India News (इंडिया न्यूज), Rajya Sabha Bypoll 2024: भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी 8 राज्यों की 9 सीटों पर उपचुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की लिस्ट की घोषणा कर दी है। पार्टी की तरफ से नीतीश कुमार के राज्य बिहार में एक सीट अपने गठबंधन सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा के लिए छोड़ी है। पार्टी ने हरियाणा से किरण चौधरी को मैदान में उतारा है। इसके अलावा दो केंद्रीय मंत्रियों जॉर्ज कुरियन और रवनीत सिंह बिट्टू को राज्यसभा भेजना के लिए मध्य प्रदेश और राजस्थान को चुना है।

लेकिन इन सब के बीच में सबके मन में एक ही सवाल है कि इस बार बीजेपी में राज्यसभा चुनाव के लिए जो उम्मीदवार को चुनने का फार्मूला है वह क्या है और वह सभी दावेदार जिन्हें टिकट दिया गया है इसके पीछे की क्या वजह है।

हरियाणा किरण चौधरी को ही टिकट क्यों?

कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने जब से इस्तीफा दिया उसके बाद से ही राज्यसभा सीट पर उपचुनाव में बीजेपी से रवनीत सिंह बिट्टू के नाम की चर्चा यहां पर तेज हो गई है क्योंकि यह सीट अब खाली है। सुबे में 1 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव का आयोजन होगा। ऐसे में पंजाब के बिट्टू को उम्मीदवार अगर यह पार्टी बनाती है तो ऐसी गुंजाइश है कि नुकसान हो सकता है इसलिए पार्टी की तरफ से बाद में इरादा बदल लिया गया। इस बीच में एक और नाम की चर्चा जोरो से हो रही थी वह थे पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के करीब तरुण भंडारी। पंचकूला के पूर्व मेयर भंडारी को हिमाचल प्रदेश में नंबर गेम पक्ष में ही नहीं होने के बावजूद भाजपा उम्मीदवार हर्ष महाजन की जीत का श्रेय मिलता रहा ।

बंसीलाल की विरासत पर टिकी है नजर

कैप्टन अभिमन्यु, ओपी धनखड़, रणजीत सिंह चौटाला जैसे जाट के कई दिग्गज भी इस चुनावी जंग में शामिल बताए जा रहे थे। इतना ही नहीं कुलदीप बिश्नोई के साथ प्रदेश में पार्टी के दलित चेहरे बने अशोक तंवर और बंतो कटारिया भी राज्यसभा बर्थ की इस रेस में शामिल थे लेकिन कहते हैं ना कि यह राजनीति है यहां कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता। लेकिन यहां पर किरण चौधरी ने बाजी मार ली। बीजेपी ने पार्टी में इतने कद्दावर चेहरों को दरकिनार करते हुए किरण चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया। लेकिन यह मत सोचिए कि इसके पीछे पार्टी की कोई मंशा नहीं है इसके पीछे का गणित आपको हिला कर रख देगा।

हरियाणा की तरफ अगर बढ़े तो गैर जाट की सियासत पर पार्टी का फोकस है ऐसा लोगों को लग रहा होगा लेकिन बीजेपी की नजर इस बार कुछ बड़े पर है। इस बार पार्टी की नजर किरण चौधरी के नाम पर बंसीलाल की विरासत का फायदा उठाना है।

टिकट एक दावेदार कई

गौरवतलब हो क संध्या के इस्तीफा के बाद यहां सीट खाली है। राज्य सभा सीट से टिकट की रेस में यहां पर पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा और जयभान सिंह पवैया से लेकर सुरेश पचौरी तक जैसे न जाने कई कद्दावर नेताओं के नाम सामने आ रहे थे। साल 2019 में अगर चले तो उस वक्त के आम चुनाव में विपक्षी पार्टी कांग्रेस उम्मीदवार रहे सिंधिया को करारी मात देने वाले केपी यादव चौधरी मुकेश सिंह चतुर्वेदी रजनीश अग्रवाल के साथ कांत देव सिंह के साथ ही कांग्रेस से आए पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी भी टिकट के लिए एक मजबूत दावेदार माने जा रहे थे।

