इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Migration From Bihar: बिहारी देश में ही रहकर प्रवासी कहलाए जाने लगे, कभी आतंकवाद का निशान बनते तो कभी लॉकडाउन में पुलिस की लाठियों का शिकार होते। यही नहीं कोरोना काल के दौरान बिहारी मजदूरों ने हाथों से बनाई सैंकड़ों मील की सड़कों को कदमों से माप दिया। इतनी यातनाएं सही कि वापस काम पर लौटने से तौबा तक कर डाली।
कुछ ही महीने बीते तो यही लोग परिवार के लिए दो समय की रोजी रोटी की तलाश में फिर से घरों से निकल लिए। बड़ी पुरानी कहावत है मरते क्या न करते। जी हां इनके पलायन के पीछे यह बहुत बड़ा सवाल है जिसको सुलझाने के लिए यह लोग परिवार से दूर सिर्फ इसलिए जाते हैं कि अपने बच्चों को निवाला खिला सकें।
पूर्वाचंल में बसे बिहार राज्य से पलायान का सिलसिला मानो 1951 में शुरू हुआ था उस समय केवल 4 प्रतिशत लोगों ने ही राज्य सिर्फ इसलिए छोड़ा था कि वह काम चाहते थे जो कि यहां नहीं था। उसके बाद तो मानो पलायान का सैलाब ही आ गया हो। 2001 से 2011 इन 10 सालों में 93 लाख बिहारी राज्य छोड़कर दूसरे प्रदेशों में चले गए।
बिहारियों के पलायन के पीछे सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी। जो कि उन्हें परदेसी बना रहा है। रोजगार से पहले साक्षारता आती है जिसका ग्राफ देश में सबसे कम बताया जाता है। क्योंकि पढ़ा लिखा व्यक्ति घर द्वार पर ही रोजगार पाने में सफल रहता है और अपने बच्चों को भी पढ़ाने का प्रयास करता है।
अनपड़ को रोजगार योग्यता के हिसाब से ढूंढना पड़ता है। जिसके लिए पलायान जारी है। वहीं इसके अलावा हेल्थ सिस्टम की चरमराई व्यवस्था भी पलायान के पीछे एक बड़ा कारण है। क्योंकि जितनी सुविधाएं स्वास्थ्य को लेकर अन्य राज्यों में मिल रही हैं। उतनी बिहार में नहीं मिलती जिसके कारण लोग अपने परिजनों का सही से इलाज नहीं करवा पाते।
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