India News (इंडिया न्यूज)Maulana mahmood asad madani: पाकिस्तान के विरुद्ध भारत के ऑपरेशन सिंदूर पर विवादित टिप्पणी करना अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अली खान महमूदाबाद को महंगा पड़ा है। रविवार( 18 मई) को पुलिस ने उन्हें दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित उनके आवास से अरेस्ट किया। इसके बाद उन्हें सोनीपत कोर्ट में पेश किया गया। अदालत ने उन्हें दो दिन की रिमांड पर भेज दिया है। हालांकि अली का कहना है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा। इस बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने अली की गिरफ्तारी पर चिंता जताई है।
मौलाना महमूद असद मदनी ने अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि मामले की न्याय के सर्वोच्च आदर्शों के अनुरूप समीक्षा की जाएगी। मदनी ने कहा, ‘प्रोफेसर के बयान को, जो मेरी जानकारी में भी है, देशद्रोह या अपमान के तौर पर पेश करना समझ से परे है। जहां तक आलोचना या असहमति का सवाल है, इसकी इजाजत है, भले ही उसका संबंध सरकार से ही क्यों न हो। यह स्थापित तथ्य है कि सरकार या देश के किसी वर्ग या संगठन से असहमति देश का विरोध करने के समान नहीं है।
मौलाना मदनी ने सरकार और प्रशासन के दोहरे मापदंड का भी जिक्र किया और कहा कि एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार के एक मंत्री कर्नल कुरैशी को ‘आतंकवादियों की बहन’ कहते हैं, जिसके लिए अदालत उन्हें फटकार लगाती है, लेकिन सरकार या पार्टी द्वारा अभी तक कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की गई है, वहीं दूसरी तरफ प्रोफेसर अली को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है, जबकि उक्त मंत्री का बयान देश की एकता का अपमान है। उन्होंने कहा कि यह दृष्टिकोण लोगों में न्याय प्रदान करने वाली संस्थाओं के प्रति अविश्वास को बढ़ावा देता है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष ने कहा कि न्याय की रक्षा करने वाली संस्थाओं को इस बात को समझना चाहिए कि कानून का मकसद नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करना है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में भय या चुप्पी के बजाय विचारों का सम्मान करने से एकता कायम होती है। मदनी ने आगे मांग उठाई कि केंद्र सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे और प्रोफेसर अली खान की बिना शर्त रिहाई के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाए।