India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहयोगियों की मदद से तीसरी बार सरकार का गठन कर लिया है। मंत्रियों को जिस तरह विभाग बांटे गए उससे यह संकेत तो है कि पीएम मोदी किसे के दबाव में नहीं हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि फिलहाल सहयोगियों का कोई दबाव दिख नहीं रहा है। लेकिन चुनौतियां हैं। क्योंकि अभी लोकसभा के अध्यक्ष के साथ इस बार उपाध्यक्ष का भी चुनाव जरूरी दिखता है। विपक्ष निश्चित तौर पर इसके लिए दबाव बनाएगा। जिसको लेकर राजनीति गरमाएगी। इसके साथ पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन भी इस बार चुनौती बनता दिख रहा है। जिनकी संभावनाएं दिख रही थी वह सभी मंत्री बन गए हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार के बयानों ने मोदी सरकार को इशारों ही इशारों कई संदेश दिए हैं। इससे साफ हो गया कि बीजेपी के नए अध्यक्ष के चयन में इस बार उनका पूरा दखल होगा।
बीजेपी को अभी ऐसे अध्यक्ष की तलाश है भी जो संगठन को फिर से रिचार्ज कर सके। क्योंकि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे कुछ राज्यों से संगठन की उदासीन होने की रिपोर्ट आई हैं। सूत्रों की माने तो राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने तो अपनी रिपोर्ट में संगठन के उदासीन होने की बात कई है। राजस्थान में बीजेपी को 11 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। जो पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हुआ। इसी तरह से उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर हार की वजह गुटबाजी और संगठन का के निष्क्रिय होने की बात सामने आई है। बीजेपी अध्यक्ष के लिए नाम कई चल रहे हैं। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री मोदी कोई भी फैसला जल्दबाजी में नहीं करेंगे। समझा जा रहा है कि प्रधानमंत्री इटली दौरे से वापस लौटने के बाद पहले सहयोगियों से बात कर लोकसभा के स्पीकर का फैसला करेंगे। फिर संघ से चर्चा कर बीजेपी के अध्यक्ष का फैसला होगा, क्योंकि बीजेपी इस बार अपने हिसाब से अध्यक्ष तय नहीं कर पाएगी। तब तक जेपी नड्डा अध्यक्ष का काम देख सकते हैं।
जहां तक लोकसभा के अध्यक्ष का सवाल है तो अपनों से ज्यादा इस बार विपक्ष का रुख ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। लोकसभा में इस बार विपक्ष की संख्या बीजेपी के सदस्यों के आसपास ही। सात सीट का ही अंतर है। 2014 और 2019 में बीजेपी ने अपने दम पर बहुमत पाया था। उसके सहयोगियों की संख्या भी ठीक ठाक थी। जबकि विपक्ष बहुत कमजोर स्थिति में था। कांग्रेस जैसी पार्टी 44 और 52 में सिमट गई थी। इस बार कांग्रेस ने 99 सीट जीती हैं। दो निर्दलियों को शामिल करवा संख्या 101 कर ली। सपा, द्रमुक और टीएमसी ने अपनी संख्या बढ़ाई है। ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका बहुत अहम हो जाती है। विपक्ष तो बीजेपी के सहयोगियों को उकासा रहा है, लेकिन साथ ही उसकी नजर डिप्टी स्पीकर के पद पर भी है।
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प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में एआईडीएमके के थंबी दुरई को डिप्टी स्पीकर बनाया था। तब एआईडीएमके एक तरह से बीजेपी के साथ थी। 2019 में पीएम मोदी ने पूरे पांच साल यह पद खाली रखा। लेकिन इस बार विपक्ष इस पर दावेदारी हर हाल में टोकेगा। यही पीएम के लिए चुनौती होगी। जो संकेत मिल रहे हैं बीजेपी स्पीकर पद अपने पास ही रखेगी। सहयोगियों के रुख से लग रहा है कि वह कोई गतिरोध नहीं करेंगे। बीजेपी की तरफ से लोकसभा के अध्यक्ष पद के लिए डी पुरंदेश्वरी,रवि शंकर प्रसाद,राधा मोहन सिंह जैसे नाम चर्चा में हैं ओम बिड़ला भी फिर से स्पीकर बनने की कोशिश में जुटे हैं। समझा जा रहा है कि 24 जून से शुरू हो रहे लोकसभा के सत्र के दौरान स्पीकर का फैसला हो जायेगा।
26 जून को सभी ओपचारिकताएं पूरी कर ली जाएंगी। लेकिन असल पेंच है डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर। विपक्ष खास तौर पर कांग्रेस सदन को सुचारू रूप से चलाने की एवज में डिप्टी स्पीकर का पद मांग सकती है। हालांकि सरकार की मर्जी पर निर्भर करता है कि वह विपक्ष को दे या किसी सहयोगी को। विपक्ष के संख्या बल को देखते हुए सरकार विपक्ष को यह पद दे भी सकती है। क्योंकि कांग्रेस जिस तरह का रुख अपना रही है उससे इतना तो साफ हो गया सदन में वह गतिरोध का कोई मौका नहीं छोड़ेगी। दूसरी तरफ विपक्ष लगातार निर्दलियों और बीजेपी के सहयोगियों दलों में सेंध लगाने की कोशिश में लगा है। टीएमसी के एक सांसद ने तो दावा भी किया है बीजेपी के सांसद उनके संपर्क में हैं। ये ऐसी चुनौतियों जो पीएम मोदी को बराबर मिलती रहेंगी।
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