इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Political War In Pakistan: बीते रविवार को पाकिस्तान में नेशनल असेंबली भंग कर दी है और 90 दिन के अंदर चुनाव करवाए जाने कि बात कही गई। पर आपको बता दें कि ये पाकिस्तान की सियासत में पहली बार ऐसा नहीं हुआ जब किसी पीएम के कहने पर संसद भंग हुई हो।
बताया जाता है कि सन् 1993 में भी नवाज शरीफ ने भी नेशनल असेंबली खारिज करवाई थी। वहीं 2008 में मार्शल लॉ खत्म कर चुनाव में कूदे परवेज मुशर्रफ को भी लोगों ने नाकार दिया था। अब सवाल ये उठता है कि क्या इमरान खान के लिए भी सत्ता में वापसी करना आसान होगा या नहीं। तो चलिए जानते हैं कि पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री और उनके कार्यकाल का हाल।
क्या इमरान की सत्ता में वापसी की राह आसान है?
इस बार कार्यकाल से करीब डेढ़ साल पहले असेंबली भंग कर चुनावी समर में उतरने की घोषणा करने वाले इमरान की राह भी आसान नहीं है। उनके विरोध में करीब 10 पार्टियों का गठजोड़ है। वहीं, महंगाई, भ्रष्टाचार और लॉ एंड आॅर्डर मुद्दे पर लगातार इमरान सरकार बैकफुट पर है।
क्यों नवाज नहीं लौट सके थे सत्ता में? (Political War In Pakistan)
नवाज शरीफ 1990 में बेनजीर भुट्टो को हराकर सत्ता में लौटे, लेकिन 3 साल के अंदर ही तब के राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान से शरीफ की तकरार हो गई। इसके बाद शरीफ ने नेशनल असेंबली को भंग कर दिया। इसके बाद हुए आम चुनाव में नवाज शरीफ की पार्टी हारी और बेनजीर भुट्टो ने दूसरी बार सत्ता में वापसी की थी।
मुशर्रफ को जनता ने क्यों नकारा?
पाकिस्तान के सेना के प्रमुख रहे परवेज मुशर्रफ 1999 में सैन्य तख्तापलट कर सत्ता पर आए। 2008 में राष्ट्रपति रहते मुशर्रफ ने चुनाव कराए, लेकिन उनके सहयोगियों को इस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। मुशर्रफ इसके बाद देश छोड़कर भाग गए। आसिफ अली जरदारी के नेतृत्व वाली पीपीपी की सरकार बनी और युसूफ रजा गिलानी प्रधानमंत्री बने।
भावनात्मक लहर के साथ सत्ता में आईं थीं भुट्टो
- पाकिस्तान में मार्शल लॉ खत्म होने के बाद 1988 में चुनाव हुए। इसमें पिता जुल्फिकार भुट्टो को फांसी पर लटकाए जाने के बाद बेनजीर भुट्टो सियासी मैदान में उतरीं। बेनजीर पिता की हत्या के बाद भावनात्मक लहर में चुनाव जीत गईं। इस चुनाव में भुट्टो की पार्टी पीपीपी को 94 सीटें मिलीं, जबकि विरोधी इस्लामिक जम्हूरियत इत्तेहाद के खाते में 56 सीटें आई।
- हालांकि, दो साल के अंदर ही भुट्टो सत्ता से बेदखल हो गईं और चुनाव हुए। इसमें उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। पीपीपी को 44 सीटों पर ही जीत मिली, जबकि नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन 106 सीट जीतकर सत्ता में आई।
क्यों नवाज ने 2017 में पद से दिया था इस्तीफा ?
2013 में नवाज शरीफ की पार्टी मजबूती के साथ सत्ता में वापसी की, लेकिन 2017 में एक केस में सजा होने के बाद उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। नवाज ने अपनी कुर्सी पर शाहिद खकान अब्बासी को बैठाया। मगर 2018 के चुनाव में अब्बासी सत्ता में पीएमएलएन की वापसी नहीं करा पाए। इमरान खान की पार्टी 2018 के चुनाव में जीतकर सत्ता में आ गई। Political War In Pakistan
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