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सांसद कार्तिकेय शर्मा ने देश के किराना स्टोर को बचाने के लिए उठाया मुद्दा, जानें वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने क्या कहा ?

India News (इंडिया न्यूज), MP Kartikeya Sharma Raised Issue to save traditional grocery stores : देश भर में त्वरित-वाणिज्य और ई-कॉमर्स के आगमन के साथ, पारंपरिक किराना दुकानों को खुद को बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। क्विक-कॉमर्स और ई-कॉमर्स से कई पारंपरिक किराना स्टोर मालिकों को घाटा हुआ है। वही कई छोटे व्यापारी इस काम में मुनाफा ना मिलने की वजह से उसे छोड़ रहे हैं। इसी मुद्दे  को लेकर सांसद कार्तिकेय शर्मा ने वाणिज्य और  उद्योग मंत्री को लेटर लिखा  है।

सांसद कार्तिकेय शर्मा ने उद्योग मंत्री को लिखा लेटर

राज्य सभा सांसद कार्तिकेय शर्मा ने देश में पारंपरिक किराना स्टोर, क्विक-कॉमर्स और ई-कॉमर्स कंपनियों की खुदरा क्षेत्र में वर्तमान बाजार हिस्सेदारी और विकास दर  को लेकर वाणिज्य और उद्योग मंत्री को लेटर लिखा है।इस लेटर में सांसद कार्तिकेय शर्मा की तरफ से वाणिज्य और उद्योग मंत्री सेपारंपरिक किराना स्टोर, क्विक-कॉमर्स और ई-कॉमर्स कंपनियों की खुदरा क्षेत्र में वर्तमान बाजार हिस्सेदारी और विकास दर से जुड़े  3 ब़ड़े सवाल पूछे गए हैं।

पूछे ये तीन सवाल

  • 1.देश में पारंपरिक किराना स्टोर, क्विक-कॉमर्स और ई-कॉमर्स कंपनियों की खुदरा क्षेत्र में वर्तमान बाजार हिस्सेदारी और विकास दर के बारे में सरकार का आकलन क्या है, यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है?
  • 2. क्या सरकार ने देश भर में पारंपरिक किराना स्टोर की स्थिरता पर क्विक कॉमर्स और ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों के प्रभाव पर कोई व्यापक अध्ययन किया है, यदि हां, तो इसके प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
  • 3.क्या सरकार ने क्विक/ई-कॉमर्स कंपनियों और पारंपरिक किराना स्टोर के बीच समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए कोई विशिष्ट उपाय लागू किए हैं, यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है?

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री जितिन प्रसाद ने दिया जवाब

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री जितिन प्रसाद ने पहले और दूसरे सवाल के जवाब देते हुए लिखा कि सरकार के हितधारक मंत्रालय/विभाग किसी भी मौजूदा/उभरते क्षेत्र की बाजार हिस्सेदारी और विकास दर का आकलन करते हैं, जिसमें अन्य के साथ-साथ, देश में पारंपरिक किराना स्टोर, क्विक कॉमर्स, ई-कॉमर्स कंपनियों और खुदरा क्षेत्र शामिल हैं। यह आकलन तब किया जाता है, जब देश में उस क्षेत्र के विकास के लिए विभिन्न स्कीमों के प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है।वर्ष 2019-20 में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) द्वारा ‘भारत में ई-कॉमर्स पर बाजार अध्ययन’ किया गया था, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ उपभोक्ता वस्तुओं के व्यवसाय से जुड़े ई-कॉमर्स को शामिल किया गया था। अध्ययन रिपोर्ट में, भारत में ई- कॉमर्स की प्रमुख विशेषताओं, ई-कॉमर्स उद्यमियों के विभिन्न व्यवसाय मॉडलों और ई- कॉमर्स से संबद्ध बाजार के भागीदारों के बीच वाणिज्यिक व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर गहरी समझ और जानकारी प्रस्तुत की गई है। इस अध्ययन में पारदर्शिता के उपायों, संग्रह, डाटा का उपयोग और उसे साझा करने, उपयोगकर्ता की समीक्षा और रेटिंग प्रणाली, अनुबंध शर्तों में संशोधन और छूट संबंधी नीति जैसे पहलुओं के संबंध में ई-कॉमर्स में प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिए सीसीआई की अभियुक्तियों को भी शामिल किया गया है।

