India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गठबंधन की सरकार को और मजबूती देने के लिए इस बार सहयोगी दलों से भी कुछ नेताओं को राज्यपाल बना सकते हैं। आने वाले महीनों में आधा दर्जन से ज्यादा नए राज्यपालों की नियुक्तियां होनी हैं। हालांकि राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा एक बार फिर से गवर्नर बनने की कोशिश में लगे हैं। मिश्रा का कार्यकाल अगले महीने समाप्त हो रहा है। ऐसे संकेत हैं कि अगले महीने बजट सत्र के दौरान नए राज्यपालों की नियुक्ति हो सकती है। जाट राजनीति के दबाव को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार भी किसी जाट नेता को राज्यपाल बनाया जा सकता है।
इन राज्यों में हाथ लगी निराशा
हालाकि पिछली बार बनाए जाट नेता सतपाल मलिक का अनुभव खराब रहा। उन्होंने अपनी सरकार पर ही सवाल उठा दिए थे। हालांकि जाटों को संदेश देने के लिए उप राष्ट्रपति जैसा पद जाट समुदाय के जगदीप धनखड़ को दिया गया। उसके बाद आरएलडी नेता जयंत चौधरी की पार्टी से गठबंधन किया। इन सब के बाद भी बीजेपी को लोकसभा में राजस्थान, पश्चिम, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में निराशा हाथ लगी। ऐसे में देखना होगा कि इस बार किस प्रदेश के जाट नेता को मौका मिलता है।
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इन राज्यपालों का कार्यकाल होने वाला है खत्म
राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश की आनंदी बेन पटेल, गुजरात के आचार्य देववर्त, केरल के आरिफ मोहम्मद, हरियाणा के बंडारू दत्तात्रेय, महाराष्ट्र के रमेश बेस, मणिपुर के अंसुइया उइके, मेघालय के फागू चौहान का कार्यकाल आने वाले महीनों में खत्म होने जा रहा है। पंजाब के बनवारी लाल पुरोहित पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं। इन राज्यपालों की जगह जल्द नई नियुक्तियां की जानी है। रेस में कई नाम बताए जा रहे है। जैसे उत्तर प्रदेश से मेनका गांधी, वी के सिंह, संतोष गंगवार जैसे नेताओं के नाम हैं तो दिल्ली से पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, बिहार से अश्वनी चौबे, राजस्थान से जाट या मीणा में से किसी एक जाति के नेता को मौका दिया जा सकता है।
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बीजेपी में दावेदारों की बड़ी संख्या
बीजेपी में दावेदारों की बड़ी संख्या है लेकिन इस बार सहयोगियों से रिश्ता और मजबूत करने के लिए जेडीयू और टीडीपी में से भी एक दो नेताओं को राज्यपाल बनाया जा सकता है। जेडीयू से केसी त्यागी भी एक प्रबल दावेदार हो सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी तीसरी बार गठबंधन की ऐसी सरकार चला रहे हैं जिसमें सहयोगियों की अहम भूमिका है। सहयोगियों के भरोसे सरकार को बहुमत मिला है। अभी तक के उनके फैसलों से यह तो साफ हो गया है कि वह किसी के दबाव में नहीं है।
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पीएम ने अपने हिसाब से बांटे विभाग
मंत्रिमंडल के गठन का मामला रहा हो या विभागों के बंटवारे का यही संदेश गया कि पीएम ने अपने हिसाब से ही विभाग बांटे हैं। सहयोगियों का कोई दबाव नहीं था। सहयोगियों के रुख से भी अभी तक गठबंधन मजबूत दिखाई दे रहा है। ऐसे में पीएम राज्यपालों की नियुक्ति में भी गठबंधन की एकता का संदेश दे सकते हैं। जुलाई से सितंबर के बीच ही सारी नियुक्तियां होनी है। अधिक संभावना यही है कि जुलाई में सभी नाम सामने आ जायेंगे।
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