अजीत मैदोला, नई दिल्ली, (MP Congress) : कांग्रेस ने मुकुल वासनिक को मध्य्प्रदेश के प्रभार पद से हटा दिया। वजह बताई उन्होंने खुद आग्रह किया था। लेकिन पार्टी के महासचिव बने रहेंगे। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर यह स्थिति क्यों बनी कि उनको आग्रह करना पड़ा। ऐसा भी पहली बार हुआ होगा वह जब आलाकमान ने किसी का आग्रह स्वीकार किया हो। हटने को लेकर जो बात सामने आ रही या वह कांग्रेस के लिये चिंता बढ़ाने वाली है।
क्योंकि आज अधिकांश राज्य पहले से ही आपसी संघर्ष से जूझ रहे है। वासनिक के हटने के पीछे भी यही बात सामने आ रही है कि मध्य्प्रदेश में प्रभारी होने के बाद भी प्रदेश के मुखिया कमलनाथ उनकी नही सुन रहे थे। इसके चलते वासनिक ने आग्रह कर अपने को मध्य्प्रदेश से अलग करवा लिया।हो सकता पार्टी के सबसे लंबे समय से महासचिव पद पर बने रहने के चलते आलाकमान ने उनकी बात मान ली।वरना अभी जो स्थिति है कई राज्यों के महासचिव की तो प्रदेश के ताकतवर नेता आज भी नही सुनते।इसी ठकराव के चलते पार्टी हर राज्य में गुटबाजी से जूझ रही है।
मध्य्प्रदेश में ठकराव नया नही है। दशकों से चला रहा है। कमलनाथ की सरकार आपसी ठकराव के चलते ही गिरी। ज्योतिरादित्य सिंधिया जो अब बीजेपी के नेता और केंद्र में मंत्री है कमलनाथ से ठकराव के चलते ही पार्टी छोड़ी। उस समय आलाकमान अगर सिंधिया की सुन लेता और दोनो नेताओं को बिठाकर समझौता करवा देता तो शायद आज मद्य्प्र्देश में कांग्रेस की सरकार होती। लेकिन ऐसा हुआ नही और कांग्रेस की सरकार चली गई। अब वासनिक का प्रभार पद छोड़ना चिंता बढ़ाने वाला ही है। यह ठीक है कि गांधी परिवार ने कमलनाथ को मध्य्प्रदेश के पूरे अधिकार दिये हुये है।
पूरा खर्चा भी वह ही उठा रहे है आगे चुनाव तक भी उठाएंगे। पूर्व मुख्य्मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह अभी उनके साथ खड़े है।दोनों नेताओं की जोड़ी से पार्टी उम्मीद कर रही है कि वहाँ पर सरकार वापस बनेगी।आज के दिन में मुकाबला कमलनाथ ओर मुख्य्मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच माना जा रहा है।आने वाले दिनों में बीजेपी आलाकमान कोई बड़ा फैसला करता है तब देखना होगा कि कोन चेहरा सामने आता है।
लेकिन सवाल यही है कि नये प्रभारी जेपी अग्रवाल के साथ भी ठकराव हुआ तो क्या होगा।वासनिक जिला व ब्लाक स्तर पर बनी दूरी को खत्म करने में जुटे थे।कमलनाथ अपने तरीके से राजनीति करना चाहते थे। ठकराव बढ़ता गया। इसी तरह का ठकराव हर राज्य में। पंजाब और उत्तराखण्ड इसी ठकराव के चलते खोया। आलाकमान और कांग्रेस के बनने वाले नये अध्य्क्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि राज्यों में चल रहे ठकराव को खत्म करे। राज्यों में कांग्रेस मजबूत होगी तो केंद्र का रास्ता भी बनेगा।
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