ही स्वजातीय परिवारों में अपने बच्चों की शादियाँ करते हैं। पहले पंडित, मैरिज एजेंसी ऑफिस, अखबारों में रिश्ते के लिए ऐड, बिचोलिया और रिश्तेदारों की मदद से सुयोग्य वर-वधू ढूंढने का कार्य होता था, लेकिन समय के साथ हो रहे बदलाव के साथ ही जीवनसाथी ढूँढने की प्रक्रिया भी इंटरनेट पर आ गई है। आज के समय में अनगिनत ऑनलाइन वेबसाइट मौजूद हैं जो जीवनसाथी ढूँढने में मदद करती हैं।

आज भी भारत में अधिकांश शादियाँ अरैन्ज होती हैं और इस बात का फायदा ऑनलाइन मैट्रीमोनियल वेबसाइट को भी मिल रहा है। भारतीय संस्कृति में माता-पिता अपने बच्चों के लिए जीवन साथी का चयन स्वयं करना चाहते हैं। जहां कोविड के बाद कई बिजनेस को नुकसान उठाना पड़ रहा था, वहीं ऑनलाइन मैट्रीमोनियल का बिजनेस उन व्यवसायों की लिस्ट में शामिल है, जिनका बिजनेस पोस्ट कोविड बढ़ा है। इसके पीछे का मुख्य कारण मैट्रीमोनियल वेबसाइट पर लगातार बढ़ रहे पंजीकरण है। इन पंजीकरणों के बदले एक अच्छा खास शुल्क लिया जाता है।

बड़ी आबादी शादी योग्य
भारत में ऑनलाइन मैट्रीमोनियल वेबसाइट की शुरुआत लगभग दो दशक पहले हुई। आमजन के बीच ऑनलाइन मैट्रीमोनियल वेबसाइट पोपुलर हो चुकी हैं। भारत की कुल आबादी में 65% भारतीय 35 वर्ष से कम आयु के हैं वहीं 15-29 वर्ष के आयु समूह के युवा लगभग 27.5% हैं। इन आंकड़ों से साफ पता चलता है भारत में एक बड़ी आबादी शादी के योग्य है या फिर होने वाली है। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में 90 प्रतिशत शादियाँ अरैन्ज हो रही हैं, यह भी एक महत्वपूर्ण पहलू है जो भारत में ऑनलाइन मैट्रीमोनियल व्यवसायों का बिजनेस बढ़ने में मदद कर रहा है।

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2018 में हुए एक सर्वे के अनुसार जिसमें 1,60,000 घरों से सैम्पल इकठ्ठा किया गया था, 93% से ज्यादा शादीशुदा भारतीयों ने यह माना की उनकी शादी अरैन्ज है, वहीं सिर्फ 3 प्रतिशत ने माना कि उन्होंने लव मेरिज की है। वहीं कुछ ने माना की उनके पार्टनर को उनके परिवार ने मिलवाया था और बाद में उन्होंने एक दूसरे को पसंद कर शादी की। इन शादियों के लिए एक टर्म है “लव-कम-अरेंज्ड मेरिज”।

भारत में अपनी ही जाति में विवाह करने की प्रथा है। जब इससे संबंधित 2014 में सर्वेक्षण हुआ तो सामने आया की 10 प्रतिशत से भी कम शहरी भारतीयों के परिवार में अन्तर्जातीय विवाह हुआ है। वहीं जब ये पूछा गया की “आपके परिवार में किसी ने अपने धर्म से बाहर शादी की है?” तो सिर्फ 5 प्रतिशत से भी कम ने हाँ में जवाब दिया।

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अगर हम मैट्रीमोनियल वेबसाइट के यूजर के बारे में बात करें तो पता चलता है कि ये वेबसाइट अपने प्लेटफॉर्म पर अपनी जाति के अंतर्गत रिश्ता ढूँढने की सुविधा देते हैं, और भारतीय अभिभावकों को एक ऐसा प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराते हैं जहां वे अपनी जाति के अंतर्गत आने वाली अनगिनत प्रोफ़ाइल देखकर अपने बच्चों के लिए सुयोग्य जीवनसाथी ढूंढ सकते हैं। कहीं न कहीं इन मैट्रीमोनियल वेबसाइटों को भारत की अरैन्ज मैरिज की संस्कृति का भी फायदा मिल रहा है। Statista की रिपोर्ट के अनुसार मैट्रीमोनियल वेबसाइट का वर्ष 2017 में 0.11 बिलियन डॉलर था जो पोस्ट कोविड 2022 में बढ़कर 0.26 बिलियन डॉलर हो गया जो दोगुना से भी ज्यादा है वो भी मात्र 5 वर्ष के अंतराल पर।

वर्तमान में मैट्रीमोनियल वेबसाइट पर फ्रॉड भी बढ़ रहे हैं, जैसे फेक प्रोफाइल, और फाइनेंसियल फ्रॉड। हालाँकि, जागरूक और सतर्क रहकर समय रहते स्केेमर की पहचान करने में मदद मिल सकती है। विभिन्न वैवाहिक साइटों द्वारा दी जाने वाली सभी प्रोफ़ाइल सत्यापन और सुरक्षित संदेश सुविधाओं का उपयोग करें। भारत एक अच्छा मार्केट साबित हो रहा है मैट्रीमोनियल वेबसाइट के बिजनेस के लिए वहीं रिश्ता ढूंढ रहे परिवारजनों को भी एक ऐसी सुविधा प्रदान करता है, जहां यह अपने बच्चों के लिए कम से कम समय में सुयोग्य रिश्ता ढूंढ सकते हैं।

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Sailesh Chandra

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