India News (इंडिया न्यूज), Himanta Biswa Sarma: असम विधानसभा में मंगलवार को मुस्लिम विवाह और तलाक के अनिवार्य पंजीकरण विधेयक पेश किया गया। इस दौरान विपक्षी दलों ने भारी विरोध किया। समान नागरिक संहिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में पेश किए जा रहे इस विधेयक की कांग्रेस ने “जल्दबाजी” में उठाया गया कदम बताकर आलोचना की है, तो चलिए जानते हैं क्या है पूरा मामला।
मुसलमानों में विवाह और तलाक का पंजीकरण अनिवार्य
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि नए कानून के तहत मुसलमानों में विवाह और तलाक का पंजीकरण अनिवार्य किया जाएगा। वर्तमान में सरकार के पास विवाह और तलाक का पंजीकरण पूरी तरह से स्वैच्छिक है। इसलिए पंजीकरण तंत्र बहुत अनौपचारिक है, जिससे गैर-अनुपालन की गुंजाइश बनी रहती है। नए कानून के तहत मुस्लिम विवाह और तलाक का पंजीकरण अनिवार्य होगा। नए कानून के तहत केवल ऐसी शादियों का पंजीकरण किया जाएगा, जिनमें दूल्हे की उम्र कम से कम 21 और दुल्हन की उम्र 18 से कम हो।
सरमा ने कहा कि इससे राज्य में बाल विवाह पर लगाम लगेगी। मौजूदा कानून को निरस्त करने वाला विधेयक पहले ही पेश किया जा चुका है और अब दोनों को विधानसभा से पारित होना है। इस महीने की शुरुआत में उत्तराखंड यूसीसी कानून पारित करने वाला पहला राज्य बना।
सरमा ने कही थी ये बड़ी बात
बता दें कि, असम में भी इसी तरह का कानून लाए जाने के संकेत हैं। विपक्षी दलों ने इस फैसले की आलोचना की है और इसे चुनावी साल में मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए लाया गया “मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण” बताया है। सरमा ने यह भी कहा कि उनकी सरकार अप्रैल में विवाह के बारे में एक कानून लाएगी। अगर कोई शादी करना चाहता है, तो उसे छह महीने पहले सरकार को सूचित करना होगा। इसमें अंतर-धार्मिक विवाह भी शामिल होंगे।
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