अंतर्कलह की शोर

बता दे कि इतने सारे स्थानीय दावेदार होने के बावजूद किसी एक के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी। किसी के नाम पर नेताओं की तरफ से नाराजगी थी, तो किसी के नाम पर कार्यकर्ता नाराज बैठे थे। वही किसी को उतारने से जातीय गणित बिगड़ सकता था जिसका तर्क दिया जा रहा था तो किसी के आने से आपसी क्लेश बढ़ने की आशंका जताई जा रही थी। लेकिन पार्टी ने इन सभी आशंकाओं को खारिज करते हुए स्थानीय चेहरे की बजाय केरल से आने वाले जॉर्ज कोरियन को मैदान में उतार दिया।

राजस्थान में रवनीत बिट्टू पर दाव क्यों ?

राजस्थान की एक सीट के लिए ज्योति मिर्धा से लेकर दिग्गज नेता सतीश पूनिया राजेंद्र राठौड़ और अरुण चतुर्वेदी जैसे कई बड़े-बड़े चेहरे टिकट के लिए इस रेस में शामिल थे। लेकिन पार्टी ने गुटबाजी को हवा न मिल जाए यह सोचते हुए पंजाब से नाता रखने वाले रवनीत सिंह बिट्टू को उपचुनाव के लिए अपना दावेदार चुनाव।

श्री गंगानगर का फैक्टर

पंजाब से सट्टा पड़ोसी राज्य राजस्थान के श्रीगंगानगर और उसके आसपास के इलाकों में सेक्स समाज की अच्छी खासी पेट है। बीजेपी ने बिट्टू को राज्यसभा भेजने से पार्टी को इस इलाके की सियासत का जो पूरा हिसाब किताब है उसे साथ लेने का विश्वासहै।

बिहार में मनन मिश्रा और उपेंद्र कुशवाहा का गेम

बिहार में ब्राह्मण का चेहरा अगर मनन मिश्रा की बात करें तो वह है।  यहां पर भाजपा ने मनन कुमार मिश्रा के नाम पर गेम खेल रहा है। बहुत कम लोग ये बात जानते हैं की सुप्रीम कोर्ट के वकील मनन ब्राह्मणों के बीच एक बहुत बड़ा चेहरा है इतना ही नहीं सुबे के गोपालगंज से हैं।

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कुशवाहा

बीजेपी ने एक सीट अपने गठबंधन सहयोगी आरएम प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के लिए क्यों छोड़ा यह भी एक बहुत बड़ा फैक्टर है। तो यहां आप समझ सकते हैं कि कुशवाहा के कंधों पर रखकर पार्टी ओबीसी को अपने पाले में लाना चाहती है। बिहार की दो मजबूत सीटों के लिए ऋतुराज सिंह के साथ ही पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह भी इस रेस में दावेदारी कर रहे थे।

कुइरी वोटर क्यों है नाराज उपेंद्र कुशवाहा कोई भी जाति से बिलॉन्ग करते हैं। सुबह की सियासत पर नजर डालें 29 कुमार के साथ लव कुश को मजबूत बनाने वाले नेता माने जाते हैं।

आम चुनाव में करकट सीट से बिहार बीजेपी कार्यकारिणी सदस्य रहे पवन सिंह की उम्मीदवारी से कोरी समाज अच्छा खासा नाराज हुआ था। बिहार में कोई कुशवाहा की आबादी करीब 10 फीसदी दर्ज की गई है जो कि ओबीसी जातियों के यादव के बाद सबसे ज्यादा रहा है।

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महाराष्ट्र में धैर्यशील पाटिल पर दाव क्यों?

महाराष्ट्र में चलते हैं जहां कुछ महीनो में विधानसभा चुनाव कागज होने वाला है। चुनावी यह साल चल रहा है और ऐसे में मराठा आरक्षण आंदोलन सरकार के लिए कहीं गले का पास ना बन जाए। मराठा आरक्षण आंदोलन की की अगुवाई कर रहे मनोज जराेगे पाटिल ने सुबह की डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को आरक्षण विरोधी बताते हुए मोर्चा तो खोल रखा है। ऐसी हालत में बीजेपी ने उदयन भोसले और पीयूष गोयल के इस्तीफा से खाली पड़ी हुई राज्यसभा सीटों में से एक पर धारुशील पाटिल को उतार दिया। उनके इस फैसले को एक तीर से तीन शिकार करने की रणनीति तो है ही।

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