इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
Parsi After Death Rituals in Hindi : पारसी समुदाय के दाह संस्कार के तौर तरीकों पर केंद्र सरकार की तरफ से रोक लगाई गई है। जिस तरह हिंदू और सिख धर्म में शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है, उन्हें जलाया जाता है। उसी तरह मुस्लिम और इसाई धर्म के लोग शव को दफन करते हैं।
लेकिन पारसी समुदाय में किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद उसकी अंतिम यात्रा बिल्कुल अलग है। इस रस्म के अनुसार पारसी धर्म के लोग टॉवर आफ साइलेंस के तहत अंतिम क्रिया निभाते हैं। पारसियों की इस रस्म को दोखमेनाशिनी भी कहा जाता है। आज के समय में भी पारसी अपनी इस परंपरा को नहीं बदल रहे। वो अपनों के अंतिम क्रिया को दोखमेनाशिनी रस्म के अलावा दूसरी रस्म से नहीं करना चाहते।
पारसी रस्म के अनुसार शवों का अंतिम संस्कार करने पर केंद्र सरकार ने रोक लगा रखी थी। इस रोक के विरोध में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए टावर आफ साइलेंस पर रोक को बरकरार रखा। कोर्ट ने इस रस्म से रोक हटाने से मना कर दिया है। बता दें कि पिछले काफी समय से पारसी समुदाय के लोग अपनी रस्मों के अनुसार शवों का अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहे हैं।
पारसी समुदाया के लोग काफी समय से मांग उठा रहे हैं कि उनके अंतिम संस्कार के तरीकों को फिर से मंजूरी दी जाए। पारसी समुदाय के लोगों की मांग है कि कोरोना संक्रमण से जान गंवाने वाले परिजनों का अंतिम संस्कार वो अपने तरीकों से करना चाहते हैं। उन्हें उनके धर्म के अनुसार अंतिम क्रिया करने की अनुमति मिले।
केंद्र सरकार ने अंतिम संस्कार के तरीकों को बदलने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली। जिसमें बताया गया कि कोविड-19 से मौत होने वालों का अंतिम संस्कार प्रोफेशनलस करते हैं। जिसमें काफी सावधानी बरतनी पड़ती है। ऐसे में कोरोना से मरने वालों के शरीर को खुले में नहीं छोड़ा जा सकता।
पारसी धर्म में मृतक के शरीर को खुले में छोड़ा जाता है। ऐसे में संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है। सरकार ने कोर्ट में हलफनामा जारी कर कहा कि कोविड से मौत होने पर शव को सही से जलाना और अंतिम संस्कार करना आवश्यक है। ऐसा न होने पर संक्रमण फैल सकता है।
शव को खुले आसमान के नीचे रखने से संक्रमण फैल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोरोना मरीजों का अंतिम संस्कार प्रोटोकॉल के अनुसार ही किया जाना चाहिए। इस समस्या को सुलझाने के लिए याचिका करने वालों और धर्म के गणमान्य लोगों को अंतिम संस्कार संबंधी विषय पर संतुलन बनाना चाहिए।
हिंदू और सिख धर्म में शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है उन्हें आग के हवाले किया जाता है। वहीं इसाई और इस्लाम में शवों को दफन किया जाता है। पारसी धर्म में शवों की अंतिम क्रिया सबसे अलग है। पारसी धर्म में शवों को आकाश के सुपुर्द किया जाता है। इस रस्म में शव को टावर आफ साइलेंस या दखमा में ले जाकर खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया जाता है।
पारसी धर्म के लोग तकरीबन 3000 साल से इस रस्म यानि दोखामेनाशिनी का पालन कर रहे हैं। भारत में ज्यादातर पारसी समुदाय के लोग महाराष्ट्र में रहते हैं। पारसी समुदाय के लोग मुंबई के टावर आफ साइलेंस में अपने संबंधियों का अंतिम संस्कार करते हैं। टावर आफ साइलेंस एक गोलाकार ढांचा है। पारसी शव को इस ढांचे की चोटी पर रख देते हैं। जिसके बाद गिद्ध, चील, पक्षी, जानवर उस शव को ग्रहण करते हैं।
दुनिया में आज भी परंपरावादी पारसी इसी रस्म का इस्तेमाल करते हैं। पारसी समुदाय के लोग अहुरमज्दा भगवान में अपना विश्वास रखते हैं। पारसी देश के समृद्ध समुदायों में से एक है।
पारसी अग्नि, जल, पृथ्वी को सबसे पवित्र मानते हैं। पारसियों को मानना है कि आग में जलाने से अग्नि अपवित्र हो जाती है और पानी में शव को बहाने से जल अपवित्र हो जाता है। वो मानते हैं कि शवों को धरती में दफनाने से धरती अपवित्र हो जाती है। पुराने पारसियों का मानना है कि वो अपने परिजनों का अंतिम संस्कार पुरानी रस्म के अनुसार करना चाहते हैं।
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