India News (इंडिया न्यूज), Pandit Jawaharlal Nehru against Religion: भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का आज जन्मदिन है। जो अपने लेखन और आचरण में धार्मिक कर्मकांडों के प्रति अपनी नापसंदगी और अविश्वास को व्यक्त करने में कभी नहीं हिचकिचाते थे। यहां तक ​​कि 21 जून 1954 की अपनी वसीयत में भी उन्होंने लिखा था कि मैं अपनी मृत्यु के बाद कोई धार्मिक कर्मकांड नहीं चाहता। मैं मृत्यु संस्कारों में विश्वास नहीं करता और उन्हें महज एक प्रथा के रूप में स्वीकार करना पाखंड होगा। हालांकि, ऐसा संभव नहीं था। वहीं उनकी मृत्यु के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने गुलजारी लाल नंदा ने कहा था कि नेहरू के जीवनकाल में उनकी सहमति से महामृत्युंजय मंत्र का 4.25 लाख बार जाप किया गया था। इस दौरान नेहरू ने खुद भी कई बार इसमें भाग लिया था।

दुनिया को देखो, परलोक को नहीं- पीएम नेहरू

बता दें कि, कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 में में अपने अध्यक्षीय भाषण में नेहरू ने कहा कि मैं हिंदू पैदा हुआ हूं। लेकिन मुझे नहीं पता कि मुझे खुद को हिंदू कहने या हिंदुओं की ओर से बोलने का कितना अधिकार है। लेकिन इस देश में जन्म का महत्व है और जन्म के अधिकार से मैं हिंदू नेताओं से कहने का साहस करूंगा कि उदारता से नेतृत्व करना उनका विशेषाधिकार होना चाहिए। मुझे धर्म में कट्टरता और हठधर्मिता से कोई लगाव नहीं है। मैं किसी भी रूप में सांप्रदायिकता को स्वीकार नहीं करता।

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पंडित नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि भारत को सबसे ऊपर धार्मिक देश माना जाता है। हिंदू, मुस्लिम, सिख और अन्य लोग अपनी-अपनी मान्यताओं पर गर्व करते हैं और एक-दूसरे का सिर फोड़कर अपनी सच्चाई साबित करते हैं। लेकिन मुझे खुला समुद्र चाहिए। मुझे परलोक या मृत्यु के बाद क्या होता है, इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे इस जीवन की समस्याएं ही मेरे दिमाग को व्यस्त रखने के लिए पर्याप्त लगती हैं।

अंतिम इच्छा की हुई अनदेखी

पीएम पंडित नेहरू का निधन 27 मई 1964 को हुआ। वहीं वसीयत में लिखी उनकी इच्छा के विपरीत उनका अंतिम संस्कार हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया। चंदन की चिता बनाई गई। अनुष्ठान के लिए काशी से एक योग्य पंडित को विमान से बुलाया गया। गंगा जल और इस अवसर से संबंधित अन्य सामग्री का उपयोग किया गया। साथ ही इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी ने नाना की चिता को मुखाग्नि दी। दाह संस्कार और उसके बाद की रस्में नेहरू की सोच के खिलाफ थीं। लेकिन यह सब किया गया। नेहरू की वसीयत के दो गवाहों में से एक एम.ओ.मथाई ने प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर को बताया था कि नेहरू धार्मिक पाखंड के खिलाफ थे। यह सब इंदिरा और गुलजारी लाल नंदा ने किया था।

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जीवन के अंतिम दिनों में धर्म के प्रति लगाव बढ़ा

पंडित नेहरू के करीबी मंत्री टी.टी. कृष्णमाचारी ने नायर से कहा था कि जब 1954 में नेहरू से दक्षिण के एक मंदिर में प्रवेश करने के लिए कुर्ता उतारने को कहा गया तो उन्होंने मना कर दिया। लेकिन अपने अंतिम दिनों में नेहरू बहुत धार्मिक हो गए थे। उनकी मृत्यु के समय उनके बिस्तर के पास गीता और उपनिषद रखे गए थे। उन्होंने आगे कहा था कि वे हमेशा अपने ब्रीफकेस में गीता की एक प्रति और यूएन चार्टर का संक्षिप्त संस्करण रखते थे। नेहरू का मानना ​​था कि गीता और उपनिषद किसी दैवीय शक्ति की रचना नहीं बल्कि इंसानों की रचना है। इनके रचयिता बहुत बुद्धिमान और दूरदर्शी थे लेकिन वे साधारण इंसान थे।

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