इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
सोमवार को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। शुरूआती तौर पर उनकी मौत की वजह आत्महत्या बताई जा रही है। लेकिन पुलिस का शक उनके शिष्य आनंद गिरी (Anand Giri) की तरफ जा रहा है। क्योंकि उन्होंने अपने सुसाइड नोट में आनंद गिरी का जिक्र करते हुए लिखा है कि उसकी वजह से वह काफी परेशान थे। और इसी आधार पर आनंद गिरी को गिरफ्तार भी कर लिया गया है।
प्रयागराज के एक ऐसे शख्स हैं, जिनका परिवार महंत नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) को उस वक्त से जानता है, जब वह पहली बार प्रयागराज आए थे। परिवार के सदस्य विकास त्रिपाठी के अनुसार नरेंद्र गिरी, साल 2000 में पहली बार कुंभ मेले के समय साधु के रुप में संगम नगरी पहुंचे थे। उसके पहले वह राजस्थान के माउंट आबू में निरंजनी अखाड़े के मंदिर के प्रमुख थे। विकास के अनुसार नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) अपने बचपन की कहानी बताते हुए कहते थे कि वह प्रयागराज में ही पैदा हुए थे। लेकिन 7-8 साल की उम्र में उन्होंने घर-बार छोड़ दिया था और साधु बन गए थे।
विकास ने आगे बताया कि नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) ने अखाड़े में थानापति से अपना सफर शुरू किया था। यह पद नए लोगों को दिया जाता है। वहां से वह अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष बने। लेकिन यह सफर बहुत आसान नहीं था। उनसे मेरी मुलाकात हमारे दारागंज स्थित पीसीओ पर हुई, जहां वह अपना काफी समय बिताया करते थे। वहीं पर उनके शख्सियत के बारे में पता चला। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह सामाजिक रुप से बहुत सक्रिय रहते थे।
जिस वजह से उनकी पहचान काफी तेजी से बढ़ी। उन्हें फिल्में का बहुत शौक था। मुझे याद है एक बार उन्होंने मुझे गदर फिल्म दिखाई थी। मुझसे बोले कि देशभक्ति वाली फिल्म है, चलो देखकर आते हैं। विकास आगे बताते हैं कि उस समय महंत को एम्बेस्डर कार मिला करती थी, उसी कार से हम गदर फिल्म देखने गए थे।
विकास कहते हैं, प्रयागराज के सबसे प्रतिष्ठित मंदिर श्री लेटे हनुमान मंदिर की देख-रेख की जिम्मेदारी निरंजनी अखाड़े के तहत आती है। ऐसे में जब नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) अखाड़े के पंच और बाघम्बरी गद्दी मठ के महंत बने तो हनुमान मंदिर के प्रमुख पुजारी भी वही बने। यहां से उनके संपर्कों का काफी विस्तार हुआ और राजनीतिक नेताओं और बाबुओं से उनके गहरे संबंध बने। वह स्वभाव से ही बेहद सामाजिक थे, इसलिए उनके संपर्कों का दायरा बहुत तेजी से बढ़ा और सभी राजनीतिक दलों में उनकी पहचान बनी।
विकास ने आग बताते हुए कहा कि उनके मुलायम सिंह यादव के परिवार से बहुत अच्छे संबंध थे। उसमें भी शिवपाल सिंह यादव तो अक्सर उनसे मिलते थे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मौजूदा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से भी उनके अच्छे संबंध रहे। दूसरे नेताओं से भी नरेंद्र गिरी के संबंध रहे। इसके बावजूद वो राजनीति से दूर रहे। कभी भी किसी चुनाव में किसी दल या नेता का सार्वजनिक तौर पर समर्थन करने का ऐलान नहीं किया।
VP Singh had Given Land for the Arena
निरंजनी अखाड़े के पास जिले में कई सौ बीघा जमीन है। पूर्व प्रधानमंत्री विश्व नाथ प्रताप सिंह जो मांडा के राजा भी थे, उन्होंने बहुत सारी जमीन अखाड़े को दी थी। नरेंद्र गिरी ने अखाड़े की जिम्मेदारी संभालने के बाद, उसका कायाकल्प कर दिया। पहले वह टूटा-फूटा अखाड़ा हुआ करता था। उसकी इमारतें जर्जर थी, लेकिन उन्होंने उसका रूप ही बदल दिया।
विकास कहते हैं कि नरेंद्र गिरी के शिष्य आनंद गिरी, उनके बेहद करीब रहे हैं। उनका पालन-पोषण बचपन से नरेंद्र गिरी ने किया। जब आनंद गिरी 7-8 साल के रहे होंगे, उस वक्त से मैं उन्हें देख रहा हूं। नरेंद्र गिरी ने उन्हें माउंट आबू भेजकर, वहीं पर उनकी पढ़ाई-लिखाई कराई और बाद में प्रयागराज बुला लिया था। लेकिन पिछले कुछ समय से जमीनों की बिक्री को लेकर दोनों में दूरियां बढ़ने लगीं। इसके अलावा आनंद गिरी पर कई तरह के आरोप लगे, जिसके बाद दोनों के बीच खींचतान शुरू हुई और महंत नरेंद्र गिरी ने आनंद गिरी को मार्च 2021 में अखाड़े से निष्कासित कर दिया।
अखाड़े की शहर में बहुत सारी जमीनें ऐसे थी, जिसमें पीढ़ियों से लोग रह रहे थे। यहां पर 150-200 साल से लोग बेहद मामूली किराए पर रहते थे। ऐसी ही एक इमारत दारागंज इलाके में थी। उन्होंने पिछले कुंभ से पहले उस इमारत को खाली कराया। उसमें करीब 150-200 परिवार रहते थे।
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