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अब जज बनेगा ‘पाकिस्तानी जासूस’? देशद्रोह के कलंक ने काली कर दी जिंदगी, दिल दहला देगी 22 साल की फिल्मी लड़ाई

India News (इंडिया न्यूज), Pradeep Kumar Story : इलाहाबाद हाई कोर्ट से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां पर कोर्ट ने 8 साल से जज के तौर पर नियुक्ति की न्यायिक लड़ाई लड़ रहे शख्स के हक में फैसला सुनाया है। असल में प्रदीप कुमार कानपुर के रहने वाले हैं। उनके मुताबिक चयन के बावजूद नियुक्ति देने से मना कर दिया गया था। इसके पीछे की वजह उनके ऊपर लगे पाकिस्तानी जासूस का संगीन इल्जाम था। यहीं नहीं प्रदीप कुमार को इस मामले की वजह से कई साल तक जेल की सजा और देशद्रोह का दंश झेलना पड़ा। पिछले 22 साल से वह जिंदगी के तोड़ देने वाले संघर्ष के जूझ रहे हैं। अब उनके न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठने का रास्ता साफ है। यह कहानी पूरी फिल्मी है।

मामला साफ होने के 8 साल बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट की ज‌स्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने प्रदीप कुमार को जज (HJS कैडर) के रूप में नियुक्त करने का आदेश दिया है। पीठ की तरफ से कहा गया है कि राज्य के पास ऐसा कोई भी सबूत मौजूद नहीं है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि याचिकाकर्ता ने किसी विदेशी खुफिया एजेंसी के लिए काम किया हो। मुकदमे में बरी होना सम्मानजनक था। चरित्र सत्यापन सहित सभी औपचारिकताएं पूरी होने पर, याचिकाकर्ता को 15 जनवरी 2025 से पहले नियुक्ति पत्र जारी किया जा सकता है।

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कैसे लगा प्रदीप पर देशद्रोह का आरोप

जानकारी के मुताबिक प्रदीप पैसे हासिल करने के आसान तरीकों को तलाश करने के चलते फैजान इलाही नामक शख्स के कॉन्टैक्ट में आए थे। फैजान एक फोटोस्टेट की दुकान चलाता था और उसने कथित तौर पर प्रदीप से पैसे के बदले टेलीफोन पर कुछ जानकारी देने करने के लिए कहा था। आरोप लगाया गया कि कुमार ने पैसे के बदले में कानपुर की संवेदनशील जानकारी दी। बता दें कि प्रदीप के पिता भी जज रह चुके हैं। केस की वजह से प्रदीप के पिता को भी 1990 में रिश्वतखोरी के आरोप में एक अतिरिक्त न्यायाधीश की सेवा से निलंबित कर दिया गया था। हालांकि अब हाई कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद प्रदीप जज साहब बनने से बस एक कदम ही दूर हैं।

24 साल के थे जब लगा आरोप

प्रदीप कुमार पर 2002 में पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगा था। तब वह 24 साल के थे। लंबे मुकदमे के बाद 2014 में कानपुर की जिला अदालत ने उन्हें बरी कर दिया गया था। वह जेल में भी रहे। बरी होने के 2 साल बाद साल 2016 में इन्होंने यूपी उच्च न्यायिक सेवा की परीक्षा दी और 27वां पद हासिल किया था। लेकिन जॉइनिंग लेटर देने से इनकार किया था।

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Shubham Srivastava

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