सुन्नी कौन हैं?
सुन्नी मुसलमानों की मान्यता पैगंबर मुहम्मद के कथनों और क्रियाओं (सुन्नत) पर आधारित है। सुन्नी मुसलमान इस विचार को मानते हैं कि पैगंबर ने अपने बाद किसी स्पष्ट उत्तराधिकारी को नामित नहीं किया था, इसलिए मुस्लिम समुदाय ने खलीफा के चुनाव के माध्यम से नेतृत्व तय किया। इस प्रक्रिया में, पहले खलीफा के रूप में हज़रत अबु बक्र चुने गए, जो पैगंबर मुहम्मद के करीबी सहयोगी और ससुर थे। इसके बाद हज़रत उमर, हज़रत उस्मान और फिर हज़रत अली खलीफा बने।
दुनिया के लगभग 80-85 प्रतिशत मुसलमान सुन्नी हैं, और वे इस विचारधारा का पालन करते हैं कि मुस्लिम समाज के नेता का चुनाव योग्य व्यक्तियों द्वारा किया जाना चाहिए।
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शिया कौन हैं?
शिया मुसलमान पैगंबर मुहम्मद के उत्तराधिकार के बारे में एक अलग दृष्टिकोण रखते हैं। उनका मानना है कि पैगंबर मुहम्मद ने गदीर-ए-खुम नामक स्थान पर अपने दामाद और चचेरे भाई हज़रत अली को अपने उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया था। इस घटना को शिया मुसलमानों ने पैगंबर द्वारा उत्तराधिकार की स्पष्ट घोषणा के रूप में देखा, जबकि सुन्नी मुसलमान इसे एक आध्यात्मिक और धार्मिक नेतृत्व की घोषणा मानते हैं, न कि राजनीतिक नेतृत्व की।
शिया मुसलमानों की धार्मिक आस्थाएँ और इस्लामिक कानून सुन्नियों से काफ़ी अलग हैं। शियाओं का मानना है कि पैगंबर मुहम्मद के बाद उनके असली उत्तराधिकारी अली और उनके वंशज थे, जिन्हें इमाम कहा जाता है। शिया इस्लाम में इमामत को पैगंबर के परिवार के माध्यम से चलने वाली एक धार्मिक और राजनीतिक परंपरा माना जाता है।
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शिया-सुन्नी विभाजन की उत्पत्ति
शिया-सुन्नी विभाजन पैगंबर मुहम्मद के निधन के तुरंत बाद शुरू हुआ। सवाल यह था कि उनके बाद इस्लामिक समाज का नेतृत्व कौन करेगा। एक धड़ा (सुन्नी) इस बात का पक्षधर था कि खलीफा का चुनाव योग्य व्यक्तियों द्वारा किया जाए, जबकि दूसरा धड़ा (शिया) मानता था कि पैगंबर मुहम्मद ने पहले ही अली को अपने उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया था।
मुसलमानों के बीच यह पहला विभाजन 632 ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के बाद हुआ। सुन्नी मुसलमानों ने हज़रत अबु बक्र को पहला खलीफा चुना, जबकि शिया मुसलमान हज़रत अली को पैगंबर का सही उत्तराधिकारी मानते रहे। हज़रत अली की हत्या के बाद, यह विवाद और भी अधिक गहरा हो गया।
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कर्बला की घटना: शिया समुदाय के लिए धार्मिक महत्व
शिया और सुन्नी समुदायों के बीच विभाजन कर्बला की लड़ाई के बाद और गहरा हो गया। 680 ईस्वी में, हज़रत अली के बेटे हुसैन ने यज़ीद, जो उमय्यद खलीफा था, के खिलाफ विद्रोह किया। कर्बला की लड़ाई में हुसैन और उनके 72 साथियों को शहीद कर दिया गया। इस घटना ने शिया समुदाय के लिए हुसैन को शहीद और आदर्श बना दिया, और कर्बला की जंग शिया मुस्लिम धर्मशास्त्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई।
कर्बला की घटना के बाद, सुन्नी खलीफाओं ने शियाओं पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया, जिससे शिया और सुन्नी के बीच की खाई और भी चौड़ी हो गई।
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शिया और सुन्नी के धार्मिक भिन्नताएं
समय के साथ, शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच धार्मिक और सामाजिक तौर-तरीके भी अलग हो गए। उदाहरण के लिए, शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच नमाज़, रोज़ा और अज़ान के नियम अलग-अलग हैं।
- अज़ान: शिया मुस्लिम अज़ान में ‘अली वली अल्लाह’ जोड़ते हैं, जबकि सुन्नी मुसलमान ऐसा नहीं करते।
- नमाज़: शिया मुस्लिम दिन में 3 बार नमाज़ अदा करते हैं, जबकि सुन्नी मुस्लिम 5 बार।
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शिया-सुन्नी संघर्ष: राजनीतिक और सामाजिक पहलू
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच का यह धार्मिक विभाजन समय के साथ राजनीतिक और सामाजिक संघर्षों में बदल गया। विशेष रूप से मध्य पूर्व में, यह विवाद कई देशों में सत्ता संघर्ष का कारण बना। उदाहरण के लिए:
- सऊदी अरब और ईरान: ये दो देश शिया-सुन्नी विभाजन के राजनीतिक और धार्मिक ध्रुवीकरण के प्रमुख उदाहरण हैं। ईरान में शिया बहुमत है, जबकि सऊदी अरब में सुन्नी बहुमत है। इन दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती है।
- इराक और सीरिया: इन देशों में भी शिया-सुन्नी विवाद ने सामाजिक और राजनीतिक अशांति को बढ़ावा दिया है। आईएसआईएस जैसे संगठनों ने भी इस विभाजन का फायदा उठाया है।
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निष्कर्ष
शिया-सुन्नी विवाद एक धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा है जो इस्लाम के शुरुआती दिनों से लेकर आज तक चला आ रहा है। हालांकि इस्लाम के दोनों पंथ अल्लाह और पैगंबर मुहम्मद के प्रति समर्पण की समान मान्यता रखते हैं, लेकिन पैगंबर के बाद नेतृत्व को लेकर हुआ यह विभाजन आज भी इस्लामी दुनिया में संघर्ष और अशांति का एक प्रमुख कारण है।
इस विवाद को समझने के लिए हमें इस्लाम के प्रारंभिक इतिहास, पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं और उनके उत्तराधिकार से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इससे हम जान सकते हैं कि शिया और सुन्नी के बीच का यह विभाजन धार्मिक के साथ-साथ राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी कितना महत्वपूर्ण है।
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