वहीं तीसरे सवाल के जवाब में राज्य मंत्री श्री जितिन प्रसाद ने  लिखा कि सरकार, स्थानीय व्यावसायिक हितों को सुरक्षित रखते हुए छोटे खुदरा व्यापारियों और परंपरागत किराना स्टोर्स के हितों को सुरक्षित रखने पर ध्यान दे रही है जिससे निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलता है। प्रतिस्पर्धा के समान अवसर सुनिश्चित करने तथा ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों द्वारा प्रतिस्पर्धा-विरोधी पद्धतियों के इस्तेमाल को रोकने के लिए अधिनियमों,नियमों और नीतियों के रूप में विभिन्न उपाय किए गए हैं। उदाहरण के लिए, डिजिटल कॉमर्स के लिए ओपन नेटवर्क (ओएनडीसी) पहल ई-कॉमर्स को अधिक समावेशी बनाती है, जिससे लघु और मध्यम आकार के व्यवसाय को प्लेटफार्म-केंद्रित नीतियों से उत्पन्न बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ता बल्कि वे किसी भी ओएनडीसी-अनुकूल एप्लीकेशन का इस्तेमाल करने में सक्षम होते हैं। ई-कॉमर्स क्षेत्र व्यापक विधायी फ्रेमवर्क के अंतर्गत कार्य करता है। इस क्षेत्र पर लागू होने वाले प्रमुख अधिनियमों में, अन्य के साथ-साथ, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019; उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020; तथा प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 भारतीय शामिल हैं। इस संदर्भ में, प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) को यह अधिदेश देता है कि वह प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली पद्धतियों को रोके, बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाए तथा बनाए रखे, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करे तथा भारत के बाजारों में अन्य प्रतिभागियों द्वारा किए जाने वाले व्यापार में स्वतंत्रता सुनिश्चित करे। सीसीआई प्रतिस्पर्धा-विरोधी करारों से संबंधित मामलों तथा अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में उद्यमों द्वारा अधिपत्य के दुरुपयोग संबंधी मामलों को देखता है।

इसके साथ ही, ई-कॉमर्स और खुदरा क्षेत्र संबंधी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति में स्थानीय व्यावसायिक हितों को सुरक्षित रखने की सरकार की इच्छा को दर्शाती है। ई-कॉमर्स संबंधी एफडीआई नीति का पैरा 5.2.15.2 [उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) द्वारा जारी दिनांक 26.12.2018 के प्रेस नोट 2 (2018 श्रृंखला) द्वारा यथा संशोधित, ई-कॉमर्स के मालसूची-आधारित मॉडल में एफडीआई पर रोक लगाता है, जहां वस्तुओं और सेवाओं की मालसूची पर ई-कॉमर्स कंपनी का स्वामित्व हो तथा सीधा उपभोक्ताओं को बेचा जा रहा हो। स्थानीय व्यावसायिक हितों की रक्षा करने तथा बढ़ावा देने के लिए सिंगल ब्रांड खुदरा व्यापार (एसबीआरटी) संबंधी एफडीआई नीति यह अधिदेश देती है कि 51 प्रतिशत से अधिक के विदेशी निवेश के लिए, खरीदी गई वस्तुओं के मूल्य के 30 प्रतिशत की खरीद भारत से की जानी चाहिए, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई), ग्राम और कुटीर उद्योगों, कलाकारों और शिल्पकारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसी प्रकार, मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार (एमबीआरटी) संबंधी एफडीआई नीति किसी क्षेत्र में एफडीआई के लाभों के परिणामस्वरूप उत्पादन पूर्व और उत्पादन पश्चात् पर्याप्त सुविधाओं का निर्माण सुनिश्चित करने के लिए अनेक शर्तों का उल्लेख करती है। इसके अलावा, भारतीय कंपनियों के अवसरवादी कब्जे अथवा अधिग्रहण को रोकने के लिए, प्रेस नोट 3 (2020 श्रृंखला) के जरिए एफडीआई नीति में संशोधन किए गए थे। इन संशोधनों के अनुसार, उस मामले में जिसमें कंपनी ऐसे देश की है जिसकी भू-सीमाएं भारत से मिलती हैं अथवा ऐसे देश में भारत में निवेश करने वाला लाभार्थी स्वामी स्थित है अथवा ऐसे किसी देश का नागरिक है, तो केवल सरकारी अनुमोदन मार्ग के तहत निवेश कर सकती है।

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Divyanshi Singh

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