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Mysuru Dasara: 14वीं शताब्दी से चली आ रही प्रथा, जानें क्यों खास है मैसूर का दशहरा

India News (इंडिया न्यूज़), Mysuru Dasara, दिल्ली: आज यानी कि 24 अक्टूबर को देशभर में सभी लोग दशहरा का पर्व धूमधाम से मनाने वाले है। लेकिन पूरे देश से अलग मैसूर में दशहरा की अलग सी ही रौनक देखने को मिलती है। मैसूर में दशहरा का पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनया जाता है। जिस वजह से मैसूर का दशहरा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसकी खासियत के बारें में बताए तो दशहरा या विजयादशमी के पर्व पर मैसूर का राज दरबार आम लोगों के लिए खोल दिया जाता है और फिर भव्य जुलूस निकलता है।

ना राम ना रावण (Mysore Dussehra)

इसके साथ ही खास बात बताए तो मैसूर के दशहरे में ना तो राम होते हैं और ना ही रावण का पुतला जलाया जाता है। यहां पर्व मां भगवती के राक्षस महिषासुर का वध करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसके साथ ही यहां दशहरा का आयोजन नवरात्रि के पहले दिन से ही शुरू हो जाता है। जिसमें आने वाले 10 दिनों तक मैसूर में दशहरा कि धूम देखने को मिलती है।

चामुंडेश्वरी देवी की पूजा से शुरुआत

पूजा कि तैयारियों के बारें में बताए तो कर्नाटक के शहर मैसूर में दशहरे का आयोजन दस दिन तक होता है और इस त्योहार में लाखों की तादात में पर्यटक शामिल होते हैं। वहीं यहां के दशहरा को स्थानीय भाषा में दसरा या नबाबबा कहते हैं। साथ ही उत्सव की शुरुआत के बारें में बात करें तो इसकी शुरुआत देवी चामुंडेश्वरी मंदिर में पूजा अर्चना के साथ शुरू होती है। चामुंडेश्वरी देवी की पहली पूजा शाही परिवार करता है। जिसके बाद पर्व में मैसूर का शाही वोडेयार परिवार समेत पूरा मैसूर शहर शामिल होता है।

दुल्हन की तरह मैसूर पैलेस होता है तैयार

पूजा अर्जना के साथ मैसूर पैलेस को खास लाइटिंग से तैयार किया जाता है। वहीं इस खास मौके पर कई तरह की प्रदर्शनियां निकलती हैं। इसके आलावा कई तरह के धार्मिक एव सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। मैसूर कि शान मैसूर पैलेस को एक लाख से अधिक बल्ब के साथ खूबसूरत बनाया जाता है और चामुंडेश्वरी पहाड़ियों को 1.5 लाख बल्बों के साथ रोशन किया जाता है। ऐखिर में महल के सामने मैदान में एक दसारा प्रदर्शन का भी आयोजन किया जाता है।

14वीं शताब्दी से चल रही है प्रथा

खास बात बताए तो इस साल मैसूर का भव्य त्योहार 408वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। वहीं मेले के इतिहास के बारें में कहा जाता है कि हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों ने 14वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य में नवरात्रि का उत्सव मनाया था। इसके बाद 15वीं शताब्दी में राजा वोडेयार ने दस दिनों के मैसूर दशहरे उत्सव की शुरुआत की। कथा मिलती है कि यहां मौजूद चामुंडी पहाड़ी पर माता चामुंडा ने महिषासुर नामक राक्षस का अंत किया था और बुराई पर सत्य की जीत को बहाल किया। इसलिए मैसूर के लोग विजयादशमी या दशहरे को धूमधाम से मनाते हैं।

निकलती है कई झांकियां

जैसा कि हम ने बताया कि दशहरे के दिन यहां माता चामुंडेश्वरी की पूजा अर्चना की जाती है। जिसके बाद खास तरह का जुलूस भी निकला जाता है, जो अंबा महल से शुरू होता है और मैसूर से होते हुए करीब पांच किलोमीटर दूर तक जाता है। वहीं जुलूस में तकरीबन 15 हाथियों को शामिल किया जाता है। जिनको दुल्हन कि तरह सजाया जाता है। साथ ही जुलूस में नृत्य, संगती, सजे हुए जानवर आदि झांकियां भी निकाली जाती है।

माता करती है नगर भ्रमण

जंबू सवारी के नाम से जाना जाने वाले उत्सव को दसवें दिन मनाया जाता है। जिसके अदंर बड़े और बच्चे सभी शामिल होते है। जिसके अदंर सोने चांदी से सजे हाथियों का काफिला निकला जाता है और 21 तोपों की सलामी के बाद मैसूर राजमहल से कि तरफ बढ़ा जाता है। इस दिन सभी की निगाहें गजराज के सुनहरे हौदे पर टिकी होती हैं। इसी हौदे पर चामुंडेश्वरी देवी मैसूर नगर भ्रमण के लिए निकलती हैं और उनके साथ अन्य गजराज भी साथ चलते है। साल भर में यही एक मौका होता है, जब देवी मां 750 किलो के सोने के सिंहासन पर विराजमान होकर नगर भ्रमण करती है।

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Simran Singh

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