अजीत मैंदोला, Presidential Election 2022 (नई दिल्ली) : राजग ने आदिवासी द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना विपक्ष में खलबली के साथ साथ कांग्रेस को बड़े संकट में डाल दिया है। द्रोपदी पहली आदिवासी महिला हैं जो देश की प्रथम नागरिक बनने जा रही हैं। संख्या के बल के आधार पर द्रोपदी का राष्ट्रपति बनना तय है। क्योंकि बीजेडी नेता नवीन पटनायक ने सबसे पहले उनके समर्थन की घोषणा कर जीत की राह पहले ही आसान बना दी थी। अब 21 जुलाई को परिणाम वाले दिन इतना भर देखना है कि क्या वह जीत का कोई नया रिकॉर्ड बनाती है।
क्योंकि आदिवासी महिला होने के नाते कई दलों पर उनको वोट देने का दबाव आ गया है। द्रोपदी के नाम की चर्चा पिछले चुनाव के समय भी चली थी, लेकिन तब दलित चेहरा रामनाथ कोविद को मौका दिया गया। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके नाम की घोषणा कर एक ऐसा दांव चला जिसमें विपक्ष फंस गया। क्योंकि द्रोपदी का नाम सामने आते ही आदिवासी राजनीति तो गर्मा गई है। जिससे कई दल पसोपेश में फंस गए हैं। साथ ही महिलाओं में भी बड़ा सन्देश देने की कोशिश है।
चुनाव प्रचार में राजग निश्चित तौर पर आदिवासी और महिला सशक्तिकरण को भी बड़ा मुद्दा बनाएगा। आदिवासी राजनीति का सीधा असर उन राज्यों पर पड़ना तय है जहां आदिवासी निर्णायक रोल अदा करते हैं। ऐसे राज्यों में झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, छतीसगढ़, मध्य्प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक उड़ीसा और केरल जैसे महत्वपूर्ण राज्य आते हैं।
द्रोपदी का नाम सामने आते ही बीजेडी ने तो सबसे पहले सर्मथन की घोषणा की। नामाँकन वाले दिन सहयोगी दल जेडीयू, अन्नाद्रमुक के नेता मौजूद थे। जो संकेत मिल रहे उनमें आम आदमी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस और टीआरएस के भी समर्थन में आने के पूरे आसार हैं। विपक्ष में भी वोटिंग तक बड़ी सेंध लग सकती है।
इसके चलते संकट कांग्रेस के लिये हो गया है। पहली बार कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार देने के बजाए टीएमसी के कहने पर यशवंत सिन्हा को समर्थन देने की घोषणा कर दी। सिन्हा विपक्ष के उम्मीदवार तो बना दिये गये, लेकिन पूरा विपक्ष साथ खड़ा नही हुआ। कांग्रेस में वैसे भी इन दिनों परेशानी का दौर चल रहा। एक तो लगातार राज्यों की हार ने कांग्रेस को कमजोर किया हुआ है।
इसी बीच नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी ने राहुल गांधी से लगातार पूछताछ कर कांग्रेस को और चिंता में डाला हुआ था। तभी महाराष्ट्र का नया संकट खड़ा हो गया। उद्धव ठाकरे की अगुवाई में चल रही महाअगाड़ी सरकार मध्यप्रदेश कांग्रेस सरकार की तरह गिरने के कगार पर है। यह तय है कि देर सवेर बीजेपी शिवसेना के बागियों की मदद से महाराष्ट्र में सरकार बनाएगी।
इससे मुर्मू के पक्ष में तो वोट बढ़ेंगे ही साथ ही कांग्रेस के लिये यह बड़ा झटका होगा। क्योंकि कांग्रेस की अपनी खुद की सरकार केवल दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बची है। महाराष्ट्र और झारखंड में वह सरकार में हिस्सेदार है। इसके बाद महाराष्ट्र जैसा ऑपरेशन झारखंड में बीजेपी कभी भी कर सकती। राष्ट्रपति का चुनाव का असर झारखंड में दिखाई दे सकता है।
वैसे भी इन दिनों झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस में कुछ भी ठीक नही चल रहा। राज्यसभा चुनाव के समय तनातनी उजागर भी हुई है। मुख्यमन्त्री हेमंत सोरेन खुद एक जांच में फंसे हैं। आदिवासी द्रौपदी के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने के बाद झामुमो ओर सहयोगी दलों के आदिवासी विधायकों और सांसदों पर द्रौपदी को वोट देने का दबाव निश्चित तौर पर बढ़ गया है। आज कल में झामुमो फैसला कर सकता। संकेत यही हैं मुर्मू को करेंगे। इससे कांग्रेस के लिये परेशानी खड़ी हो सकती है। क्योंकि उसका झामुमो से ठकराव ओर बढ़ सकता है।
आदिवासी विधायक बागी तेवर अपना सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी मोके का लाभ उठाने से नही चूकेगी। अब रहा बाकी राज्यों का सवाल तो इस साल और अगले साल जिन महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें कांग्रेस का सीधे बीजेपी से ठकराव है। इस साल गुजरात औऱ अगले साल कर्नाटक, राजस्थान,तेलंगाना, मध्य्प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में चुनाव होगा। इन राज्यों में आदिवासी बड़ा वोट बैंक है। छत्तीसगढ़ में तो 90 में से 32 सीटों पर असर है। मुख्यमन्त्री भूपेश बघेल के लिये आदिवासी विधायको को साधना बडी चुनोती होगी। राजस्थान में भी कांग्रेस की असल चिंता आदिवासी वोटर है।
राज्यसभा चुनाव के समय आदिवासी नेताओ ने टिकट के लिये दबाव भी बनाया था। मध्य्प्रदेश में भी खींचतान तय। कांग्रेस के लिये इन सभी राज्यों का चुनाव अस्तित्व से जुड़ा। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी इन राज्यों में चुनाव जीतना चाहेगी। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का दांव और उनके चेहरे से पार पाना कांग्रेस के लिये बहुत आसान नही होगा।
क्योंकि कांग्रेस के पास करने के लिये बहुत कुछ है नही। मुख्यमन्त्रियों पर ही राज्य बचाने और जितवाने का पूरा दारोमदार होगा। केंद्र कुछ कर पाने की स्थिति में अब रहा नही। राज्यों की हार ने उसे बहुत कमजोर कर दिया बाकी ईडी ने परेशानी बढ़ाई हुई है।
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