India News (इंडिया न्यूज़),NITI Aayog: भारतीय नीति आयोग ने गरीबी स्तर को लेकर बयान जारी कर बताया है कि, भारत अब तरक्की के राह पर चल पड़ा है। वहीं नीति आयोग ने भारत में गरीबी स्तर को लेकर भी बयान जारी करते हुए बताया कि, भारत में गरीबी स्तर में 5% की कमी आई है। जानकारी के लिए बता दें कि, ये बयान नीति आयोग के सीईओ B.V.R सुब्रमण्यम ने आगे कहा कि, सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी घरेलू उपभोग व्यय के नवीनतम सर्वेक्षण से पता चला है कि ग्रामीण खपत मजबूत बनी हुई है, जिससे शहरी खपत का अंतर कम हो रहा है और इन आंकड़ों का मतलब देश में गरीबी के स्तर में तेज कमी हो सकती है। “इस डेटा के आधार पर, देश में गरीबी का स्तर 5% या उससे कम के करीब हो सकता है। आंकड़ों की माने को ग्रामीण अभाव लगभग गायब हो गया है।
बी वी आर सुब्रमण्यम का बयान
गरीबी स्तर में कमी आने को लेकर नीति आयोग के सीईओ बी वी आर सुब्रमण्यम ने आगे कहा कि, “भोजन में, पेय पदार्थ, प्रसंस्कृत भोजन, दूध और फलों की खपत बढ़ रही है, जो अधिक विविध और संतुलित खपत का संकेत है।” उन्होंने कहा कि नवीनतम आंकड़ों से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का पुनर्गठन होगा जो खुदरा मुद्रास्फीति को मापता है, क्योंकि अनाज और भोजन की हिस्सेदारी कम हो जाएगी। इसके साथ ही सुब्रमण्यम ने कहा कि, “इसका मतलब है कि सीपीआई मुद्रास्फीति में भोजन का योगदान कम होगा और शायद पहले के वर्षों में भी कम था। इसका मतलब है कि मुद्रास्फीति को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा था और शायद कम है क्योंकि भोजन का प्रमुख योगदान रहा है।
ब्याज दर पर पड़ेगा असर?
इसके साथ ही सीईओ सुब्रमण्यम ने कहा कि, गरीबी स्तर में 5% की कमी आने वाले आकड़ों असर अब RBI द्वारा ब्याज दर निर्धारण पर पड़ेगा, क्योंकि खुदरा मुद्रास्फीति सूचकांक में खाद्य और अनाज की हिस्सेदारी कम है। आंकड़ों ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में संदेह को दूर कर दिया है। जानकारी के लिए बता दें कि, गरीबी स्तर की गणना उपभोग व्यय के आंकड़ों के आधार पर की जाती है और गरीबों की संख्या को लेकर तीखी बहस छिड़ी हुई है। 2017-18 का डेटा जारी नहीं किया गया था, इसलिए यह 2011-12 के बाद का नवीनतम डेटा है।
घरेलू उपभोग व्यय के नए आकड़े
अब बात अगर घरेलू उपभोग व्यय के नए आकड़े की करें तो, इससे ये पता चलता है कि, ग्रामीण और शहरी उपभोग में महत्वपूर्ण बदलाव आया है, जिसमें भोजन और अनाज की हिस्सेदारी में कमी आई है। इस अवधि में गैर-खाद्य वस्तुओं जैसे फ्रिज, टेलीविजन, पेय पदार्थ और प्रसंस्कृत भोजन, चिकित्सा देखभाल और परिवहन पर खर्च बढ़ गया है, जबकि अनाज और दालों जैसे खाद्य पदार्थों पर खर्च धीमा हो गया है। इसके साथ ही सर्वेक्षण से पता चला है कि मौजूदा कीमतों पर, ग्रामीण मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग खर्च 2011-12 में 1,430 रुपये से 164% बढ़कर 2022-23 में 3,773 रुपये हो गया, जबकि शहरी केंद्रों में यह 146% बढ़ गया, जो 2011-12 में 2,630 रुपये से बढ़कर 2011-12 में 2,630 रुपये हो गया।
ग्रामीण क्षेत्रों में मासिक खपत
वहीं अब ग्रामीण क्षेत्रों में, मासिक खपत की बात करें तो, सर्वेक्षण में पता चलता है कि, तो ग्रमीण क्षेत्र में भोजन की हिस्सेदारी 2011-12 में 53% से घटकर 2022-23 में 46.4% हो गई है, जबकि गैर-खाद्य वस्तुओं पर खर्च 47.15 से बढ़कर 54% हो गया है। शहरी केंद्रों में भी यही प्रवृत्ति दिखाई दे रही है, भोजन पर खर्च 2011-22 में 43% से घटकर 2022-23 में 39.2% हो गया, जबकि गैर-खाद्य व्यय 2011-12 में 57.4% से बढ़कर 2022-23 में 60.8% हो गया।
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